सोयाबीन से हुआ मोह भंग, बढ़ेगा मक्का का रकबा

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अनोखा तीर, हरदा। मध्य प्रदेश में सोयाबीन एक महत्वपू्र्ण फसल मानी जाती है। यह आर्थिक रूप से राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। किसानों के लिए ५ वर्ष पहले तक इसकी खेती काफी लाभदायक मानी जाती थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों से सोयाबीन की खेती घाटे का सौदा बन गई है। बीते वर्ष में जहां प्रतिवर्ष सोयाबीन का उत्पादन घटा है, वहीं किसानों को आकर्षक दाम भी नहीं मिले हैं। जिसके कारण इस वर्ष सोयाबीन का रकबा कम हो सकता है। क्योंकि कई ऐसे किसान हैं जो अब सोयाबीन की खेती को छोड़कर मक्का एवं धान को अपना रहे हैं। राज्य में सोयाबीन की खेती का रकबा कम होने के पीछे तो ऐसे कई कारण हैं पर मुख्य कारण मौसम में बदलाव, कृषि लागत में बढ़ोतरी और उत्पादन में कमी और फसल का लागत मूल्य न प्राप्त होना बताया जा रहा है। अब तक मध्य प्रदेश को देश का सोयाबीन के मामले में उत्पादक राज्य माना जाता था। राज्य में सोयाबीन को लेकर अनुसंधान की सुविधाएं भी हैं पर अभी तक संस्थान की तरफ से मौसम प्रतिरोधी सोयाबीन की किस्म उपलब्ध नहीं कराई गई है। पहले से फसल चली आ रही है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता अब खत्म होने कगार पर है। इसका सीधा असर सोयाबीन के उत्पादन पर पड़ रहा है। किसानों के अनुसार खेती की लागत तो बढ़ रही है, पर घटिया किस्म के बीज के कारण उत्पादन में कमी आ रही है। इससे किसानों को कम रिटर्न मिल रहा है। इसके कारण किसान इसकी खेती को छोड़कर मक्का की तरफ जा रहे हैं।

मौसम में बदलाव के कारण प्रभावित हो रही फसल

गौरतलब है कि राज्य में अनियमित वर्षा के पैटर्न और मौसम में उतार चढ़ाव और सोयाबीन की खेती में पौधों की बढ़ोतरी के दौरान तापमान में अचानक उतार चढ़ाव के कारण सोयाबीन का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। कई कारणों से उत्पादन में कमी आ रही है। इस रिस्क के डर से किसान हाल के वर्षों से मक्के की खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। बारिश पर आधारित इस फसल के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि जिस वर्ष अच्छी बारिश होती है किसान इसकी खेती करते हैं, पर जब बारिश कम होती है तो इसका भी रकबा कम हो जाता है, ऐसे में इसका उत्पादन अब घट रहा है।

उत्पादन में आई कमी

मध्यप्रदेश में सोयाबीन की जब २५ वर्ष पहले किसानों ने खेती करना प्रारंभ किया था, तब इसका उत्पादन अत्यधिक होता था और लागत भी कम आती थी। लेकिन बीते १० वर्षों से प्रतिवर्ष सोयाबीन का औसत उत्पादन कम होता जा रहा है और यदि किसानों को सोयाबीन के दाम की बात की जाए तो वह भी लागत के हिसाब से नहीं मिल पा रहे हैं। न तो सोयाबीन समर्थन मूल्य पर खरीदने में सरकार की कोई रुचि रहती है। प्रदेश के अधिकांश सोयाबीन प्लांट बंद हो जाने के कारण प्रदेश के किसानों को जो लाभकारी मूल्य मिलना चाहिए था, वह भी नहीं पाता है।

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