मामला अवैध वन कटाई का- स्पष्ट जांच या फिर रस्म अदाईगी, वन विभाग की जांच पर उठ रहे सवाल

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गजेंद्र (सोनू) खंडेलवाल भैरुंदा (नसरुल्लागंज)। रेहटी वन परिक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले चकल्दी के जंगल क्षेत्र में पिछले कई वर्षौ से वन माफियाओं ने उत्पाद मचा रखा हैं। ग्रामीण भी प्रकृति का दोहन करने वाले ऐसे माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही की मांग कर रहे हैं। लेकिन वन अमला जंगलो को बचाने की बजाय उजाड़ने में जुटा है। ताजा मामला चकल्दी गांव से ही निकाल कर सामने आया जहां वन माफियाओ ने केवल जंगल ही साफ नहीं किए बल्कि वन परिक्षेत्र के दायरे में आने के बावजूद भी वनरक्षक, बीट प्रभारी, डिप्टी रेंजर सहित अन्य अधिकारियों से साठगांठ कर आरामशीन वणफर्नीचर की दुकान ही खुलवा दी। जंगल क्षेत्र से कुछ दूरी पर ही आसानी के साथ सागौन के बने हुए फर्नीचर बिना किसी जांच के उपलब्ध हो जाते हैं। जब इसकी जानकारी मीडिया तक पहुंची और यह मामला उभर कर सामने आया तो विभागीय अधिकारियों ने जांच के आदेश दिए। जांच के नाम पर भी कागजों की खाना पूर्ति करने के लिए रस्म अदाइगी देखने को मिले। वनरक्षक, वीट प्रभारी व डिप्टी रेंजर जांच के लिए तो पहुंचे लेकिन उन्होंने मौके पर मौजूद वन माफियाओं को ही गवाह बनकर जांच की खानापूर्ति की। अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार विभागीय स्तर पर वनों को बचाने के मामले में अधिकारी ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य कब निभाएंगे।

उठते सवाल- नौकरी सरकार की या फिर माफियाओ के साथ मिलीभगत की

प्रकृति का संरक्षण नहीं होने, मौसम चक्र में अंसमय ही बदलाव होने का खामियाज इस समय आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। साल दर साल तापमान में बढ़ोतरी होती जा रही है और हीटवेव के हालात बनने लगे हैं। जिसका सीधा असर आम लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। मानव को अपना जीवन चलने के लिए प्रकृति के संरक्षण की आवश्यकता महसूस होने लगी है। लेकिन इसी बीच क्या वन विभाग में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारी सरकारी नौकरी के दौरान ली गई शपथ से न्याय कर रहे हैं? वर्तमान में तो ऐसा लगता है कि इस विभाग में पदस्थ सरकारी सेवक सरकार की नौकरी नहीं कर रहे बल्कि वन माफियाओं से मिली भगत कर उनकी नौकरी करते हुए वनों का विनाश करने में जुटे हुए हैं।

एक दूसरे पर दोषारोपण करने की प्रथा कब होगी बंद

अमूमन यह लंबे समय से देखने में आ रहा है कि जब भी वनो की कटाई को लेकर वन विभाग या वन विकास निगम के अधिकारियों से चर्चा की जाती है तो हमेशा यही सुनने में आता है कि लकड़ी की कटाई तो दूसरे क्षेत्र से हो रही है। वन विभाग, वन विकास निगम पर अपना आरोप जड़ता है तो वन विकास निगम इसे वन विभाग की मिलीभगत बताता है। चकल्दी जंगल क्षेत्र में भी अधिकारी कुछ इसी तरह के बयान बाजी करते हुए नजर आए। जिसमें यहां पर हो रही अवैध कटाई को वन विभाग के अधिकारियों ने वन विकास निगम के जंगलों से काटकर लेकर आना बताया है।

ग्रामीणों की माने तो वनों की कटाई का सरगना स्वयं विभाग

जंगल क्षेत्र से लगे हुए ग्रामीणों की बातों पर यदि विश्वास किया जाए तो यह बात निकाल कर सामने आ रही है कि वनों की कटाई का सरगना तो स्वयं वन विभाग या वन विकास निगम ही है। वनों से होने वाली कटाई यहां पर पदस्थ वनरक्षक, वीट गार्ड, डिप्टी रेंजर के संरक्षण में ही होती है। इसकी जानकारी रेंजर ,एसडीओ ,डीएफओ सहित भोपाल में बैठे अधिकारियों के पास तक होती है। लेकिन हमेशा ही वनों की कटाई के मामले को अन्य रूप दे दिया जाता है।

कभी हुआ करता था घना जंगल, अब नजर आ रहे हैं केवल ठूंठ 

यदि बात चकल्दी के आसपास के गांव की करे तो दो दर्जन से अधिक गांव ऐसे थे जहां घना जंगल हुआ करता था। लेकिन अब यहां पर लकड़ी के ठूठ ही देखने को मिल रहे हैं। जंगल साफ हो चुके हैं और यहां सिर्फ मैदान नजर आ रहा है। ऐसे गांव आमझिरी, चतरकोटा कोठरा ,ढाबा,बनियागांव लावापानी,सेमलपानी, भैसांन अमीरगंज ,सिराली, लोहपठार, सुराई, खापा , पाटतलाई ,कांकरिया,महादेव बेदरा, बीलपाटी सहित अन्य गांव थे। जहां सिर्फ जंगल और बनोपज के अलावा अन्य कोई नजर देखने को नहीं मिलता था।

गांव से लगे खड़लिया नाले पर आरा मशीन का संचालन – विभाग का कहना कोरी अपवाह

हालांकि वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी गांव के आसपास लगी आरा मशीन की बातों को अपवाह बता रहे हैं। लेकिन ग्रामीणों के मुताबिक आम लोगों की नजरों से बचने के लिए आरा मशीन को तालों के अंदर बंद कर रखा है। इसके अंदर तक जाना किसी के लिए संभव नहीं है। गांव से लगे हुए खड़लिया नाले पर इसका संचालन इसलिए किया जाता है कि यहां आसानी से जंगल के रास्ते लकड़ी पहुंच जाती है। अब विभाग इस मामले में क्या महत्वपूर्ण कदम उठाता है यह देखना होगा।

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