अनोखा तीर भोपाल:-मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिला सहकारी केंद्रीय बैंक में हुए 100 करोड़ रुपये के घोटाले में 3 साल बाद भी दोषियों पर कार्रवाई नहीं हो पाई है। इनमें 13 आरोपित नामजद हैं, लेकिन इनकी गिरफ्तारी नहीं हुई। घोटाले में वित्तीय संकट में डूबे सहकारी बैंक की राशि डकार ली गई। अब स्थिति यह है कि बैंक के पास उसके उपभोक्ताओं को लौटाने के लिए रुपये नहीं हैं।
जिले की दर्जनों समितियों ने खाद आदि की राशि ही बैंक में जमा नहीं की है। प्रदेश में शिवपुरी जिले के अलावा अलावा सतना, दतिया, झाबुआ सहित सीधी में ट्रैक्टर घोटाला एवं होशंगाबाद में ऋण वितरण में गड़बड़ी के कई मामले उजागर हो चुके हैं। इससे अब सहकारी संस्थाएं कंगाल होने लगी हैं और उनकी निर्भरता सरकार के ऊपर बढ़ गई है। दतिया जिला सहकारी केंद्रीय बैंक की शाखाओं में भी करोड़ों रुपये की गड़बड़ी सामने आ चुकी है।
खाद बेचकर खा गए राशि
शिवपुरी में डीएमओ से खाद लेकर किसानों को बेच दी गई, लेकिन इसका पैसा डीएमओ के खाते में जमा नहीं करवाया। भुगतान के संबंध में जिला सहकारी बैंक की ओर से समिति प्रबंधकों को कई नोटिस जारी किए, लेकिन भुगतान नहीं किया गया। जिले भर में ऐसी दर्जनों समितियां है जिन पर करोड़ों रुपये बकाया हैं।
तना में किसानों के नाम से फर्जी लोन
सतना केंद्रीय सहकारी बैंक में किसानों के नाम पर 6 करोड़ के फर्जी लोन घोटाले की जांच भी लंबित है। सहकारी समिति देवरी चुरहटा में वर्ष 2015 में समिति प्रबंधक, समिति अध्यक्ष, केंद्रीय बैंक के प्रबंधक और पर्यवेक्षक ने मिलीभगत करके 603 किसानों के नाम से फर्जी कर्ज स्वीकृत किया और फिर यह राशि निकाल ली। समिति ने छह करोड़ का बंदरबांट किया और कर्ज की राशि 2016 में जमा नहीं होने के कारण बैंक ने किसानों के नाम ऋण वसूली के नोटिस जारी किए थे। किसानों ने इसकी शिकायत जिला प्रशासन से भी की लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
झाबुआ के आदिम जाति सोसाइटी में डेढ़ करोड़ का घोटाला
ऋण माफी योजना के नाम पर जिले की थांदला आदिम जाति सोसाइटी में डेढ़ करोड़ का घोटाला उजागर हुआ। तीन सदस्यीय जांच दल गठित किया। जांच में पाया गया कि किसानों के फर्जी नाम से दो करोड़ 40 लाख रुपये की ऋण माफी बताते हुए शासन से अधिक पैसे मांगे गए हैं। इस मांग के विरुद्ध एक करोड़ 47 लाख रुपये मिल गए।
इन जिलों में भी हुए घपले
सीधी जिला सहकारी बैंक जिला सहकारी बैंक ने 1100 ट्रैक्टर फाइनेंस किए। सामान्यत: प्रदेश में इतने ट्रैक्टर फाइनेंस नहीं होते हैं। घपले का अंदेशा लगने पर पड़ताल कराई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए। यहां फाइनेंस किए गए करीब 114 ट्रैक्टर किसी और के नाम पर पंजीकृत निकले। मोपेड सहित अन्य वाहनों के नंबर भी पाए गए। 167 कर्मचारियों की भर्ती में भी फर्जीवाड़ा हुआ।
रीवा जिला सहकारी बैंक
बैंक की डाभौरा शाखा में 16 करोड़ रुपये से ज्यादा का घोटाला हुआ। प्रबंधक रामकृष्ण मिश्रा ने कई खातों में राशि की बंदरबांट करते हुए अपनों के खातों में ट्रांसफर कर दी। इसके साथ ही आंतरिक अंकेक्षण में साढ़े छह करोड़ रुपए की गड़बड़ी और पकड़ाई। मामले में एफआइआर दर्ज कर सीआईडी से जांच करानी पड़ी।
होशंगाबाद जिला सहकारी बैंक
बैंक की हरदा शाखा में 2 करोड़ रुपये का घोटाला उजागर हुआ था। यह नकदी बैंक की जांच में कम पाई गई। जब पड़ताल हुई तो पता लगा कि शाखा को इतनी नकदी रखने का अधिकार ही नहीं था। इस राशि को ब्याज पर चलाए जाने की बात भी सामने आई। बैंक कर्जमाफी योजना के दौरान भी गड़बड़ियों को लेकर चर्चित रहा है।
छतरपुर जिला सहकारी बैंक
बैंक की राजनगर शाखा में 3 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ। यहां शाखा प्रबंधक लक्ष्मी पटेल ने 183 किसानों को क्रेडिट कार्ड पर कर्ज देकर 3 करोड़ रुपये के घोटाले को अंजाम दिया। कर्ज समिति के माध्यम से दिया जाता है, लेकिन बिना किसी से अनुमति लिए शाखा से ही कर्ज दे दिया गया। कर्ज ऐसे किसानों को मछली पालन के नाम पर दिया गया, जिन गांव में तालाब ही नहीं है। मामला सब्सिडी हड़पने का निकला।
मंदसौर जिला सहकारी बैंक
जिला सहकारी बैंक में लगभग 12 करोड़ रुपये का फर्जी ऋण बांटने का मामला आया। इसमें पात्रता नहीं होने पर भी बैंक अध्यक्ष ने परिजन के नाम पर ऋण ले लिया। नीमच, जीरन व सावन के वेयरहाउस की फर्जी पर्चियों पर यह कर्ज दिया गया। जबकि वेयर हाउस में अनाज रखा ही नहीं गया था। जिन शाखाओं से यह कर्ज दिया गया, उन्हें इसकी पात्रता ही नहीं थी। हालांकि जब बवाल मचा तो बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष ने राशि ब्याज सहित जमा कर दी।
ग्वालियर जिला सहकारी बैंक
बैंक के क्षेत्राधिकार में आने वाली समितियों ने करोड़ों रुपये के फर्जी ऋण बांट दिए। करीब 30 करोड़ रुपए की आर्थिक अनियमितता की जांच ईओडब्ल्यू कर रहा है, लेकिन इसका मूल रिकार्ड ही नहीं मिल रहा है। घोटाले का दायरा बढ़ता जा रहा है।
शहडोल जिला सहकारी बैंक
बैंक की अनूपपुर और कोतमा शाखा में करोड़ों रुपए का खेल हुआ। यहां बैंक के तत्कालीन मैनेजर राजेंद्र तिवारी ने 32 लाख रुपये अपने बेटे अनिल तिवारी के खाते में ट्रांसफर कर दिए। बेटा बैंक में ही कंप्यूटर आपरेटर था। दामाद सुबोध तिवारी के खाते में 87 हजार रुपये डाले और एक ट्रैक्टर सुनील तिवारी के नाम से खरीदा लिया।
बचाव में अधिकारी
सहकारिता विभाग के बड़े अधिकारी सहकारी बैंक घोटाले के आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं। अपेक्स बैंक का जिला सहकारी बैकों पर सीधा नियंत्रण होता है लेकिन अपेक्स बैंक के एमडी मनोज गुप्ता इस बारे में बात नहीं करना चाहते हैं। प्रमुख सचिव सहकारिता दीपाली रस्तोगी से भी इस बारे में सवाल किया गया लेकिन उन्होंने भी मौन रखा।
Views Today: 2
Total Views: 478