अनोखा तीर, भोपाल। प्रकृति के साथ ईमानदार होना जरूरी है। साथ ही यह भी जरूरी है कि हम देश के लिए काम करें और जहां रहते हैं वहीं से इसकी शुरुआत करें। हमें ऐसी व्यवस्था अपनाना है जिससे कम बारिश में भी सूखे की स्थिति उत्पन्न न हो और अधिक बारिश से बाढ़ ना हो। यह बात राजस्थान के लापोड़िया गांव के सामाजिक कार्यकर्ता और वॉटरमैन पद्मश्री लक्ष्मण सिंह ने कही। वे सातवें महेश बुच स्मृति व्याख्यान में चौका प्रणाली से वर्षा जल संचयन और आजीविका सुधार विषय पर अपने संघर्ष और सफलता की कहानी पर व्याख्यान दे रहे थे।
अपने सरल समझ में आने वाले और प्रभावपूर्ण व्याख्यान में लक्ष्मण सिंह ने लापोड़िया और अन्य 50 गाँवों में चौका प्रणाली से किए जल संचयन और गोचर जमीनों को पुर्नजीवित करने के सफल प्रयास को विस्तार से समझाया। उन्होंने गांव के युवकों को शामिल किया और ‘ग्राम विकास नवयुवक मंडल लापोड़िया’ का गठन किया। लक्ष्मण सिंह ने कहा कि जल संरक्षण तो लोगों की समझ में आने लगा किंतु इससे प्रकृति-मानव-मवेशी में सामंजस्य कैसे होगा ये समझा पाना थोड़ा कठिन था। उन्होंने बताया कि जल संचयन के माध्यम से गोचर जमीन को पुर्नजीवित करने से मवेशियों के लिये पर्याप्त पानी और चारे की उपलब्धता बढ़ी और किसानों को पशुपालन के माध्यम से दूध के पैदावार से बहुत लाभ हुआ। जल संचयन एवं गोचर जमीन के संरक्षण हेतु समुदाय के लोगों ने गांवों के समग्र विकास हेतु ख़ुद नियम बनाये और उन पर अमल किया। साथ-साथ समुदाय के लोगों को जल संचयन एवं संरक्षण हेतु जागरुक एवं प्रोत्साहित किया और पद यात्रा, रैली, ग्राम सभा का आयोजन किया। लक्ष्मण सिंह ने बताया कि यह काम सरल नहीं था इसके लिए लापोड़िया गांव के सूखे तालाब को श्रमदान द्वारा पुर्नजीवित किया फिर समुदाय के लोग स्वेच्छा से जुट गये। तालाब के पुर्नजीवित होने पर सूख चुके कुओं में पानी आ गया। इस सफलता से उत्साहित हो कर श्रमदान द्वारा पानी का संचयन दूसरे गांवों ने भी अपनाया। जल संचयन हेतु उन्होने तालाबों का भी निर्माण किया जिसका नामकरण समुदाय द्वारा किया गया जैसे फूल तालाब, देव तालाब। फिर छत पर गिरने वाले बरसाती पानी का भी संचयन पीने के लिए किया।
मृदा वैज्ञानिक और भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. एसपी दत्ता ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि मृदा एवं जल हमारे जीवन के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। अनाज का उत्पादन मृदा गुणवत्ता पर आधारित है लेकिन जल बिना पैदावार संभव ही नहीं है। इसलिए लक्ष्मण सिंह द्वारा किए गए जल संरक्षण एवं समुदायिक विकास बहुत ही महत्वपूर्ण है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में टैगोर ड्रामा स्कूल के कलाकारों ने संगीत निदेशक सतीश कौशिक के नेतृत्व में जल संचयन पर आधारित जान चेतना गीत प्रस्तुत किए जिसे बहुत पसंद किया गया। इस व्याख्यान में लगभग 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें भोपाल, सीहोर और विदिशा जिले के गांवों के किसान, ग्रामीण, विद्यार्थी, सिविल सोसाइटी के सदस्य, बुद्धिजीवी वर्ग, प्रोफेसर आदि शामिल हुए।
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