अनोखा तीर भोपाल:-मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों के लिए हुए मतदान में जिन मंत्रियों और विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में कम वोट मिलेंगे, उन पर पार्टी संगठन कार्रवाई कर सकता है। पार्टी का स्पष्ट मत है मात्र छह महीने पहले चुने गए विधायक और मंत्री लक्ष्य के अनुरूप मतदान में वृद्धि भी नहीं करवा पाए और वोटों में कमी आई तो इसकी वजह उनकी लोकप्रियता या संवाद में कमी ही है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि प्रत्याशी चयन में कई जगह संगठन को छोड़ विधायकों की पसंद का भी ध्यान रखा गया है, ऐसे में उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। हार-जीत के अंतर में उनकी भूमिका नजर आनी चाहिए। इस तरह लोकसभा चुनाव के परिणाम विधायकों के लिए भी अग्निपरीक्षा साबित होंगे।
मंत्रियों का पद छिने जाने की आशंका है तो विधायकों को कड़ी चेतावनी मिल सकती है। इस लोकसभा चुनाव में सभी 29 सीटों पर 66.87 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया है।
विधानसभा चुनाव की तुलना में आ सकती है वोटों में भी कमी
पांच माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में हजारों मतों के अंतर से जीतने वाले विधायक और मंत्रियों के विधानसभा क्षेत्र में हुए मतदान की तुलना हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव से की जाए तो इसमें 22 प्रतिशत की कमी आई है।
मतदान में इस कमी को देखते हुए पार्टी नेताओं को आशंका है कि अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के लोकसभा प्रत्याशियों को मिलने वाले वोटों में भी कमी आएगी। इसके लिए मौजूदा विधायक या मंत्री सीधे तौर पर दोषी तो नहीं लेकिन कहीं न कहीं उनकी गिरती लोकप्रियता के कारण भी भाजपा के वोटबैंक में कमी आ सकती है।
पार्टी नेताओं ने मतदान का विश्लेषण कराया है इसमें सौ से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में मतदान गिरा है। इसी से अनुमान लगाया जा रहा है कि विधानसभा चुनाव की तुलना में वोटों में भी कमी आएगी। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को 58 प्रतिशत वोट मिले थे।
मतदान में सबसे बड़ी गिरावट जबेरा में
सबसे बड़ी गिरावट मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी के निर्वाचन क्षेत्र जबेरा में हुई। यहां विधानसभा चुनाव में 80.36 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान किया था, जो लोकसभा चुनाव में घटकर 58.39 प्रतिशत रहा गया। यानी 21.97 प्रतिशत की कमी आई। इस दृष्टि से सबसे बेहतर प्रदर्शन वन मंत्री नागर सिंह चौहान की विधानसभा सीट आलीराजपुर में रहा। यहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मतदान में अंतर केवल 1.4 प्रतिशत रहा।
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी ने मंत्रियों और विधायकों को अपने-अपने क्षेत्रों में मतदान बढ़ाने की जिम्मेदारी दी थी। मतदान केंद्र स्तर पर पन्ना और अर्द्ध पन्ना प्रभारियों को उतारा गया। घर-घर संपर्क का दौर चला और मतदान के दिन एक-एक मतदाता की चिंता की गई। इसके बाद भी मंत्री अपने ही निर्वाचन क्षेत्र में मतदान को संभाल नहीं पाए।
भाजपा के प्रदेश मंत्री रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि केंद्र एवं प्रदेश में संगठन और सरकार के नेतृत्व द्वारा लगातार कार्यकर्ता के नाते जनप्रतिनिधियों का अलग-अलग स्तर पर आकलन होता रहता है। इसी आकलन के आधार पर स्थान और सम्मान सुनिश्चित भी होता है। अग्रवाल का मानना है कि मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव जी का मंत्रिमंडल के बारे में विशेषाधिकार है।
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