ये देखो साहब विकास कैसे चमक रहा

यार बतोलेबाज तुम कुछ लिखते करते भी हो या खाली बोलते पत्रकार ही हो? भाई आजकल लिखने छापने का समय नहीं रहा। माइक लगाओं, मोबाइल का कैमरा खोलों, वीडियो बनाओं और थोड़ी देर बाद सामने वाले को वाट्सअप कर दो, किसी झट-पट न्यूज, फटाफट न्यूज चैनल के नाम से और बता दो भाई साहब इतने लाख लोगों ने देखा, इतने हजार ने लाइक किया। भाई साहब गदगद। बस ऐसे ही दो चार बार किया और भाई साहब से कुछ खर्चा पानी मांग लिया। आजकल इसी तरह की भाटगिरी को ही तो पत्रकारिता कहा जा रहा है।
ऐसा नहीं है बतोलेबाज आज भी खरी-खरी लिखने वाले पत्रकार हैं। तुम लिखना नहीं चाहते, इसलिए उलूल जुलूल बातें कर रहे हो। देखो भाई ग्यारसी लाल कोई खरी बरी नहीं लिखता, ऐसा लिखने वाले आजकल सब घर बैठे हैं। अखबार वालों को भी अपना अखबार चलाना होता है। उसके लिए लगता है धन, बगैर विज्ञापन के धन आता नहीं। खबर कितनी भी अच्छी छाप दो उससे क्या होगा, लोग अखबार के दो पांच रुपए देना भी पसंद नहीं करते। जबकि वह दो रुपए का अखबार छपकर दस रुपए में तैयार होता है। अब तुम्हारे हिसाब से खरी खरी छापने लगे ना तो आधे से ज्यादा अखबार बंद हो जाएंगे। अब तुम ही बताओं आजकल कोई अपनी मर्जी से अखबार वालों को विज्ञापन देता है क्या। दस चक्कर लगा कर एक विज्ञापन की सहमति ली और फिर एक साल उसके पैसों के लिए चक्कर लगाओं। ऐसे में भला कोई अखबार चल सकता है क्या। चलो छोड़ो भाई मैं भी कौन सी रामायण लेकर बैठ गया। हां तो तुम क्या बोल रहे थे कुछ लिखते क्यों नहीं। तो भाई ग्यारसी लाल आज तुम ही बताओं क्या लिखूं?
अरे भाई हमारा क्षेत्र विकास से कितना पिछड़ा हुआ है इसी को लेकर कुछ छाप दो। वैसे होना जाना कुछ नहीं है लेकिन मन को संतोष तो होगा कि हमारे हरदा की आवाज भी उठाई।
भाई देखो जब हरदा का विकास होना था तब तो हुआ नहीं, अब तो आपका नेतृत्व ही परिवर्तन हो जाएं तो ही कुछ उम्मीद की जा सकती है। वैसे आपका नेतृत्व हाथ पांव तो खूब फडफ़ड़ा रहा है पलटी मारने के लिए लेकिन आत्मविकास वाले भैयाजी ने टांग अड़ा दी है।
चलो भाई फिर भी आप नहीं मानते तो कुछ लिख छाप देता हूं कि वर्षों बाद भी जिला बिजली, पानी और सडक़ जैसी समस्याओं को लेकर आंदोलन क्यों कर रहा है। प्रदेश के मुख्यमंत्री ने 2008 में अपने प्रवास दौरान फूड पार्क और बूड पार्क की घोषणा की थी उस पर अभी तक अमल क्यों नहीं हुआ। हरदा को मिनी स्मार्ट सिटी बनाने वाली मुख्यमंत्री की घोषणा कहां हवा में उड़ गई। क्षेत्र का कृषि मंत्री होने पर भी कृषि महाविद्यालय क्यों नहीं खुला? अजनाल नदी के पेड़ी घाट को साबरमती रिवर व्यू की तरह विकसित करने वाली घोषणा का क्या हुआ? गुप्तेश्वर मंदिर से पहले नदी तट पर मुंबई की जुहू चौपाटी तरह होने वाले उस नजारे का क्या हुआ? शहर में कन्या महाविद्यालय खोलने का क्या हुआ? वर्षों से बनते हरदा शहर के मास्टर प्लान का क्या हुआ? शहर में बनने वाली मल्टीस्टोरी बाजार पार्किंग का क्या हुआ? शहर के कला प्रेमियों के लिए बनाए जाने वाले आडिटोरियम का क्या हुआ? रेल्वे डबल फाटक पर बनने वाले ओवरब्रिज का क्या हुआ? पुराने बस स्टैंड के स्थान पर बहुमंजिला सुव्यवस्थित बस स्टैंड बनने का क्या हुआ? शहर की उबड़-खाबड़ सडक़ों, अवैध कालोनियों को वैध करने का क्या हुआ? शहर के बाहर व्यवस्थित ट्रांसपोर्ट नगर बनाने का क्या हुआ? किसान के बेटों से कृषि आधारित उद्योग खुलवाकर किसानों को व्यापारी बनाने का क्या हुआ? हंडिया को पवित्र नगरी घोषित करवाकर उसके सुनियोजित तरीके से विकास का क्या हुआ? हंडिया को नगर पंचायत घोषित कराने का क्या हुआ? हंडिया में नर्मदा के नाभि कुंड स्थल को गुलाब के फूल जैसे आकार में भव्य स्वरूप में निर्माण कराएं जाकर उसे पर्यटन का केंद्र बनाने का क्या हुआ? जोगा किले को नेचरोपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के साथ ही पर्यटन का केंद्र बनाने का क्या हुआ? हरदा जिले को हर क्षेत्र में नंबर वन बनाने का क्या हुआ?
बताओं ग्यारसी लाल ऐसे ही कुछ विषयों पर लिखना है ना ? देखो भाई तुम कहते हो तो मैं लिख भी दूंगा, लेकिन इससे पहले भी ऐसे विषयों पर खूब लिखा जा चुका है। कुछ हुआ गया क्या, तो फिर भला यह सब बातें मेरे से लिखवाकर क्या करोगे? और हां सुनो एक बार ऐसे ही हमारे देश के प्रसिद्ध साहित्यकार, व्यंग्यकार अजातशत्रु जी के मन में भी आया था कि हमारे जिले में भी विकास पैदा हो। उन्होंने भी लिख डाला था कि जिले के ग्राम मसनगांव में एक कन्या महाविद्यालय खुले जिससे आसपास के गांव की लड़कियां वहां पढ़ाई करने आएं। बड़ी आबादी वाले गांवों में खेल मैदान बने ताकि गांव के युवा अपनी खेल प्रतिभाओं को निखार सकें। गांव की गरीब बस्तियों की कच्ची झोपडिय़ों को सरकारी योजनाओं के तहत पक्के मकान बनकर वहां बिजली, पानी, सडक़ जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। हर पंचायत स्तर पर एक सामुदायिक भवन निर्माण कराया जाएं ताकि ग्रामीणों को अपने शादी विवाह, घाट पंगत और फुर्सत के समय में धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम करने के लिए व्यवस्थित स्थान मिल सकें। ऐसी ही कुछ जरूरी आवश्यकताओं को लेकर उन्होंने एक लेख लिख दिया था। अब साहब लेख छप गया। उस समय अखबार में छपी खबरों को सरकारी अधिकारी थोड़ा गंभीरता से ले लिया करते थे। ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की बीमारी से ग्रस्त किसी अधिकारी ने अपने अधिनस्थों को निर्देशित किया कि वह संबंधित क्षेत्र में भ्रमण करें और पता लगाएं कि वहां विकास कार्य क्यों नहीं हुए हैं। सरकार की इतनी सारी योजनाओं के बावजूद यह क्षेत्र विकास से अछूता क्यों है। वहां के जनप्रतिनिधि तो हमेशा बजट में अपने क्षेत्र के लिए सडक़, नहर अन्य कार्यों के लिए काफी बजट स्वीकृत कराते आएं हैं फिर भी वहां विकास कार्य कैसे नहीं हुए। अब साहब कनिष्ठ अधिकारियों की एक दो सदस्यीय टीम जांच करने आई। इस बात की जानकारी क्षेत्र के विकास पुरुष को भी लग गई। उन्होंने तत्काल अपने विश्वसनीय सेवाभावी लोगों को संबंधित अधिकारियों के साथ विकास कार्यों का निरीक्षण कराने भेज दिया। पहले सरकारी रेस्टहाउस में बढिय़ा दाल बाटी चूरमा खिलाया गया। फिर उनकी कार के आगे पीछे अपने सेवाभावी लोगों की गाडिय़ां लगा दी गई। अधिकारियों को गांव लेकर जाया गया। एक गांव के बाहर गाडिय़ों का यह काफिला रुका। अधिकारी नीचे उतरकर इधर-उधर देखने लगें, तभी एक सेवक ने विनम्रतापूर्वक अपने हाथ के लठ को जमीन पर जोर से ठोकते हुए बताया कि उधर देखो साहब उस तालाब के किनारे खेल मैदान में कैसे गांव के बच्चे गुल्ली-डंडा और क्रिकेट खेल रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि मुझे तो यहां कोई खेल मैदान और तालाब नजर नहीं आ रहा है। वहां सामने तो कुछ बकरियां चर रही है। तभी सेवक ने अधिकारी की पीठ पर हाथ की थप्पी देते हुए कहा इस लठ की सुध में देखो। अब अधिकारी को बकरी की जगह लठ दिखाई देने लगा और उसके चेहरे पर अचानक ही विकास की चमक दौड़ आई। वह भी कहने लगा- वह तालाब, इसमें ये खिलते हुए कमल तो यहां के लोगों को रोजगार भी देते होंगे। सेवक ने कहा जी साहब। इस खेल मैदान के चारों ओर आपने जो फलदार पेड़ पौधे लगाए है उससे निश्चित ही यहां के बच्चों का कुपोषण दूर होगा और खेलने वाले बच्चों को पोष्टिक फल खाने को मिलेंगे। बहुत सुंदर, शाबाश। अधिकारी महाशय इतना बोलकर अपनी कार में बैठने ही वाले थे तभी सेवक ने कहा साहब गांव की झुग्गी बस्ती के स्थान पर जो दीनदयाल नगर का निर्माण किया है थोड़ा वहां भी भ्रमण कर लीजिए। अधिकारी ने कहा जब आप जैसे जनसेवक है तो निश्चित ही वहां सडक़, बिजली, पानी आदि व्यवस्थाएं सुचारु रुप से की गई होगी। बिल्कुल श्रीमान। अगर आप वहां चलेंगे तो देखेंगे कि ग्रामीण महिलाएं सिलाई कढ़ाई का कार्य कर रोजगार प्राप्त कर रही है। गांव की किशोरिया वहां बने पार्क में रस्सी कूद, चीची ठप्पा जैसे खेल खेल रही है, बुजुर्ग महिलाएं रामसत्ता में तल्लीन है। जिनके लिए ढोलक और झांझ मंजीरे की भी व्यवस्था विधायक निधि से की गई है। वाह भई सेवकराम इतना सब होने के बावजूद अखबार में ऐसी खबरें छपती है। बातें करते हुए सेवकराम भी अधिकारी की गाड़ी में सवार हो गए। अगले गांव में पहुंचते ही फूल मालाएं लेकर खड़े ४-५ लोगों ने मूंछों पर ताव देते हुए अधिकारी को मालाएं पहनाई। उन्होंने बताया कि साहब जिस विकास को लेकर हमारे दादा परदादा तरसते रहे थे उसे माननीय की कृपा से हमने आंखों से देख लिया है। अब तो हमारे गांव की हर सडक़ चमचमा रही है। सडक़ों के दोनों ओर लगे पेड़ों में फूलों की बहार से यहां से निकलने वाला राहगीर मदमस्त हो जाता है। पहले पूरा गांव शराब के नशे में डूबा रहता था। जब से माननीय ने नशामुक्ति अभियान चलाकर शपथ दिलाई है तब से गांव के बच्चों से बूढ़े तक नींबू पानी और गन्ने का जूस पीने लगे है। गांव की तो बात छोड़ों साहब खेतों तक ऐसी चमचमाती सडक़ें बनी है कि बरसात के दिनों में हम नंगे पाव ही नदी पार कर जाते है। अब आप ही बताए इससे अच्छा विकास और क्या हो सकता है। अधिकारी ने कहा मैं तो अभिभूत हो गया हूं आपके क्षेत्र का विकास देखकर। यह तो प्रदेश ही नहीं देश के लिए मॉडल है। मुझे दुख होता है कि इतना सब करने के बावजूद अखबार वाले कैसी तथ्यहीन भ्रामक खबरें छापते है। तभी सेवक ने तपाक से कहा श्रीमान आजकल विज्ञापन का जमाना है। अखबार वालों को कब तक और कितने विज्ञापन दें। अब आप ही देख लीजिए विज्ञापन देने से मना किया तो मनगढ़ंत खबरें छापकर हमारे माननीय की छवि धूमिल करने का कार्य शुरु कर दिया। मैं तो कहता हूं साहब आपको ऐसे अखबारों और पत्रकारों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करना चाहिए। अधिकारी ने सहमति में गर्दन हिलाते हुए कहा सही कह रहे हो। चलो मैं अपनी रिपोर्ट बनाकर वरिष्ठ अधिकारियों को प्रस्तुत कर दूंगा। अब मुझे चलना होगा। सेवक ने कहा श्रीमान दो मिनट ठहरिये। थोड़ा गाड़ी में हमारे यहां की गेहूं, दाल, गाय का घी तो रख देने दीजिए। अधिकारी ने कहा अरे नहीं नहीं, इसकी क्या जरुरत है। नहीं साहब यह हम आपको नहीं भाभीजी और बच्चों के लिए भेज रहे है। अधिकारी महाशय मुस्कुराये। ठीक है भाई और हमारे लिए फिर क्या व्यवस्था है। श्रीमान १०० पाईपर की पेटी और यह कुछ नजराना है जिससे आप स्नेक्स ले लीजिएगा। ऐसे सेवा का अवसर देते रहे। अधिकारी गदगद होकर बोले- धिक्कार है ऐसी पत्रकारिता को जो ऐसे भोले लोगों को बदनाम करने के लिए विकास को नजरअंदाज कर बकवास छापते रहते है। अब भाई ग्यारसी लाल तुम ही बताओं क्या ऊपर कहीं बातों को अब भी मैं छापू? ग्यारसीलाल ने कहा भाई बतोलेबाज तुम तो रहने ही दो, अब क्या लिखना और क्या छापना।

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