अनोखा तीर इंदौर:-देश में आम चुनाव का मौसम है, लेकिन न किसानों के मुद्दों का शोर है, न व्यापारियों की परेशानी पर बात हो रही है। किसान सरकार की नीतियों और बीती घोषणाओं पर अधूरे अमल से नाखुश हैं। व्यापारी परेशान हैं कि नियम कायदों में व्यापार-कारोबार को उलझा दिया गया है। आम उपभोक्ताओं को साधने के चक्कर में बाजार से जुड़े किसान और व्यापारी दोनों के हितों का नुकसान हो रहा है। हालांकि चुनाव में इन मुद्दों का शोर मचना तो दूर इन पर बात तक नहीं हो रही है।
इंदौर और मालवा क्षेत्र को गेहूं-चने के साथ सोयाबीन उपजाने का गढ़ माना जाता है। खरीफ के सीजन में सोयाबीन के दाम इस साल निम्न स्तर पर रहे। सीजन बीतने के बाद अब तक सोयाबीन के दाम नीचे बने हुए हैं। किसान परेशान हैं कि उन्होंने दाम बढ़ने की उम्मीद में उपज संग्रहित रखी, लेकिन अब तक उसके दाम नहीं मिल रहे। रबी में अब गेहूं की फसल आ गई।
पहले ऐलान हुआ था कि गेहूं के दाम 2700 रुपये प्रति क्विंटल दिए जाएंगे। असल में हो ये रहा है कि सरकार ने 2275 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य घोषित किया है। मप्र सरकार ने 125 रुपये इस पर बोनस भी घोषित किया। हालांकि किसान नाखुश हैं। भारतीय किसान व मजदूर सेना के बबलू जाधव कहते हैं कि 2700 के बजाय सिर्फ 2275 रुपये पर गेहूं खरीदा जा रहा है। बोनस सिर्फ धोखा है।
इससे पहले 2019 में प्याज पर भावांतर की राशि की घोषणा की थी। उसी दौर में गेहूं पर भी बोनस घोषित हुआ था। उन वर्षों के बोनस का पैसा भी किसानों को अब तक नहीं मिला है। जिले में किसानों के बोनस के करोड़ों रुपये अब तक जारी नहीं किए गए हैं। अब फिर से सवा सौ रुपये बोनस की घोषणा तो की गई, लेकिन असल में खरीदी तो सिर्फ 2275 रुपये के दाम पर हो रही है। बोनस कब मिलेगा, राशि कब जारी होगी, इसकी कोई मियाद तय नहीं है। मिलेगा या नहीं ये भी पता नहीं।
व्यापारी भी खरीद नहीं रहे
किसानों की पीड़ा भी बाजार से जुड़ गई है। दरअसल, सरकार ने व्यापारियों के दाल-दलहन के साथ गेहूं के स्टाक पर भी नियंत्रण कर दिया है। दलहन पर स्टाक सीमा लगा दी है। गेहूं के स्टाक को हर सप्ताह सरकारी पोर्टल पर घोषित करने की घोषणा की है। व्यापारी कह रहे हैं कि व्यापार पर इतने अंकुशों के चलते बाजारों में काम करना मुश्किल हो गया है। स्टाक सीमा और नियमों से इंस्पेक्टर राज बढ़ रहा है। व्यापारी भी किसानों का माल खरीदने से हिचक रहे हैं। ऐसे में बाजार में भी किसानों को अपेक्षा के अनुरूप दाम नहीं मिल रहे।
मंडी की समस्या पर मूंदी आंखें
इंदौर जैसी बड़ी मंडी के साथ प्रदेश की तमाम कृषि उपज मंडियों में व्यापारी मंडी बोर्ड के रुख और अव्यवस्था से परेशान हैं। व्यापारियों के अनुसार, मंडी टैक्स तो मुद्दा है ही। 31 मार्च तक सभी खानापूर्ति आनलाइन करने के बाद भी मंडी की ओर से व्यापारी का सर्टिफिकेट और आडिट अप्रूव नहीं किया जाता। तमाम दावों के बावजूद आनलाइन सिस्टम फेल है और व्यापारी भ्रष्टाचार से जूझ रहा है।
इंदौर जैसे शहर की मंडी के विस्थापन की बात वर्षों से हो रही है, लेकिन अब तक जमीन भी आवंटित नहीं हुई है। रात 11 बजे बाद गाड़ियों को आने की अनुमति दी जाती है। ऐसे में व्यापार हो तो कैसे होगा। छावनी मंडी के व्यापारी हीरालाल अगीवाल कहते हैं कि मंडी बोर्ड के लायसेंस का नवीनीकरण और टैक्स का सत्यापन करवाना किसी पहाड़ चढ़ने से कम नहीं होता।
अर्थनीति फेल
कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार की अर्थनीति फेल होने का खामियाजा किसान और व्यापारी दोनों उठा रहे हैं। कांग्रेस के उद्योग व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अजय चौरड़िया के अनुसार, महंगाई का मुद्दा चुनाव में तूल ने पकड़े इसलिए सरकार उचित समर्थन मूल्य नहीं दे रही। दूसरी ओर व्यापारियों को स्टाक लिमिट व अन्य नियम बताकर दबा रही है। असल में यह नीतिगत विफलता है। गेहूं के समर्थन मूल्य पर भी सरकार ने वादा तोड़ा है। कांग्रेस ने गेहूं का समर्थन मूल्य 2700 रुपये देने की घोषणा की है। किसानों को मंडी टैक्स से राहत भी हमारे मुद्दों में शामिल है।
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