फुटकर बाजार की तुलना थोक बाजार में सब्जियों का भाव सस्ता है। दोनों जगह के भाव में दो से तीन गुना का अंतर है। जिसका सीधा असर फुटकर ग्राहकों की जेब पर पड़ता है। इस कृत्रिम महंगाई के चलते गरीब तथा मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट डगमगाना लाजमी है। वहीं दूसरी ओर भाव के इस अंतर से निपटने प्रशासन कोई सख्ती नही बरत रहा है। जिससे कि आमजन के कांधों पर से महंगाई का बोझ कम हो सके। परंतु , प्रभावी पहल के अभाव में संबंधितों की मनमानी बदस्तूर जारी है।
अनोखा तीर, हरदा। प्याज के थोक भाव में गिरावट के बावजूद फुटकर बाजार में इसका असर ना के बराबर है। थोक भाव में पहले की तुलना आधे का अंतर बताया जा रहा है, जबकि फुटकर बाजार में वही प्याज 20, 25 व 30 रूपये किलो तक मिल रही है। इस बारे में लोगों का कहना है कि थोक भाव में गिरावट होने पर फुटकर ग्राहकों को उसका लाभ मिलना चाहिये। लेकिन, ऐसा देखने को नही मिलता है। जिसका सीधा असर ग्राहकों की जेब पर पड़ता है। उन्होंनें यहां तक कहा कि प्याज, आलू समेत अन्य सब्जियों का थोक रेट बढ़ने पर जहां फुटकर बाजार में तुरंत उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं। लेकिन जब वही थोक रेट धड़ाम से नीचे लुढ़कता है तो ग्राहकों को उसका फायदा क्यों नही मिलता है ? यह सवाल लंबे समय से अनसुलझा है। शिक्षित व जागरूक नागरिक इस बात को बल देते हैं तो विके्रता यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि ये सब पुराना स्टॉक है। नया मॉल आने पर नये रेट लगाएंगे, जो सीधे तौर पर ग्राहकों का मन समझाने के बराबर रहता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार फुटकर बाजार की तुलना थोक मंडी में सब्जियों के दाम सस्ते हैं। क्योंकि दोनों जगह के भाव में काफी अंतर है। जिसका सीधा असर फुटकर में सब्जी खरीदने वाले ग्राहकों पर पड़ता है। इस कृत्रिम महंगाई के चलते गरीब तथा मध्यमवर्गीय परिवारों का बजट डगमगाना लाजमी है। वहीं दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर भाव के इस अंतर से निपटने के लिये प्रशासन का सख्त रूख अपेक्षित है, ताकि आम जनमानस के कांधों पर से महंगाई का बोझ कम हो सके। बहरहाल, ऐसे प्रयासों के अभाव में संबंधितों की मनमानी का आलम बदस्तूर जारी है।
एक से डेढ़ हजार रूपये गिरे
मिली जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश की विभिन्न मंडियों में बीतें एक सप्ताह में प्याज के थोक रेट में एक से डेढ़ हजार रूपये की गिरावट आई है। जिसके चलते प्याज ६०० रूपये से 1000 रूपये क्ंिवटल तक बिक रही है। जबकि 10 दिन पहले तक यही प्याज २००० से २२०० रूपये क्ंिवटल तक बिक चुकी है। हालांकि, थोक रेट लुढ़कने के बावजूद फुटकर मंडी में प्याज अब भी पुराने दाम पर बिक रहा है।
प्याज महंगा मिलने की वजह
दरअसल, प्याज उत्पादक किसानों को फसल का दाम 6 से 10 रुपये किलो तक मिल रहे हैं। जबकि यही प्याज बाजार में 20, 25 व 30 रुपये किलो तक ग्राहकों को मिल रही है। इस अंतर पर गौर करें तो किसान और सब्जी विक्रेता के बीच की कड़ी दलाल है, जो कमीशन पर सौदा तय करते हैं। इस तरीके से सब्जियों पर रूपये चार रूपये बढ़ जाते हैं। ऊपर से सब्जी विके्रता का मुनाफा अपनी जगह बरकरार है।
एक्सपोर्ट पर रोक की अवधि बढ़ाई
प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार ने हाल ही में प्याज के निर्यात से जुड़ा एक आदेश जारी किया है। आदेश के मुताबिक प्याज के निर्यात पर 31 मार्च 2024 तक प्रतिबंध था, जो कि अगले आदेश तक के लिए बढ़ा दिया गया है। वहीं प्रतिबंध का असर ये हुआ कि थोक बाजार में प्याज के दाम धड़ाम से गिर गए हैं। यहां बताना होगा कि ये पूरी व्यवस्था डिमांड और सप्लाई को कंट्रोल करने से संबंधित है। प्याज जब एक्सपोर्ट होता है तो एक निश्चित समय में प्याज की किल्लत तय मानी जाती है। ऐसी परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने के लिये सरकार ने प्याज के एक्सपोर्ट पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया है, ताकि देश में प्याज की किल्लत पैदा ना हो, वहीं आमजन को वाजिब दामों पर प्याज मिलती रहे। इसी क्रम में सरकार ने प्याज उत्पादक किसानों को राहत का प्लान भी तैयार किया है। सरकार जल्द ही किसानों से प्याज की खरीदी प्रारंभ करने वाली है, ताकि प्याज उत्पादक किसानों का मनोबल ना टूटे। इसी दिशा में सरकार ने प्याज निर्यात के क्षेत्र में एक मजबूत विकल्प को बहाल रखा है।
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