पानी पर टकटकी ….  ग्रीष्मकालीन मूंग के लिये पानी का इंतजार

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अनोखा तीर, हरदा। जिले में इस साल राजनीतिक गणित डगमगाने का सीधा असर ग्रीष्मकालीन मूंग के लिये नहरों में छोड़े जाने वाले पानी पर दिखाई दे रहा है। विगत दिनों यानि 12 मार्च को जिला जल उपयोगिता की बैठक में स्थानीय जनप्रतिनिधि, अधिकारी तथा नहर संस्था के प्रतिनिधि बैठक में शामिल रहे। इस दौरान सर्वसम्मति से 18 मार्च को नहर में पानी में छोड़ने की सहमति बनी थी, जो २०-२१ तारीख तक जिले की सीमा में प्रवेश करने का अनुमान लगाया था। इसके भरोसे जहां नहर से लगे खेतों में फसल कटाई की ताबड़तोड़ रफ्तार देखने को मिल रही है, ताकि ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई तथा आगे की सिंचाईं व्यवस्था पुख्ता हो सके। परंतु , महज दो महिने की ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल का बुआई कार्य पिछड़ता जा रहा है। क्योंकि, तवा डेम से अब तक पानी नही छूटा है। ऐसी स्थिति से किसान पानी के लिये टकटकी लगाए बैठे हैं। हालांकि प्रशासन आगामी 25 मार्च तक पानी छोड़े जाने की बात कह रहा है। वहीं दूसरी ओर अविलंब पानी मुहैया कराने को लेकर भारतीय किसान संघ ने मोर्चा संभाल लिया है। इसके लिये सिंचाईं के कमांड क्षेत्र अंतर्गत आने गांवों में पहुंचकर वहां के किसानों से संपर्क जुटाने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है, जो सीधे तौर पर किसी आंदोलन की सुगबुगाहट है। भारतीय किसान संघ के जल संसाधन विभाग के प्रभारी दीपचंद नवाद ने कहा कि अगले दो-तीन दिनों में पानी नही छूटा तो आंदोलन की राह अपनाएंगे, ताकि किसानों को सिंचाई के लिये पानी समय पर उपलब्ध कराया जा सके। श्री नवाद ने इस बात पर भी जोर दिया कि ग्रीष्मकालीन मूंग की बुआई के लिये अब काफी कम समय बचा है। सप्ताहभर बाद मूंग की बुआई किसानों को महंगा पड़ने के समान है। उन्होंनें यह भी कहा कि किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिये जल्द जल्द नहर में पानी छोड़े जाने की दरकार है।

बुआई के लिये समय कम

श्री नवाद ने कहा कि महज दो महिने की ग्रीष्मकालीन मूंग की जून माह से पहले कटाई संपन्न होना जरूरी है, अन्यथा मानसून की जद में आने का डर है। वहीं सबसे अहम फसल कटाई के बाद खरीफ फसलों के लिये किसानों को खेत तैयार करने की चुनौती रहेगी। ऐसा ना होने की दशा में आगामी फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ना तय है।

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