सत्ता के गलियारे से — रवि अवस्थी

 

तेरे राम, अब मेरे भी राम!

तेरे राम, मेरे भी राम, तुझमें भी राम, मुझमें भी राम। जय श्रीराम! कांग्रेस के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा का यह ट्वीट मप्र ही नहीं, देश की बदली हुई सियासत की ओर इशारा कर रहे हैं। कभी रामायण व राम सेतु को काल्पनिक बताने वाली कांग्रेस के नेता अब एक-एक कर ‘रामÓ की शरण में हैं। आलम यह कि जी-23 धीरे-धीरे जी-46 हो रहा है। कांग्रेस के दर्जनभर पूर्व मुख्यमंत्री व उनके समर्थक अब जय-जय श्रीराम का उद्घोष करने वाले हो गए।

 तिरस्कार की पीड़ा

मैं कोई शतरंज की चाल नहीं, जिसे तुम चल जाओगे। भूचाल हूं, कैसे संभाल पाओगे.. और दिग्विजय व जीतू पटवारी द्वारा गांधी-नेहरू परिवार को लेकर दी गई दुहाई भी कमलनाथ के कदम नहीं रोक सकी। उपेक्षा जब तिरस्कार में बदल जाए तो यह किसी भी स्वाभिमानी को आहत कर सकती है। फिर वह हिमंत बिस्वा सरमा हों या कमलनाथ। मप्र में जिस कांग्रेस को फिनिक्स पक्षी की तरह जीवित किया, पहले उसके अध्यक्षी छीनी। नए अध्यक्ष को लेकर भी कोई मश्वरा नहीं। इस पर राज्यसभा चुनाव में भी आश्वासन के बाद अनदेखी। उनके अनुभव व कद के लिहाज से यह पद वाकई कोई मायने नहीं रखते हैं लेकिन सम्मान की चाहत तो हर किसी को होती है। उम्र के इस पड़ाव में नाथ की पीड़ा व फैसले को एक दिन पहले छिंदवाड़ा जिले के उमरेठ में दिए गए उस बयान से समझा जा सकता है कि मैंने अपनी जवानी सेवा में खफा दी। अब मिलकर करेंगे विकास।

मोह भंग की ये भी वजह

हालांकि सिख दंगों में 23 अप्रैल को होने वाली सुनवाई और इससे पहले कोर्ट द्वारा नाथ की भूमिका को लेकर स्टेटस रिपोर्ट मांगा जाना। भांजे रतुल पुरी का 354 करोड़ के बैंक घोटाले मामले में ईडी का कसता शिकंजा व सांसद बेटे के भविष्य की चिंता को भी विरोधी नाथ के कांग्रेस से मोह भंग होने की बड़ी वजह बता रहे हैं।

यथा नाम तथा गुण

संयोजक, बीजेपी न्यू ज्वाइनिंग कमेटी, मप्र बीजेपी में यह पद नया है। जो वक्त की सियासी जरूरत के लिहाज से इजाद हुआ। पद भले नया है, लेकिन इसका दायित्व जिसे सौंपा गया, वह कमेटी के उद्देश्य वाले फन में माहिर हैं। नाम है- डॉ. नरोत्तम मिश्रा। एक दौर में सरकार के संकट मोचक। चुटकियां लेने व हाजिर जवाबी में माहिर डॉ. साहब को पार्टी से अब तक जो दायित्व मिला, उसे उन्होंने उम्मीद से बढ़कर बखूबी अंजाम दिया। मौजूदा भूमिका में भी शायद ही कोई दिन हो जब नया सदस्य बीजेपी न ज्वाइन कर रहा हो। कमेटी भले ही एक सदस्यीय है, लेकिन मिश्रा के मजबूत नेटवर्क से दूरस्थ जिलों के कांग्रेसी नेता, कार्यकर्ता भी बीजेपी में खिंचे चले आ रहे हैं। संभावित नए सियासी धमाके में भी मिश्रा की भूमिका बताई जाती है।

35 करोड़ का लक्ष्य

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को देश में 22 करोड़ वोट मिले थे। पार्टी का लक्ष्य इस बार 35 करोड़ का है। इसके चलते, पार्टी जल्दी ही एक अभियान लांच करने की तैयारी में है। इसमें राम मंदिर के अलावा मोदी सरकार की योजनाओं व उपलब्धियों को घर-घर पहुंचाया जाएगा। केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव व पार्टी महासचिव सुनील बंसल अभियान में समन्वय का काम करेंगे। यानी दीवार लेखन के बाद मध्यप्रदेश के नेताओं को अब घर-घर दस्तक देने की जिम्मेदारी मिलने वाली है।

प्रस्ताव के बहाने

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी भले ही यह दावा करें कि कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाए रखने के प्रयास में डंडे उन्होंने भी खाए, लेकिन राज्यसभा की इकलौती सीट के लिए जो रणनीति अपनाई गई, वह हम नहीं तो तुम भी नहीं वाली रही। सारे दांव फेल हुए तो पार्टी सुप्रीमो को आमंत्रित करने में देर नहीं की। हालांकि इस मामले में भी वह पिछड़ गए। मप्र से पहले हिमाचल व तेलगांना इकाई यह आमंत्रण दे चुकी थी। कांग्रेस सुप्रीमो भी इन आमंत्रणों की वास्तविकता से वाकिफ रहीं, लिहाजा उन्होंने राजस्थान को चुना। इधर, मप्र के मामले में अंतत: चली बुजुर्ग नेताओं की। लाटरी चार बार सांसद बनने में नाकाम रहे ग्वालियर के अशोक सिंह की खुली।

प्रदर्शन से दिखाई ताकत

मप्र युवा कांग्रेस विधानसभा सत्र के दौरान एक प्रभावी प्रदर्शन कर अपनी अहमियत साबित करने में सफल रहा। वहीं, सदन में पार्टी विधायक दल ने भी सत्र के अंतिम दिन को छोड़ अड़ियल रुख की बजाए चर्चा का रास्ता अपनाया। इस तरह, संगठन ने सड़क पर तो सदन में विपक्ष ने सरकार को घेरने की रणनीति अपनाकर प्रभावी विपक्ष की मौजूदगी का अहसास कराया। यह युवा सोच कार्यकर्ताओं को निराशा से उबारने में मददगार साबित हो सकती है।

बार-बार बदलता शेड्यूल

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा मप्र में कब प्रवेश करेगी और कितने दिन रहेगी। यात्रा के बार-बार बदलते शेड्यूल से अब प्रदेश कांग्रेस के नेता भी भ्रमित हैं कि यात्रा स्वागत की तैयारी आखिर की जाए तो कहां और कब। पहले चंबल से यात्रा आने की खबर थी। अब धार जिले के बदनावर से। तारीख पर तारीख तो पहले ही मिल रही है। एक तो आयकर का पैदा किया हुआ आर्थिक संकट, इस पर आए दिन बदलते सियासी समीकरण। इन्हें देखते हुए तो पुख्ता तौर पर यह भी नहीं कहा जा सकता कि यात्रा आएगी भी या नहीं।

तपस्या होगी फलीभूत

कैलाश मकवाना मप्र कैडर के वर्ष 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और वरिष्ठता के नाते मप्र के भावी डीजीपी की दौड़ में भी शामिल हैं। फिलहाल, वर्ष 2022 में लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना में महज छह माह के अपने सेवाकाल के दौरान की सीआर में सुधार को लेकर सरकार को दिए प्रेजेंटेशन को लेकर चर्चा में हैं। वजह भी है, मकवाना का सेवा संवर्ग भले ही रुतबे वाला हो लेकिन लोकसेवा में आए दुर्गुणों को उन्होंने अपने उपर कभी हावी नहीं होने दिया। इसके चलते उनकी छवि बेदाग व 35 साल की सीआर भी हमेशा उत्कृष्ट रही।

कर्तव्यनिष्ठा उनका प्रमुख गुण

लोकायुक्त डीजी रहते उन्होंने जांच एजेंसी के उद्देश्य के अनुरूप भ्रष्टों पर शिकंजा कसा तो यह तत्कालीन जिम्मेदारों को रास नहीं आया। अल्पावधि में पद से तो हटाया ही, सीआर बिगाड़कर 35 सालों की मेहनत पर भी पानी फेरने का काम हुआ। मकवाना मूलत: उज्जैन से हैं। निजी जीवन में वह बाबा महाकाल के अनन्य भक्त भी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए, बाबा उनकी तपस्या को अवश्य फलीभूत करेंगे।

 

 

 

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