हरदा बम ब्लास्ट

 

नितेश गोयल, हरदा। नगर के डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम वार्ड क्र.३१ में हुए पटाखा फैक्ट्री में बम ब्लास्ट कहें या बारूद की खदान में हुए ब्लास्ट के मामले में 4 दिन बीत चुके हैं। इस दौरान 3 कलेक्टर और 3 एसपी भी बदल गए हैं। जिस पटाखा फैक्ट्री में ब्लास्ट हुआ है, वहां की स्थिति देखकर प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव तक यही कह रहे हैं कि यह पोखरण में हुए परमाणु बम परीक्षण जैसा या कोई बड़ा आतंकी हमले जैसी घटना थी। ऐसे भयावह हादसे के बाद भी हरदा जिले का शासन प्रशासन जिस तरह से गंभीर होकर कार्य करना चाहिए था, वह कहीं से लेकर कहीं तक दिखाई नहीं दे रहा है या तो प्रशासन खुदके अधिकारी-कर्मचारियों को बचाने के चक्कर में लगा हुआ है या कोई ऐसी अज्ञात ताकत है, जो आरोपियों को बचाने के लिए पूरा मामला दबाने में जुटी हुई है। अनोखा तीर ने आज प्रशासन द्वारा की जा रही इस मामले की कार्यवाहियों को जानने का प्रयास किया तो कई ऐसे अनसुलझे और साधारण कार्यवाहियां दिखाई दी, जिससे इस कुकृत्य को करने वाला आरोपी तो बचना निश्चित दिखाई दे ही रहा है, वहीं जो अधिकारी कर्मचारियों की भूमिका इस मामले में संदिग्ध थी, वह भी आसानी से बच जाएंगे। हमारे कुछ ऐसे ही सवाल हैं, जिसके कारण हमें प्रशासन की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह लगाना पड़ रहा है। बीते दो दिनों की ही बात करें तो यह जो फैक्ट्री संचालित हो रही थी, वह हरदा के रिहायशी क्षेत्र वार्ड क्र. ३१ डॉ एपीजे अब्दुल कलाम में स्थापित थी, लेकिन कागजों पर प्रशासन इसे बैरागढ़ में स्थापित होने की बात दिखा रहा है। दो दिनों से जो शासकीय समाचार प्रसारित हो रहे हैं, उसमें बैरागढ़ की ही घटना का उल्लेख किया जा रहा है। दूसरा सवाल यह है कि सारा हरदा शहर जानता है कि इस पटाखा फैक्ट्री का मास्टर माइंड और मुख्य आरोपी राजेश अग्रवाल है, लेकिन पुलिस प्रशासन द्वारा उसे रिमांड पर लेने तक की जरूरत नहीं समझी गई, जबकि उसी से ही संपूर्ण जानकारी मिलती की वह बारूद के अथाह भंडार के साथ और क्या-क्या अवैध सामग्री का व्यापार कर रहा था, जिसके कारण इतना भीषण विस्फोट हुआ। देखने वाली बात यह भी है कि संपूर्ण कारोबार राजेश अग्रवाल के माध्यम से ही संचालित किया जाता था, जो लायसेंस लिए गए थे, वह तीन नामों से थे। जिसमें राजेश अग्रवाल, सोमेश अग्रवाल और प्रदीप अग्रवाल थे। इस घटना में पुलिस दो आरोपियों को पकड़ने की तो बात कर रही है, लेकिन इन्हीं के तीसरे पाटनर प्रदीप अग्रवाल पर अब तक क्यों कार्यवाही नहीं की गई है। देखने वाली बात यह है कि यदि पुलिस प्रशासन वास्तविक रूप से आरोपियों को सख्त से सख्त सजा दिलवाना चाहता तो अब तक उन सभी लोगों के परिजनों से अलग-अलग एफआईआर दर्ज कराई जानी चाहिए थी, जिनकी जान गई है या वह घायल हुए हैं। इसमें कई लोग तो ऐसे हैं, जिनका इस पटाखा फैक्ट्री से कोई संबंध ही नहीं था। राह चलते लोग और वहां पर रहने वाले लोग इस अवैध फैक्ट्री के शिकार हुए हैं। इसलिए सभी लोगों की अलग-अलग एफआईआर होना चाहिए, जिससे इस बार यह आरोपी किसी भी तरह से कानूनी शिकंजे से नहीं छूट पाए। कायदे से तो हरदा के हर रहवासी को पुलिस थाने जाकर इन अवैध कारोबारियों के खिलाफ एफआई करवाना चाहिए, क्योंकि इस पटाखा फैक्ट्री के ब्लास्ट से जो भूकंप आया था, उससे उनके घरों की नींबे कमजोर हुई हैं और उस ब्लास्ट से जो भोपाल के गैसकांड की तरह जहरीला धुआं निकला था, उससे कहीं न कहीं उनकी आंखों और स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ा है। एक ओर प्रदेश की सरकार और प्रशासन छेड़खानी या झगड़े के मामले आरोपियों के घर सहित उसका कारोबार बुलडोजर से नष्ट कर देता है, पत्थर फैंकने वाले दंगाईयों से नुकसान की पूरी राशि वसूल करता है, उसी तरह इस पटाखा फैक्ट्री में हुए जघन्य अपराध ेके आरोपियों की जो अरबों की अर्जित संपत्ति है, उस पर बुलडोजर चलाकर उसे बेचकर पीड़ितों को सहायता राशि उपलब्ध कराया जाना चाहिए। लेकिन यह सब करता प्रशासन कहीं से लेकर कहीं तक दिखाई नहीं दे रहा है। गत दिवस रात्रि को इन्हीं आरोपियों की सिराली के पीपलपानी स्थित पटाखा फैक्ट्री के पटाखों को जिस तरह प्रशासन नष्ट करने और नहर में फैंककर अपने कर्तव्यों की इतिश्री करने में लगा हुआ था, उससे तो यही लग रहा है कि या तो प्रशासन अपने आप को बचाने का प्रयास कर रहा है या आरोपियों को जीवनदान देने का कार्य प्रारंभ हो गया है।

चार दिन बाद भी क्यों फैलाना पड़ रहा हाथ

रिहायशी क्षेत्र में हुए ब्लास्ट के बाद वहां लगभग रहने वाले ६० परिवारों के घर पूरी तरह तहस-नहस हो गए हैं। न तो इन लोगों के पास कोई खाने की व्यवस्था है और न ही कोई रहने की व्यवस्था है। घटना स्थल के समीप ही किसी तरह यह परिवार रह रहे हैं। घटना के चार दिन हो चुके हैं और अब तक प्रशासन इनके लिए सेल्टर होम तक स्थापित नहीं कर पाया है। खाने पीने के लिए भी इन लोगों को दूसरों के भरोसे ही रहना पड़ रहा है। शहर में कई समाजसेवी सेल्फी खिंचाने के चक्कर में इनके भोजन पानी की व्यवस्था तो कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन को चाहिए कि तत्काल इन प्रभावितों को रहने एवं खाने-पीने की व्यवस्था उपलब्ध कराएं। जिस तरह बाढ़ आने पर भोजन पानी की व्यवस्था होनी चाहिए थी, वैसी ही व्यवस्था इन लोगों की कराई जानी चाहिए थी। इन लोगों का क्या कसूर था जो आज इन लोगों को किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा था। क्या प्रशासन के पास इतनी भी राशि नहीं है कि वह तत्काल इनकी व्यवस्था कर पाए। प्रशासन को चाहिए कि जिन लोगों के मकान पूरी तरह नष्ट हो गए हैं, वह लोग अब तत्काल तो अपना मुआवजा मिलने के बाद मकान नहीं बनवा सकते इसलिए उन लोगों की व्यवस्था वह नगरपालिका द्वारा बनाए गए पीएम आवासों में करवा सकता है, जिससे उन्हें तत्काल राहत मिल सकती है। वहीं राशन दुकानों से भी उन्हें अनाज उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जिससे उन्हें किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत न पड़े।

Views Today: 4

Total Views: 88

Leave a Reply

error: Content is protected !!