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क्या आप जानते हैं क्यों की जाती है मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, यहां जानें महत्व और विधि

आज देश भर में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का उल्लास छाया हुआ है। आज बरसों से अस्थाई मंदिर में रह रहे रामलाल नवीन मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होंगे। चलिए आज हम आपको प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है और इसका क्या महत्व है यह बताते हैं।

अनोखा तीर :- आज 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा रखी गई है और इस भव्य उत्सव का उल्लास पूरे देश में देखने को मिल रहा है। देश के सभी धार्मिक स्थानों से लेकर लोगों के घरों, प्रतिष्ठानों और दफ्तरों में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान की शुरुआत कुछ दिनों पहले ही हो गई थी। हिंदू धर्म में बताए गए नियमों के मुताबिक बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति पूजन नहीं की जाती है। व्यक्ति अगर इस नियम को अनदेखा करता है तो उसे पूजा के शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है। क्या आप यह जानते हैं कि आखिरकार प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है तो चलिए आज हम आपको इस बारे में बताते हैं।

क्या होती है प्राण प्रतिष्ठा

सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है। आपको बता दें कि प्रतिमा स्थापना के समय प्रतिमा के रूप को जीवित करने के लिए जो प्रक्रिया की जाती है वही प्राण प्रतिष्ठा कहलाती है। सनातन धर्म में इस विधि का विशेष महत्व माना जाता है। आज अयोध्या में भी रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है जिसके लिए अनुष्ठान 16 जनवरी से चल रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही जिस देवी देवता की प्रतिमा होती है उनकी पूजन अर्चन शुरू होती है।

क्या होता उद्देश्य

धर्मगुरुओं द्वारा जो जानकारी दी गई है उसके मुताबिक प्राण प्रतिष्ठा करने का मुख्य उद्देश्य किसी मूर्ति में देवी देवता के शक्ति स्वरूप को स्थापित करना होता है। पूजन पाठ, मंत्रों और अनुष्ठान के माध्यम से यह सब किया जाता है। शास्त्रों में ये बताया गया है कि पत्थर की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद रोजाना पूजन अर्चन जरूरी है।

कैसी होती है विधि

प्राण प्रतिष्ठा के क्रम में सबसे पहले प्रतिमा को गंगाजल या फिर कम से कम पांच नदियों के जल से स्नान करवाया जाता है। इसके बाद कपड़े से साफ करने के बाद भगवान को नए वस्त्र पहने जाते हैं और उनके स्थान पर विराजित किया जाता है। विराजित करने के बाद भगवान को चंदन का लेप लगता है और विशेष श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद बीज मंत्रों की सहायता से प्राण प्रतिष्ठा होती है और पांचोंपचार कर भगवान का पूजन होता है। आखिर में आरती और प्रसाद वितरण होता है।

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