श्रीराम कराएंगे भवसागर पार

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पांच सौ साल के संघर्षों का प्रतिफल, तो भाजपा घोषणा पत्र का अहम मुद्दा भी है राम मंदिर

प्रहलाद शर्मा

संपादक

भारतवर्ष की भूमि पर कल से एक कालखंड पूरा होकर एक नया अध्याय शुरू होने जा रहा है। असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र अयोध्या में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह विध्वंस के 500 साल के संघर्षों और इंतजार के बाद संपन्न हो रहा है। भारत भूमि पर 22 जनवरी 2024 की तारीख इतिहास रचने वाली तिथि बनने जा रही है। आखिर सदियों से जिस दिन का इंतजार करते करते हमारी कई पीढ़ियां बीत गई और आज जब वह शुभ दिन आया तो हमारे उल्लास की सीमाएं भला कहां किसी बंधन में रहने वाली है। प्राण प्रतिष्ठा समारोह चाहे श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में चल रहा हो लेकिन इसकी गूंज और आस्थावान लोगों की धार्मिक भावनाएं दसों दिशाओं में अपने पूरे वेग से प्रवाहित होती नजर आ रही है। इस आस्था के आत्माराम की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर भारत के गांव, गली चौबारे ही नहीं बल्कि दुनिया के कई शहर राममय होते नजर आ रहे हैं। भारत का जन-गण-मन राम की भक्ति में सराबोर है तो अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान, नेपाल जैसे 60 से अधिक देशों में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। शोभा यात्राएं निकाली जा रही है, तो वहीं अयोध्या से सीधा प्रसारण देखने-दिखाने की व्यवस्थाएं भी की गई है। प्रभु श्रीराम की ससुराल जनकपुर से तो 500 से अधिक सजी धजी टोकरियों में अपने दामाद श्रीराम के लिए उपहार भी अयोध्या भेजे गए हैं। नेपाल में 22 जनवरी को जहां विशेष पूजा अर्चना समारोह आयोजित किए जा रहे हैं तो वहीं पूरे देश में शराब और मांसाहारी भोजन की बिक्री रोकने का भी आव्हान किया गया है। भारत में जहां 22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में पांच वर्ष की आयु वाले बालरुप रामलला की 51 इंच ऊंचाई वाली मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होगी तो वहीं पूरे देश के देवालयों में भी धार्मिकता से ओतप्रोत आयोजन किए जाएंगे। वैसे तो पिछले एक सप्ताह से ही पूरा देश राममय नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर धार्मिक स्थलों की साफ सफाई और साज सज्जा के साथ ही शहरों से लेकर गांवों तक भगवा लहराते नजर आ रहा है। सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी पूरी तरह श्री राम महिमा से अटा पड़ा है। भला ऐसा हो भी क्यों नहीं, यह हमारी आस्था की पराकाष्ठा को जाहिर करने का वह सौभाग्यशाली पल है जिसके लिए हमारे पूर्वज तरसते रहे। हम और हमारी पीढ़ी भाग्यशाली हैं कि हमें सदियों के इंतजार पश्चात आज वह दिन देखने को मिल रहा है। हमें नहीं पता 1528 के पहले की अयोध्या और वहां स्थित श्रीराम मंदिर कैसा रहा होगा। हम उस राम मंदिर की कल्पना मात्र कर सकते हैं जिसे मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने रामकोट में स्थित श्रीराम के जन्म स्थान पर बने मंदिर को ध्वस्त किया था। तब से लेकर आज तक हमारे पूर्वजों ने इस घड़ी के लिए कितने पापड़ बेले, कितना संघर्ष किया, कितना बलिदान दिया, कितनी कानूनी पेचीदगियों का सामना करते हुए लड़ाई लड़ी। इतिहास बताता है कि मुगलों का शासन खत्म होने पश्चात जब अंग्रेजों की हुकूमत थी तब पहली बार 1934 में इस विवादित क्षेत्र को लेकर जन आक्रोश भड़का था और जिस राम जन्मभूमि पर मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनाई गई थी, उसे तोड़ने का कार्य किया गया था। तब ब्रिटिश सरकार ने उसकी मरम्मत कराई थी। इसके बाद 23 दिसंबर 1949 को फिर हिंदूओं ने ढांचे के केंद्र स्थल पर रामलला की प्रतिमा रखकर पूजा अर्चना शुरू की थी। लेकिन यह विवाद तब भी समाप्त नहीं हुआ था और मुस्लिम पक्ष हावी हो गया था। मामला न्यायालय में पहुंच चुका था, लेकिन जन भावनाओं को बल तब ओर अधिक मिला जब 1980 के बाद भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई और उसने सनातन की भावनाओं के केन्द्र अयोध्या राम जन्मभूमि को अपना राजनीति मुद्दा बनाया। आज अगर कोई भी राजनीतिक दल भाजपा पर राम मंदिर के राजनीति करण का आरोप लगाता है तो वह हिंदुस्तान की जनता के सीधे तौर पर गले नहीं उतरता है। चूंकि भाजपा ने इसे आज अपना मुद्दा नहीं बनाया है, बल्कि जिस समय वह लोकसभा में 2 सासंदों के साथ सत्ता में आई थी उसके बाद से ही राम नाम का सहारा लेकर जनता के बीच पहुंचने लगी थी। शायद तब भाजपा के तात्कालीन नेताओं ने भारतीय जनता की उस नब्ज को टटोल लिया था कि सत्ता की चाबी श्रीराम के हाथों से ही हमें मिल सकती है। खैर मुद्दा भी सही था, श्रीराम की भूमि पर राम ही सुरक्षित न हो तो भला देश कैसे सुरक्षित हो सकता है और रामराज्य की कल्पना कैसे की जा सकती है। इसी मुद्दे को लेकर 25 सितंबर 1990 को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से श्रीराम रथ यात्रा शुरू की थी। जिसे उस समय के प्रधानमंत्री वीपी सिंह रोकना चाहते थे। लेकिन तभी विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर मुद्दे को ओर गरमा दिया था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भाजपा के अनुसांगिक संगठनों ने इसे पूरी तरह से अपने पाले में लेते हुए 6 दिसंबर 1992 को हजारों कारसेवकों के साथ अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे को एक बार फिर ढहा दिया। आज अगर भाजपा सरकार के कार्यकाल में असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र अयोध्या राम मंदिर आकार ले रहा है और वहां प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो यह लाजमी है कि भाजपा राजनीति तौर पर उसका लाभ लेना चाहेगी। वह चाहे न्यायालय के फैसले से विवाद का समाधान हुआ हो, लोगों द्वारा दी गई दान राशि से मंदिर का नवनिर्माण हो रहा हो, समारोह का आयोजन मंदिर समिति द्वारा किया जा रहा हो, लेकिन इस पावन अवसर के लिए खुले तौर पर जनता के बीच पहुंचकर मुद्दा तो भाजपा ही उठाती रही थी। आखिर कौन भूल सकता है उन हूंकार भरें गगन भेदी नारों को जब भाजपा कार्यकर्ता कहते थे कि कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेंगे। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल भाजपा पर तंज कसते हुए कहते थे कि पूछो उनसे जो कहते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे, लेकिन तारीख नहीं बताएंगे।

खैर राम और राम मंदिर पूरी तरह से धार्मिक मसला है। यह लोगों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा बेहद ही संवेदनशील मुद्दा है। इसमें किसी को कोई शक-ओ-शुब्हा नही है। यहां मुद्दा केवल उसको राजनीतिक रंग देने का है, तो यह साल ही चुनावी है फिर भला राजनीति से कैसे अछूती रह सकती है। प्राण-प्रतिष्ठा और उसके कार्यक्रम चाहे धार्मिक हो, लेकिन जिनकी पहल और जिनके नेतृत्व में किए जा रहे हैं, वह तो राजनीतिक हैं। यही कारण है कि जो राजनीतिक दल अभी तक सनातन और राम मंदिर से जुड़े मुद्दों से स्वयं को दूर रखे हुए थे, आज वही इस राष्ट्रव्यापी मुद्दे से अपनी जमीन खिसकती देख सवाल खड़े कर रहे हैं। उनको लगता है कि भगवान राम आराध्य और साधक की जगह राजनीति साधन बन गए हैं। चूंकि देश की राजधानी से लेकर पंचायत की चौपालों तक भाजपा के छोटे से लेकर बड़े नेता तक इस आयोजन के प्रचार-प्रसार में जुट गए हैं। आरएसएस और भाजपा से संबंध रखने वाले सभी संगठनों का फोकस इस समय राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम पर है। ऐसी स्थिति में अन्य राजनीतिक दल इसे भाजपा का आयोजन करार देकर कार्यक्रम में उपस्थिति से चाहे पल्ला झाड़ लें, लेकिन जन भावनाएं तो इस आयोजन से परवान चढ़ रही हैं। अब जनता को किसी राजनीतिक दल की अगवाई से सरोकार नहीं रहा, बल्कि वह स्वप्रेरित होकर इसे दीपोत्सव की भांति ही पूरे हर्षोल्लास से मनाने को आतुर नजर आ रही है। सरयू के तट पर रामलला के इस भव्य आयोजन दौरान वहां पहुंचने वाली धार्मानुरागी जनता आस्था के वशीभूत होकर आलादित है। तो वहीं इस आयोजन में सहभागिता निभाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ से लेकर हर भाजपा नेता के लिए यह आयोजन आगामी ३ माह पश्चात होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भवसागर पार कराने जैसा है। खैर अभी तो सब राममय हो चले हैं और ऐसी स्थिति में हम तो यही कहेंगे कि यह आयोजन

‘भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा।

बिषइन्ह कहँ पुनि हरि गुन ग्रामा। श्रवन सुखद अरु मन अभिरामा।Ó

बनता है हर काम राम तुम्हारे चरणों में, करते हैं बारंबार प्रणाम तुम्हारे चरणों में। श्रीराम की नगरी अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा समारोह पर आप सबको हार्दिंक बधाई।

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