कृति का लोकार्पण …   जिले के 68 साहित्यकारों की रचनाओं का संकलन

 

हरदा अंचल के रचनाधर्मियों की प्रमुख रचनाओं का साझा संग्रह कवि और कविता का सोमवार को होटल हवेली में साहित्यिक हस्तियों की मौजूदगी में लोकार्पण हुआ। वनमाली सृजन पीठ द्वारा संकलित साझा संग्रह में जिले के 68 साहित्यकारों की रचनाओं का समागम है। वहीं लोकार्पित कृति में अंचल के उन दिवंगत रचनाकारों की कृतियां शामिल हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से हरदा अंचल को अलग पहचान दी है।

 

अनोखा तीर, हरदा। हरदा अंचल की रचना धर्मिता को समन्वित करते हुए आईसेक्ट प्रकाशन के तत्वाधान में प्रकाशित तथा वनमाली सृजन केंद्र द्वारा संकलित साझा संग्रह हरदा – कवि और कविता कृति का सोमवार को स्थानीय निजी होटल में लोकार्पण हुआ। साहित्यकार ज्ञानेश चौबे द्वारा संपादित कृति का डॉ सी.व्ही. रामन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ संतोष चौबे के कर कमलों ये यह लोकार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ। लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रसिद्ध समीक्षक प्रोफेसर अजातशत्रु , मुख्य वक्ता के रूप में व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर, कहानीकार मुकेश वर्मा, शरद जैन एवं बलराम गुमाश्ता मंचासीन रहे। साहित्य समाज का दर्पण होता है। इसी बात का अनुसरण कर हरदा अंचल के रचनाधर्मियों की प्रमुख रचनाओं का साझा संकलन वनमाली सृजन पीठ की हरदा इकाई ने किया है। जिसमें हरदा जिले के 68 साहित्यकारों की रचनाओं का समागम है। कृति में अंचल के उन दिवंगत रचनाकारों की भी कृतियां शामिल हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं से हरदा अंचल को अलग पहचान दी। इस मौके पर मंचासीन अतिथियों ने कार्यक्रम का शुभारंभ वीणा वादिनी मॉ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया। इस दौरान वनस्थली एकाडमी हरदा की छात्राओं ने स्वरमयी स्तुति प्रस्तुत की। इस अवसर पर डॉ संतोष चौबे ने कहा कि रचनाओं में दार्शनिकता, मौलिकता व ईमानदारी बड़े शहरों की अपेक्षा छोटे कस्बों या अंचलों में अधिक हैं। बड़े अंचलों में रचना को इतना कृत्रिम तरीके से बना दिया जाता हैं कि उसकी मौलिकता खत्म हो जाती हैं। विख्यात व्यंग्यकार कैलाश मंडलेकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि अंचल के साहित्यकारों का संग्रह एक सांस्कृतिक एकता को दर्शाता हैं, जो वर्तमान की आवश्यकता हैं। रचनाकारों के साथ ही सृजनकर्ता में एक गहरी प्यास होती हैं अपनी रचना या कला को लेकर उन्हें मंच की आवश्यकता है, लीडरशिप की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि हमे अपनी रचनाधर्मिता, सृजनशीलता पर विचार करने की आवश्यकता है। हमारी साहित्यिक परंपरा उर्वर रही हैं, उपजाऊ है। जिसे युवाओं को आत्मसात करना चाहिये। कार्यक्रम का संचालन गोविंद शर्मा ने किया। वहीं आभार शोभा वाजपेयी ने माना । इस मौके पर वनमाली सृजन पीठ के अध्यक्ष शरद जैन, डॉ मुकेश वर्मा, राजीव बाहेती एवं कुलसचिव डॉ रवि चतुर्वेदी उपस्थित रहे।

 

.. तो भारतीय भाषाओं का विस्तार तय

पुस्तक के संपादक ज्ञानेश चौबे ने कृति में शामिल रचनाओं के साथ साथ रचना शैली पर प्रकाश डाला। कहा कि कविता ऐसी हो जो पाठकों के मस्तिष्क पर प्रभाव डाले अर्थात पाठक सरलता से समझ सकें। हिंदी का विस्तार होगा तो भारतीय भाषाओं का भी विस्तार होगा, भाषा की समृद्धि बोलियों से हैं तो हमें भाषा के साथ साथ बोलियों को भी सहेजना पड़ेगा।

 

गीतों की प्रासंगिकता पर रखी बात

लोकार्पण कार्यक्रम में प्रसिद्ध व्यंगकार प्रो. अजातशत्रु ने लता जी की तान अर्थात लता मंगेशकर के मधुर गीतों पर अपनी बात कही। हॉल में मौजूद साहित्य प्रेमियों ने लता जी के मधुर गीतों को सुना। इस दौरान प्रोफेसर अजातशत्रु ने गीतों की प्रासंगिकता, उन्हें किस विशेषता से उस समय गाया गया एवं उन गानों की लय व आलाप पर विस्तृत तथा महत्वपूर्ण जानकारी साझा की।

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