स्कूल पहुंचने वाली किताबे बन गई नाश्ता पाइंट पर डिस्पोजल
पन्नो पर परोसे जा रहे समोसे
ठंडे बस्ते में किताबों के चोरी का मामला
-पुलिस-शिक्षा विभाग नहीं कर रहा जांच
अनोखा तीर, आमला। बच्चों को बंटने आई किताबों के पन्ने अब शहर की गुमठियों और नाश्ते की दुकानें में रद्दी के काम आ रही है। किताबों के पन्नों पर समोसा, कचोड़ी, बड़े सहित अन्य सामग्री परोसी जा रही है, लेकिन यह किताबे कहां से आई, इसकी जांच तक नहीं हो रही है। शिक्षा विभाग ने शिकायत कर इतिश्री कर ली, वहीं पुलिस भी शिकायत के बाद कोई कार्रवाही नहीं कर रही है। जिसके कारण सरकारी स्कूलों में पहुंचने वाली किताबे अब गुमठियों में खुलेआम रद्दी के तरह इस्तेमाल हो रही है। दरअसल कुछ ही दिन पहले आमला नगर के वार्ड क्र.13 बोडखी मार्ग पर स्थित नेहरू आंगनवाड़ी केन्द्र के पुराने भवन में बच्चों को बांटने आई किताबों के चोरी होने का मामला सामने आया था। शिक्षा विभाग ने आनन-फानन में शिक्षकों से जांच कराकर थाने में शिकायत कर दी। सबसे बड़ी बात यह है कि जो किताबे चोरी हुई है, वह वर्तमान शिक्षण सत्र 2023-24 की है और इन किताबों को कमरे से बाहर किसने निकालकर बेच दिया। लेकिन इसकी जांच तक नहीं हुई और न ही किसी पर ठोस कार्रवाही हुई है। इससे सरकारी तंत्र पर सवाल खड़े हो रहे है।
चोरी के बाद हटाई शेष किताबे
चोरी के बाद शिक्षा विभाग ने शेष बची किताबों को अन्य स्थान पर पहुंचा दिया। शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुछ लोगों ने जान बूझकर झूठी अफवाह फैलाई है। जबकि स्कूलों में वितरण के बाद जो किताबों का स्टॉक बचा था, वह पूरा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि शहर के नाश्ता पाइंट पर जिन किताबों में समोसे सहित अन्य खाद्य सामग्री परोसी जा रही है, वह किताबे कहां से आई। यह भी एक जांच का विषय है। सबसे बड़ी बात यह है कि गुमठियों पर किताबों के पन्नों में खाद्य सामग्री परोसने का मामला सामने आने के बाद भी पूछताछ नहीं की जा रही है। सरकारी स्कूल के बच्चों को वितरित करने आई निशुल्क किताबों की चोरी मामले में अब तक जांच शिकायत तक ही सीमित है। निशुल्क किताबों के वितरण के समय बड़े जोरशोर से सरकारी की योजनाओं का बखान करने वाले अधिकारी तो दूरी, जनप्रतिनिधियों का मौन रहना भी समझ से परे है। जबकि सूत्रों की माने तो कमरा पूरा किताबों से भरा हुआ था और अब स्थिति यह है कि जहां कमरे में किताबे रखी थी, वहां चंद किताबे ही शेष बची है। इतने बड़े मामले के बाद भी शिक्षा विभाग के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का मौन रहना सवाल खड़े कर रहा है।
रद्दी में इस्तेमाल हो रही किताबे, बच्चों के लिए अनमोल
किताबो का मोल भले ही शिक्षा विभाग की नजर में कुछ न हो, किन्तु यह किताबें उन बच्चों के लिए अभी भी अनमोल है, जिन्हें अब तक निशुल्क किताबे नहीं मिल पाई है। ऐसे बच्चों को किताबों का वितरण किया जाना चाहिए। जानकार बताते है कि किताबे की डिमांड भेजने के बाद ही किताबे मिलती है। ऐसे में जरूरत से अधिक किताबे बुलाकर शासन की राशि खर्च होती है। लेकिन जिम्मेदार अंदाजन किताबों की डिमांड भेज देते है और बाद में किताबे धूल खाती है।
इनका कहना है…
किताबे चोरी नहीं हुई है। जितनी किताबों का स्टॉक होना था, वह है। किताबों को वहां से हटा दिया है। जगह नहीं होने के कारण किताबों को वहां रखा गया था। लोगों ने किताबे चोरी होने की अफवाह फैलाई है।
धनराज सूर्यवंशी, ब्लाक शिक्षा अधिकारी, आमला