कार्रवाई ना होने से बुलंद हो रहे हौंसले
सस्ती मजदूरी व जैसे-तैसे काम निकालने की मंशा को पूरा करने के लिए स्वार्थप्रिय लोग बालश्रम को बढ़ावा देने में पीछे नही रहते हैं। इसके लिए बकायदा कर्ज का कूचक्र तैयार किया जाता है। जिसमें गरीब एवं भोले-भाले लोग उलझकर रह जाते हैं। फिर उसी कर्ज के एवज में खुद के अलावा अपने छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी के काम में उतारना उनकी मजबूरी बन जाता है। ऐसे ही मामलों के कारण यहां होटल-ढाबों के अलावा अन्य कार्यो में संलग्न बच्चे पढ़ाई के बजाय दो पैसे की जुगत में जुटे रहते हैं।
अनोखा तीर, हरदा। बालश्रम की समस्या समाज के लिए अभिशाप बना हुआ है। जबकि बचपन को ऐसे चंगुलो से मुक्त रखने की दृष्टि से कठोर कानून बना है। बावजूद इसकी बानगी देखने को मिल जाएगी। चंद पैसों के लालच में लोग नौनिहालों के भविष्य को चकनाचूर करने से बाज नही आ रहे हैं। जिसका ज्वलंत उदाहरण मुख्यालय समेत चाय और समोसे की रेहड़ी व होटल-ढाबों के अलावा शादी समारोह तथा वीरान गलियों में भंगार इकट्ठा करने के लिए कम उम्र के बच्चों को काम में झोंक दिया जाता है। जिसके चलते कई गरीब परिवारों की खुशियां बेपटरी हो गई हैं। हालांकि, महंगाई के दौर में जरूरतों को पूरा करने की ललक एवं परिवारजनों की जिद छोटे-छोटे बच्चों को हाड़तोड़ मेहनत करने के लिए विवश कर देती है। ऐसा इसलिये, क्योंकि अधिकांश मामलों में यही देखने व सुनने को मिलता है। वहीं दूसरी ओर कर्ज का बोझ इसी मजबूरी का दूसरा पहलु है। कर्ज के बदले या यूं कहें कि उसके चुकारे का बोझ बच्चों के माता-पिता को कलेजे पर पत्थर रखने के लिए मजबूर कर देता है। जिसका स्वार्थप्रिय लोग फायदा उठाने में जरा भी संकोच नही करते हैं। उनकी यही मंशा सस्ती मजदूरी का कूचक्र तैयार करती है। खैर, ये सब काम करने और करवाने वालों के बीच का मामला है। यहां मुख्य मुद्दा यह है कि इन सबके बीच बालश्रम कानून कहां है ? वह भी तब, जब कड़ाई से उसके परिपालन की दरकार है। क्योंकि, बाल मजदूरी पर प्रभावी रोक लगाने के उद्देश्य से ही बालश्रम कानून लागू हुआ है, ताकि समय-समय पर लापरवाह लोगों को कानून का पाठ पढ़ाया जा सके। लेकिन, इन सबके अभाव में सार्थक परिणामों का टोटा है। साथ ही व्यवस्था के आगे प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है।
पढ़ाई छोड़ दो पैसे की जुगत में व्यस्त
इसका सर्वाधिक असर नर्मदा के तटीय क्षेत्र तथा शहर की निचली बस्तियों में नजर आएगा। जहां पढ़ाई करने की उम्र्र में छोटे-छोटे बच्चें घाट पर घूमने-फिरने के अलावा ईंट भट्टे पर माता-पिता का हाथ बंटवाते दिख जाएंगे। इसी तरह शहर की निचली बस्तियों में रहने वाले बच्चे भंगार इकट्ठा करने के लिए निकल जाते हैं।
ओर तय की माता-पिता की जिम्मेदारी
इससे निपटने संकुल स्तर पर अभियान चालकर शिक्षकों ने ऐसे बच्चों को चिन्हित किया था, जो लंबे समय से स्कूल में अनुपस्थित थे। उनके माता-पिता को शिक्षा का महत्व बताने के साथ ही शासन की योजनाओं के जरिये उन्हें प्रोत्साहित किया था। वहीं बच्चों को हर रोज स्कूल भेजने उनकी जिम्मेदारी भी तय की थी।
यह प्रतिबंध भी बेअसर
उल्लेखनीय है कि कुछ यही हाल प्लास्टिक की पॉलिथिन पर लगे प्रतिबंध का है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से सरकार ने यह कदम उठाया है। वहीं प्रतिबंध को लागू भी कर दिया है। लेकिन जमीनी स्तर पर प्रतिबंध पूरी तरह बेअसर दिख रहा है। क्योंकि, शहर के चौक-चौराहों , बाजार क्षेत्र तथा हाथठेलों पर बेखौफ होकर प्लास्टिक की पॉलिथिन इस्तेमाल जारी है। बता दें कि पॉलिथिन पर प्रतिबंध लगने के बाद से प्रशासन ने समस्त नगरीय निकायों को कार्रवाई के लिये पाबंद किया है। जिसके परिपालन में नपा अमला सड़क पर उतरकर जहां दुकानदारों को सख्त हिदायत दे रहा है। वहीं आगे पॉलिथिन पाए जाने पर जुर्माने की कार्रवाई का संकेत दिया है। हालांकि, उनकी हिदायत का दुकानदारों पर असर नही हुआ है। परिणामस्वरूप पॉलीथिन का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है।
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