जबलपुर। संस्कारधानी के साहित्यकार मनोहर बिल्लौरे को सड़क किनारे उपेक्षित हैंडपंप ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई, वह बोला- मेरे आस-पास लोग आते-जाते थे। साफ-सफाई कर मेरी इज़्ज़त-अफजाई करते थे। मुझ पर अपना हक जताने लड़ते-झगड़ते भी थे। अब जब से जल-देवता रूठे हैं, कोई पूछने की छोड़िए देखता तक नहीं मेरी ओर। चारों तरफ कचरा-कूड़ा फैला है। मुझसे किसी को कोई आपत्ति नहीं। मेरे कोई सौ-डेढ़ सौ कदम पहले एक चबूतरा बना, फिर उस पर देवता बिराजे। पूजा-पाठ शुरू हुई। अब हर हफ्ते भीड़ जमती है दही की तरह। छोटी-मोटी अस्थाई दुकानें सज जाती हैं। मैं बिसूरता उतरा मुंह लिए खड़ा देखता रहता हूं। अभी पिछले महीने इसी डिवाइडर पर कुछ पहले नगर निगम की गाड़ी आई और वहां साल-डेढ़ साल पहले जमे पान-ठेले को भड़ाभड़ उठा ले गई। एक लड़का अपना रोजगार उजड़ता सुन्न पड़ी आंखों से देखता रहा। गाड़ी देवता की चरण-वंदना कर चली गई। बड़ी दिक्कत है।‘‘
अब न्याय कीजिए
हमारा शहर जबलपुर मध्य प्रदेश के पुनर्गठन के समय राजधानी बनते-बनते रह गया था। इसके हिस्से का गौरव भाेपाल की झोली में चला गया था। तब से लेकर अब तक यह शहर अपने उत्थान की बाट बड़ी शिद्दत से जोह रहा है। कमोवेश एक अदद हाई कोर्ट की मुख्यपीठ की सौगात के अलावा इसके दामन में कोई खास उपलब्धि नहीं आई है। अब जबकि मध्य प्रदेेश में नई सरकार अस्तित्व में आई है, तब यहां से विजयी हुए सत्ताधारी दल के सात विधायकों में से अधिक से अधिक को मंत्री पद से अलंकृत दिए जाने की अपेक्षा व्यवहारिक ही है। इसे लेकर बुद्धिजीवी वर्ग के बीच संवाद जारी है। सब अपनी राय खुलकर जाहिर कर रहे हैं। आमजन के बीच भी यह मुद्दा सरगर्म है। उनका कहना है कि हमने मतदान की जिम्मेदारी पूरी कर दी, अब हमारा भरोसा कायम रखने उचित निर्णय लिया जाए। हमने जिन जनप्रतिनिधियों का अपनी आवाज बनाकर विधानसभा भेजा है, उनको यथोचित सम्मान दिया जाए।
महानगरीय आभा मिले
स्थानीय स्वशासन नगर निगम व स्मार्ट सिटी प्रकल्प जबलपुर को महानगरीय आभा प्रदान करने लंबे अर्से से लुभावने दावों और वादों की बौछार करते चले आ रहे हैं। किंतु ये दावे और वादे ठीक तरह से हकीकत का लिहाफ पहनते अब तक नजर नहीं आए हैं। नैसर्गिक संपदा से आपूरित होने के बावजूद कस्बाई बसाहट वाला यह शहर अब तक इंदौर-भोपाल की तर्ज पर विकसित नहीं हुआ है। लिहाजा, सूबे की नई सरकार से जाहिरतौर पर अपेक्षा अत्यधिक बढ़ गई है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि फिलहाल यह डबल इंजन की सरकार जो ठहरी। उम्मीद की जा रही है कि इस दमदार सरकार की ओर से नगर सरकार को भरपूर सहयोग प्रदान किया जाएगा। ऐसा हाेने पर जबलपुर के विकास को पंख लगना तय है। वैसे इन दिनों यह शहर उड्डयन सेतु के एक हिस्से की सुविधा मिलने के बाद से खुशी से हवा में उड़ रहा है। यदि शेष हिस्से का अधूरा कार्य भी अतिशीघ्र पूर्ण कर दिया जाए तो इस खुशी में कई गुना इजाफा हो जाएगा।
कुछ माडल हो जाए
एक जमाने में जबलपुर की जनता को दमदार माडल रोड जैसी सौगात मिली थी। उन दिनों विश्वनाथ दुबे महापौर और रमेश शिवराम थेटे नगर निगम आयुक्त थे। गाहे-बगाहे जब भी जबलपुर के विकास का चर्चा होता है, तो संदर्भ बतौर इस सड़क का जिक्र अवश्य होता है। लोगबाग अपेक्षा करते हैं कि शहर के अन्य हिस्सों में भी कुछ माडल हो जाए। कुछ ऐसा निर्माण कराया जाए तो वक्त की धूल पड़ने के बावजूद ताजातरीन बना रहे। दरअसल, माडल रोड जितनी पुरानी होती जा रही है, उसकी मजबूती उतनी ही सराहना की पात्र बनती जा रही है। शहरवासी दिल खोलकर इस सड़क की तारीफों के पुल बांधने से गुरेज नहीं करते। नगर निगम के सेवानिवृत्त कर्मचारी भी वह पल याद करते हैं जब वे इस माडल रोड के लिए अपने वेतन से थोड़ी-थोड़ी राशि की कटौती के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे। काश, कुछ वैसा ही साझा आदर्श प्रयास एक बार फिर हो जाए।
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