जिले से कबकी फुर्र हो चुकी संगठन नामक चिड़िया, हरदा जिले में भाजपा संगठन नामशेष

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दैनिक अनोखा तीर, हरदा। राजनीति दृष्टि से भारतीय जनता पार्टी को कार्यकर्ता आधारित पार्टी और कार्यकर्ताओं को विचार आधारित कहां जाता है। भाजपा के संगठन पदाधिकारियों द्वारा अक्सर कहां जाता है कि हमारे संगठन में पुर्नविचार, पुर्नसमीक्षा ओर पुर्नगठन एक सतत प्रक्रिया है। वह इसे सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी, सर्वग्राही तथा सर्वसमावेशी संगठन भी निरुपित किया जाता रहा है। कांग्रेस की तुलना में भाजपा का संगठनात्मक ढांचा ज्यादा मजबूत माना जाता रहा है। लेकिन हरदा जिले में देखा जाए तो भाजपा में इस तरह के भारी भरकम शब्दों को सार्थक करने वाली संगठन रूपी चिड़िया कभी की फुर्र हो चुकी है। वास्तव में यहां संगठन मात्र नामशेष है। यह बात केवल हालिया विधानसभा चुनाव में जिले की दोनों विधानसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की हार मात्र को देखते हुए नहीं कहीं जा रही है, बल्कि यह स्थिति यहां पिछले लगभग 15 वर्षों से बनी हुई है। भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में संतोष पाटिल के कार्यकाल से ही संगठन के विघटन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज भी निरंतर जारी है। यहां संगठन में विचारवान कार्यकर्ताओं का अभाव बनता गया या यह कहना ज्यादा उचित होगा कि ऐसे कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जाता रहा और व्यक्ति पूजक चाटूकारों की फौज तैयार होती चली गई। जिसके चलते लंबे समय सत्ताधारी दल रहने वाली भाजपा जिले में व्यक्तिवादी बनकर रह गई। आज हालात यह हैं कि जिस वर्तमान जिलाध्यक्ष अमरसिंह मीणा को लक्की जिलाध्यक्ष संबोधित किया जाता रहा, वहीं भाजपा विरोधी कहलाने लगा। मैं नहीं कहता कि वह लक्की जिलाध्यक्ष साबित हुएं या नहीं, हुए तो किसके लिए और नहीं हुएं तो कैसे, लेकिन इतना अवश्य है कि इस दौरान भाजपा अपना सर्वव्यापी स्वरूप खो चुकी हैं। अखिल भारती विधार्थी परिषद और युवा मोर्चा जैसे प्रशिक्षणार्थी संगठनों से प्रखर वक्ता, पार्टी की रीति नीति और उद्देश्यों से परिपूर्ण कार्यकर्ता तराशकर मुख्य संगठन में आने की परंपरा भी लगभग ओझल होती जा रही है। वैसे कमोवेश यह स्थिति महज हरदा में ही नहीं अपितु प्रदेश के अधिकांश जिलों में बनी हुई नजर आती हैं। लेकिन लंबे समय तक सत्ता में बने रहने के कारण शीर्ष नेतृत्व ने भी इस ओर ध्यान देना लगभग बंद कर दिया है। जहां पार्टी के कद्दावर नेता सत्तारूढ़ होते हैं वहां संगठन उनका चाटुकार बनकर रह जाता है। बल्कि यह कहना अनुचित नहीं होगा कि वह नेता संगठन में अपने अनुसार नियुक्तियां करवा लेता है। जिससे उसकी राजनीतिक धमक बनी रहे। आज हरदा जिले में भाजपा संगठन अस्तित्व विहिन प्रतीत होता है। लगातार तीन बार जिलाध्यक्ष की बागडोर थामने वाले वर्तमान जिलाध्यक्ष अमरसिंह मीणा को जहां पार्टी ने पहले उनकी श्रीमती आशा मीणा को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाकर अलंकृत किया था। लेकिन राजनीति में व्यक्ति तभी तक समर्पित कार्यकर्ता‌ रहता है जब तक उसे कोई मलाईदार पद न मिले। पद मिलते ही वह कार्यकर्ता से नेता बन जाता है और उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ने लगती हैं। यही स्थिति श्री मीणा के सामने भी उभर कर आने लगी। पिछले नगर पालिका चुनाव में उन्होंने अपनी पत्नी को नगर पालिका अध्यक्ष पद का दावेदार मानते हुए कोशिश शुरू कर दी।‌ चूंकि अमरसिंह मीणा को जिलाध्यक्ष और इससे पहले उनकी श्रीमती आशा मीणा को जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाने में क्षेत्र के विधायक रहे भाजपा के कद्दावर नेता कमल पटेल की अहम भूमिका रही थी। कमल पटेल ने ही उन्हें जिलाध्यक्ष पद पर पुनः मनोनीत भी करवाया था।अमरसिंह मीणा लंबे समय कमल पटेल के विश्वसनीय भी रहे, किन्तु जिले में राजनीतिक परिदृश्य बदलते गए और श्री मीणा ने कमल पटेल से ज्यादा नगर पालिका अध्यक्ष रहे सुरेन्द्र जैन के प्रति अपनी निष्ठा दिखाना शुरू कर दिया। चूंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में सुरेन्द्र जैन पर कमल पटेल के विरुद्ध कार्य करने का आरोप लगाया गया था। इसी बात को लेकर कमल पटेल और सुरेंद्र जैन के बीच की खाई बढ़ती गई। वहीं दूसरी ओर भाजपा जिलाध्यक्ष अमरसिंह मीणा की निकटता भी सुरेन्द्र जैन से बढ़ती रही। भाजपा जिलाध्यक्ष का दूसरा कार्यकाल पूरा होने पर टिमरनी विधायक संजय शाह और सुरेंद्र जैन ने प्रदेश स्तर पर कवायदें कर उन्हें तीसरी बार भी जिले की कमान संभला दी। जबकि नगर पालिका चुनाव पश्चात कमल पटेल और अमरसिंह मीणा के बीच विरोधाभासी बयान से यह स्पष्ट हो गया था कि अब दोनों की पटरी बैठने वाली नहीं है। पिछले पंचायत चुनावों में भी संगठन की भूमिका नदारद जैसी ही बनी रही, जिसके चलते हरदा विधानसभा क्षेत्र की दोनों जनपद पंचायतों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया। वहीं हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी जहां जिलाध्यक्ष अमरसिंह मीणा स्वयं विधानसभा क्षेत्र से अपनी उम्मीदवारी कर रहे थे तो दूसरी ओर पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष सुरेंद्र जैन ने भी खुलकर दावेदारी करते हुए प्रदेश सरकार के मंत्री रहे कमल पटेल का खुला विरोध भी किया। चुनाव से ठीक पहले जहां सुरेन्द्र जैन ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया था तो वहीं जिलाध्यक्ष अमरसिंह मीणा पर भी भाजपा प्रत्याशी कमल पटेल ने भीतरघात का आरोप लगाया। हकीकत चाहें जो रही हो लेकिन परिणाम सबके सामने है कि भाजपा जिले की दोनों सीटों पर चुनाव हार गई। कांग्रेस मुक्त जिले का नारा देने वाली भाजपा जिले खुद जिले से नदारद जैसी हो चली। कुल मिलाकर देखा जाए तो हरदा जिले में भाजपा किसी उजड़े हुए बगीचे जैसे नजर आने लगी जहां कभी मनमोहक कमल खिला करता था।

भाजपा को करना होगी संगठन की पुर्नस्थापना

देश और प्रदेश में अपनी जीत का परचम लहराने वाली भारतीय जनता पार्टी को अगर हरदा जिले में अपना जनाधार कायम करना है तो उसे संगठन की पुर्नस्थापना करना होगा। किसी नेता या व्यक्ति के नहीं अपितु पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वाले कार्यकर्ताओं को आगे लाना होगा। जिले में नये उर्जावान नेतृत्व को संगठन की बागडोर सौंपकर जमीन से जुड़े तथा जनाधार वाले कार्यकर्ताओं को जनता के बीच भेजना होगा। क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाताओं वाले सामाजिक परिदृश्य को भी ध्यान में रखते हुए संगठन को स्वरूप प्रदान करना होगा। राजनीति नियुक्ति हो चाहे संगठन के अनुसांगिक प्रकोष्ठ सभी में पार्टी विचारधारा वाले युवाओं को तराश कर आगे लाने की फिर कवायद शुरू करनी होगी। जनसंख्या की दृष्टि से जिले में गुर्जर, राजपूत, ब्राह्मण, अग्रवाल, आदिवासी जैसे सभी समाजों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है, जो वर्तमान में स्वयं को उपेक्षित और पार्टी से खफा चल रहा है। तभी जिले में भाजपा संगठनात्मक ढांचा खड़ा कर सकती हैं।

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