भोपाल
परमार युग का आठवां कला केंद्र बनेगा देवबड़ला, भोपाल से है 100 किमी दूर
भोपाल। राजधानी से लगभग सौ किमी दूर पुरातात्विक स्थल देवबड़ला जल्द ही मध्य भारत के एक प्रमुख कला केंद्र के रूप में उभर सकता है। देवबड़ला में परमार युग का एक मंदिर परिसर खोजा गया है, जिससे यह राज्य में परमार युग का आठवां कला केंद्र बन सकता है। देवबड़ला सीहोर जिले की जावर तहसील में एक घने जंगल और पहाड़ी क्षेत्र में स्थित है।यहां शुरू हुई खोदाई में अब तक 15 मंदिरों के अवशेष पाए गए हैं और काम आगामी दस साल तक जारी रहने की संभावना है।दो मंदिरों की विधिवत पुनर्संरचना कर दी गई है, जबकि बाकी को संरक्षित किया जा रहा है। शास्त्रीय भूमिज शैली में निर्मित ये मंदिर भगवान शिव,विष्णु, गौरी, लक्ष्मीनारायण,कार्तिकेय और दुर्गा सहित विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं।यहां और मंदिर मिलने की संभावना है।
परियोजना के निदेशक और संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय के पुरातत्वविद् डा. रमेश यादव ने बताया कि देवबडला में खोदाई से निकले मंदिरों का निर्माण 11वीं-12वीं शताब्दी में हुआ था।देवबड़ला के मंदिर कालांतर में प्राकृति आपदा अथवा बाह्य आक्रमण के कारण नष्ट हो गए थे। वर्ष 2016 में तत्कालीन सीहोर कलेक्टर द्वारा क्षेत्र में मंदिर जैसी संरचनाओं के अवशेषों के बारे में लिखे जाने के बाद पुरातत्व विभाग ने टीम गठित कर वन और पर्वतीय क्षेत्र में स्थित साइट पर खोदाई शुरू की। अब तक मलबे को हटाने और खाेदाई से 15 मंदिरों का पता चला है। दो को उनके वास्तविक स्वरूप (जैसे वह पहले रहे होंगे) में बहाल कर दिया गया है, जबकि बाकि को संरक्षित किया जा रहा है। यादव ने कहा कि मुझे यकीन है कि जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा, हमें वहां जमीन में दबे और भी मंदिर मिलेंगे।इससे देवबड़ला न केवल एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरेगा, बल्कि इतिहास और पुरातत्व के विद्वानों के लिए परमार युग की मंदिर वास्तुकला के बारे में जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत भी होगा।
यहां-यहां मिल चुके हैं मंदिर परिसर- परमार राजपूत थे जिन्होंने नौवीं शताब्दी ईसा से लगभग 400 वर्षों तक मालवा में शासन किया। आशापुरी (रायसेन), गंधर्व पुरी (देवास), ओंकारेश्वर (खंडवा), ऊन (खरगोन), हिंगलाजगढ़ (मंदसौर), उदयपुर (विदिशा) और नेमावर (सीहोर) में उनके द्वारा निर्मित मंदिर परिसरों का पहले ही पता लगाया जा चुका है।