सर्दियों के साथ ही एक बार फिर बढ़ा वायु प्रदूषण, कारण निवारण और चिंतन जरुरी

पिछले सप्ताह मैं दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में था। उन्हीं दिनों वायु प्रदूषण बहुत तेज़ी से बढ़ने लगा। दिल्ली सहित NCR का वातावरण पिछले पाँच दिनों से ख़तरनाक स्थिति में अर्थात AQI 400 के ऊपर चल रहा है। छोटे बच्चों तथा वरिष्ठ नागरिकों पर इसका तत्काल प्रभाव पड़ता है। पुराने श्वास के मरीज़ बदहाल हो जाते हैं। स्वस्थ वयस्क भी साँस की बीमारियों के शिकार होने लगते हैं। यह समस्या इस क्षेत्र में पिछले तीन दशकों से और विशेष रूप से पिछले एक दशक में बड़ी तेज़ी से बढ़ी है। समस्या केवल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की ही नहीं, अपितु समस्त उत्तर भारत की है और अब देश के मध्यवर्ती क्षेत्र और महाराष्ट्र के समुद्र तटों पर भी फैल गई है। भोपाल सहित मध्य प्रदेश के सभी शहर प्रदूषित हैं।

NCR की वायु के प्रदूषण के अनेक कारण है। सबसे प्रमुख कारण है सर्दियों में तापमान का कम होना तथा हवा का स्थिर हो जाना है। इससे धूल सहित अन्य प्रदूषित कण सतह के पास आ जाते हैं और फेफड़ों में प्रवेश करने लगते हैं। इस क्षेत्र में नवंबर माह विशेष विषैला होता है। मौसम पर कोई मानवीय नियंत्रण नहीं है इसलिए इस पर अधिक विचार करने की आवश्यकता नहीं है। यहाँ पर धूल उड़ने की मात्रा बहुत अधिक है। धूल पर नियंत्रण तभी हो सकता जब खुला धरातल या तो घास से आच्छादित हो अथवा पक्का हो तथा कूड़े और निर्माण कार्यों की धूल पर उचित उपायों से नियंत्रण हो। दूसरा मुख्य कारण धुआँ है। भारत के अन्य क्षेत्रों की तरह यहाँ भी कूड़े के ढेरों में आग लगा दी जाती है।

पंजाब हरियाणा में वायु प्रदूषण का असर

पंजाब और कुछ हरियाणा के खेतों में पराली जलाने से भी हल्की पश्चिमी हवा के साथ इसी माह में इस क्षेत्र में वहाँ का धुआँ आ जाता है। कृषि उत्पाद के विचित्र मूल्यों के कारण पंजाब में यहाँ की स्वाभाविक फ़सलों के स्थान पर चावल का बहुत उत्पादन किया जा रहा है जो पंजाब के भूमिगत जल संग्रह को भी भारी क्षति पहुँचा रहा है। वाहनों का प्रदूषण अब अच्छे इंजनों तथा फ़्यूल के कारण अपेक्षाकृत कम हो गया है परंतु दिखाने के लिए सबसे पहले इसी पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इस क्षेत्र में अनेक छोटी बड़ी फैक्ट्रियों और ताप बिजलीघरों के कारण भी प्रदूषण होता है। दिवाली के पटाखे भी थोड़ा प्रदूषण करते हैं और अनेक दिनों तक वातावरण में इनका धुआँ घूमता रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य मानवीय कारक भी हैं जिनसे वायु प्रदूषण होता है परन्तु उन पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

पंजाब नहीं चारों राज्यों और केन्द्र की है बात
वायु प्रदूषण कभी भी चुनावी मुद्दा नहीं रहा है।कोई आश्चर्य नहीं है कि दिल्ली में विराजमान केंद्र सरकार,दिल्ली की राज्य सरकार तथा वहाँ के चार नगर निगमों में से कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है। सबसे मुख्य ज़िम्मेदारी केजरीवाल की राज्य सरकार पर आती है और पिछले छह सात साल में इस सरकार द्वारा इस ओर कोई विशेष कार्य नहीं किया गया है। पहले केजरीवाल सारा दोष पंजाब की कांग्रेस सरकार पर पराली के लिये लगाते थे। परंतु अब वहाँ उनकी सरकार बन जाने के बाद अब वे पंजाब की बात न करके उसके सहित चार राज्यों तथा केन्द्र की बात करते हैं। दिल्ली के अत्यंत छोटे क्षेत्र की नई दिल्ली नगर निगम को छोड़कर तीनों बड़ी नगर निगमें प्रदूषण कम करने से कोई सरोकार नहीं रखती है, जबकि धूल, कूड़े और धुएं का नियंत्रण इनकी स्पष्ट ज़िम्मेदारी है। परन्तु विचारणीय प्रश्न यह भी है कि राजधानी क्षेत्र जिसकी जनसंख्या 2 करोड़ से अधिक है, तथा जो संवैधानिक, राजनैतिक, प्रशासनिक, औद्योगिक, व्यापारिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, उसकी ऐसी दुर्गति को एक राष्ट्रीय त्रासदी न मानना केंद्र सरकार की हठधर्मिता है।

दिल्ली सरकार को करना होगा गंभीरता से काम

वायु प्रदूषण रोकने के लिए एक स्पष्ट और प्रभावी गाइडलाइन पहले से उपलब्ध है। केंद्र सरकार को उत्तरी राज्यों की सरकारों को प्रदूषण रोकने के लिए सचेत करना चाहिए और राज्यों की कार्य योजनाओं का समन्वय करना चाहिए और संसाधन भी उपलब्ध कराने चाहिएँ । फिर भी राज्यों को ध्यान रखना होगा कि समस्त कार्यान्वयन उन्हीं के द्वारा किया जाना है तथा प्रदूषण रोकना उन्हीं की मुख्य ज़िम्मेदारी है। दिल्ली की राज्य सरकार को सबसे अधिक गंभीरता से कार्य करना होगा। मोदी को अपनी सकारात्मक ऊर्जा का प्रदर्शन इस समस्या के हल के लिये भी करना चाहिए।
चीन की राजधानी बीजिंग की प्रदूषण की समस्या बहुत विकराल थी परंतु चीन की कटिबद्ध राजनैतिक नेतृत्व की क्षमता से वहाँ के प्रदूषण पर नियंत्रण पा लिया गया है। जब मैं बेजिंग गया था तब मैंने वहाँ का वातावरण बहुत अच्छा पाया था।

वायु प्रदूषण रोकने में धन से अधिक राजनीतिक इच्छा की आवश्यकता 

वायु प्रदूषण रोकने में धन से अधिक राजनीतिक इच्छा की आवश्यकता है। सही समग्र नीतियों और सर्व दलीय प्रयासों से एक-दो वर्ष में ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। आज के भारत में यह क्षमता है। दुर्भाग्यवश इस क्षेत्र का मतदाता कुछ दिनों तक परेशान रहने के बाद प्रदूषण को भूल जाता है और फिर उसके लिए यह कोई मुद्दा नहीं रह जाता है। राजनैतिक दल और सरकारें जनता की भावनाओं और स्मरण शक्ति को भाँपने में बहुत होशियार होती हैं। कोई आश्चर्य नहीं है कि इसी कारण सभी सरकारें इस समस्या से विमुक्त रहती है। फिर भी आशा की एक किरण यह है कि इसी क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च शासक और न्यायाधीश स्वयं रहते हैं और वे संभवतः अपने व्यक्तिगत हितों के लिए इस दिशा में कुछ ठोस क़दम उठा सकते हैं।

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