राहत का सौदा…. राशन दुकान से बंट रहे चावल की बेखौफ खरीद-फरोख्त  

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गरीब परिवारों की भोजन व्यवस्था या यूं कहें कि कोई गरीब भूखा ना सोए इस दृष्टि से अनाज वितरण कार्यक्रम कई दशकों से जारी है। इसके लिये मुख्यालय समेत दूरदराज गांवों में शासकीय उचित मूल्य की दुकानें स्थापित की हैं। इतना ही नही, पारदर्शिता का उद्देश्य तथा गड़बड़ी की रोकथाम के लिए राशन वितरण कार्य को ऑनलाइन भी कर दिया है। परंतु इन सबके बीच एक चिंताजनक तस्वीर आम हो गई है। दरअसल, पहले पात्र हितग्राही हर महिने राशन लेकर अपनी कोठी भरता था। लेकिन उनकी वही मुस्तैदी अब घर की कोठी के बजाय खरीददारों के कोठे भर रही है। हालांकि ऐसा हर एक व्यक्ति नही करता है। लेकिन जब से चावल का आवंटन बढ़ा है, तबसे इस चलन ने रफ्तार पकड़ ली है। जिस पर कसावट के लिहाज से अब तक कोई प्रभावी कदम नही उठा है।  

 

दुकान से राशन प्राप्त करते हितग्राही

             

व्यापारी की दुकान पर पहुंचा चावल

अनोखा तीर, हरदा। सरकार द्वारा गरीब परिवारों के लिये चलाई जा रही राशन वितरण योजना का वर्तमान में एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है। जब, लोग पूरी तरह फिक्रमंद रहकर राशन दुकानों से गल्ला तो हासिल कर रहे हैं। लेकिन वही गल्ला उनके घर पहुंचने के बजाय सीधे खरीददारों के कोठों में पहुंच रहा है। यह खरीद-फरोख्त कोई आज या कल की बात नही बल्कि लंबे समय से यह खेल जारी है। हैरान करने वाली बात यह कि इस पर नकेल कसने तथा इन सबको लेकर गहन मंथन करने की दिशा में जिम्मेदार नगण्य हैं, जो स्वत: चिंताजनक है। क्योंकि, राशन वितरण योजना का उद्देश्य प्रभावित हो रहा है। बता दें कि हर महिने की 2 तारीख से प्रारंभ होने वाले राशन वितरण दौरान ये तस्वीर आम हो गई है। इसकी पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि जबसे चावल का आवंटन बढ़ा है, इस चलन ने जोर पकड़ लिया। इसके दो कारण बताये जा रहे हैं। पहला राशन दुकान से मिलने वाले चावल की क्वालिटी के चलते अधिकांश लोग उसका इस्तेमाल करते हैं। वहीं दूसरा वजह यह कि ज्यादा मात्रा में चाव मिलने की स्थिति में हितग्राही उसे वहीं की वहीं रफा-दफा करने के पक्षधर रहते हैं। परिणामस्वरूप राशन मिलते ही वह सीधे तय स्थान पर पहुंच जाता है। जिसका हितग्राहियों को 17 से 18 रूपये किलो दाम मिल रहा है।

पहले और अब

प्राप्त जानकारी के अनुसार पहले राशन कार्ड पर प्रत्येक सदस्य 3 किलो गेहूॅ एवं 2 किलो चावल वितरीत किया जाता था। लेकिन अब प्रत्येक सदस्य 3 किलो चावल एवं 2 किलो गेहूॅ बांटा जाने लगा है। ऐसे समझें कि पहले गेहूॅ ज्यादा मिलता था, मगर अब गेहूॅ कम और चावल ज्यादा मिल रहा है। यह भी मालूम हुआ कि प्रत्येक सदस्य अनाज की मात्रा तय की गई है। जबकि कुछ साल पहले एक कार्डधारी को 15 से 20 किलो अनाज मुहैया कराया जाता था।

उन पर भी असर

बताना होगा कि गेहूॅ-चावल की मात्रा ऊपर-नीचे होने से नीले कार्डधारी यानि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की व्यवस्था लड़खड़ा गई है। उन्हें एक कार्ड पर पहले ३५ किलो अनाज मिलता है। जिसमें ३० किलो गेहूॅ व ५ किलो चावल शामिल था। लेकिन बदलाव के चलते अब १४ किलो गेहूॅ व २१ किलो चावल मिलने की बात कही है। हालांकि, चावल की सीधी बिक्री पर इन परिवारों का तर्क यह कि चावल बेचकर गेहूॅ जुटाते हैं।

सर्वर की ढीली चाल

इस मामले में ओर अधिक पड़ताल करने पर पता चला कि इनदिनों सर्वर साथ नही दे रहा है। जिसके चलते राशन वितरण कार्य सुस्त पड़ा है। वहीं राशन के लिये दुकान पहुंचने वाले हितग्राहियों को खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह समस्या पूरे प्रदेश में व्याप्त है। जिसका यहां पर भी असर दिखा है। हितग्राहियों के मुताबिक पिछले महिने भी सर्वर डाउन के चलते परेशान हुए थे। वहीं एक अन्य हितग्राही ने कहा कि फिलहाल त्यौहार के समय अनाज से हाथ खाली हैं।

 

आगे आगे गल्ला – पीछे पीछे व्यापारी  

सूत्रों का कहना है कि मुख्यालय पर जहां व्यापारी तथा किराना दुकानों पर चावल बेचा जा रहा है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा दूरदराज वनग्रामों में भी यही हाल है। इस मामले में तहसील क्षेत्र के लोगों का कहना है कि ग्रामीण अंचलों में सबकुछ तय लगता है। यहां आगे-आगे गल्ला चलता है, वहीं पीछे-पीछे व्यापारी पहुंच जाते हैं। जो कि राशन दुकान के इर्दगिर्द अपना डेरा डाल देते हैं। जहां संबंधित हितग्राही अपनी मर्जी से चावल बेचते हैं। उधर राशन दुकान में ताला लगा, इधर खरीददार की गाड़ी लोड हुई। ये सिलसिला लंबे समय से जारी है।

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