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विश्‍व को गरीबी मुक्‍त और रहने योग्‍य बनाने के लिए भारत, विश्‍व बैंक की नई परिकल्‍पना का समर्थन करता है : निर्मला सीतारामन

माराकेच- केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने कल मोरक्को के माराकेच में विकास समिति की 108वीं पूर्ण बैठक में विश्व बैंक के गवर्नर के रूप में भाग लिया।इस बैठक का एजेंडा था ‘रहने योग्य धरती पर गरीबी को खत्‍म करना – विश्व बैंक के विकास पर गवर्नरों को रिपोर्ट करें’।

केंद्रीय वित्त मंत्री ने मोरक्को और लीबिया में क्रमशःभूकंप और बाढ़ से बेहद प्रभावित परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हुए अपना संबोधन शुरू किया, और कहा कि भारत मोरक्को और लीबिया के लोगों एवं अधिकारियों के साथ एकजुटता से खड़ा है क्योंकि वे इन आपदाओं के विनाशकारी प्रभावों से उबरने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं।

सत्र के दौरान इस एजेंडे का उल्‍लेख करते हुएकेंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि विकासात्मक प्रभाव को अधिकतम करने के लिए राष्ट्रीय और वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक ‘बेहतर, दिग्‍गज और अधिक प्रभावकारी’विश्व बैंक बनाने के जी20 देशों के साझा लक्ष्य की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति देखना वाकई अत्‍यंत उत्साहजनक है।उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि विश्व बैंक के विकास की दिशा समस्‍त एमडीबी परिवेश में संबंधित रूपरेखा तैयार करेगी।’

सीतारमण ने कहा कि भारत ‘रहने योग्य धरती’ पर गरीबी से मुक्त दुनिया बनाने के विश्व बैंक के नए विजन, अत्यधिक गरीबी को खत्म करने और ‘रहने योग्य धरती’ पर साझा समृद्धि को बढ़ावा देने के इसके नए मिशन का समर्थन करता है जिसमें विश्व बैंक को गरीबी से लड़ने के साथ-साथ वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की भी कठिन जिम्‍मेदारी सौंपी गई है।

केंद्रीय वित्त मंत्री ने विश्व बैंक को अन्य एमडीबी के साथ मिलकर, जहां तक संभव हो, प्रक्रियाओं और कार्यविधियों में सामंजस्‍य स्‍थापित करने में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया।इससे उन ग्राहक देशों को काफी सुविधा होगी जिन्हें कई एमडीबी से लेन-देन करना पड़ता है।

यह भली भांति मानते हुए कि हमारी बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए विश्‍व बैंक की क्षमता बढ़ाने के लिए माराकेच से आगे और काम करने की आवश्यकता है, सीतारमण ने कहा- यह सुनिश्चित करना आवश्‍य‍क है कि संवर्धित डब्ल्यूबीजी देश सहभागिता मॉडल वास्‍तव में राष्ट्रीय विकास की प्राथमिकताओं में मजबूती से निहित रहे। इसके अलावा, ‘सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं’ के सिद्धांत के अनुरूप जलवायु कार्रवाई में संलग्न रहते हुए हम विश्व बैंक को अनुकूलन वित्त के प्रति अपनी कटिबद्धता में और भी अधिक महत्वाकांक्षी होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
बड़े पैमाने पर निजी पूंजी को जुटाना संभव करने के लिए एक बेहतर ‘एक विश्व बैंक समूह’ दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। इसके साथ ही वैश्विक आर्थिक आउटलुक को देखते हुएहमें निजी पूंजी जुटाने की क्षमता के आकलन में यथार्थवादी होना चाहिए। प्रस्तावित पायलट ग्लोबल चैलेंज प्रोग्राम (जीसीपी) की आवश्‍यकता दरअसल विभिन्‍न देशों की ओर से व्‍यापक मांग एवं स्वामित्व, नए और अतिरिक्त वित्त तक पहुंच के साथ-साथ कम आय वाले देशों (एलआईसी) और मध्यम-आय वाले देशों (एमआईसी) दोनों के लिए रियायती वित्त की व्‍यवस्‍था करने पर निर्भर करेगी। हम इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत हैं कि विश्व बैंक के लिए नए, अतिरिक्त संसाधन जुटाकर, विशेषकर निर्धनतम देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आईडीए के लिए पुनःपूर्ति को अधिकतम करके और आईबीआरडी के लिए सामान्य पूंजी में वृद्धि करके ग्राहकों के लिए काफी कुछ किया जा सकता है।

केंद्रीय वित्त मंत्री ने यह दोहराते हुए अपने संबोधन का समापन किया कि आज के चुनौतीपूर्ण दौर में वसुधैव कुटुम्बकम या ‘एक पृथ्वी, एक कुटुम्ब, एक भविष्य’ की सच्ची भावना के साथ ‘2030 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी)’ की प्राप्ति की दिशा में तेज प्रगति सुनिश्चित करने के लिए रूपांतरणकारी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

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