लेकिन, प्रतिमा जहां रुकी वहीं बना दिया भव्य मंदिर
शहर के मध्य में प्रताप टॉकीज चौराहें पर विद्युत मंडल के पुराने गेट के ठीक साइड़ में सिद्धी विनायक मंदिर हजारों भक्तों की आस्था का केन्द्र है। यहां निशदिन भक्तों का तांता लगता है। इतना ही नही, भक्तों की प्रार्थना पर सिद्ध विनायक का भरपूर आशीर्वाद मिल रहा है। यही कारण है कि दिनोंदिन यहां श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा हो रहा है। लेकिन, इन सबके बीच सिद्धी विनायक की स्थापना से लेकर मंदिर के समुचित विकास के मध्य प्रभु ने अपने भक्तों को कई पड़ाव दिखाये हैं। गणेशोत्सव पर दैनिक अनोखा तीर में पढ़े, श्री सिद्धी विनायक महाराज की महिमा।
दशक सन् १९९० ! मढ़िया में सिद्धी विनायक
वर्ष २०२३ ! सुंदर मंदिर में विराजमान महाराज
रितेश त्यागी, हरदा। कहावत है , भाग्य से ज्यादा और नसीब से पहले कभी कुछ नही मिलता है। इस कहावत को बल मिले, ऐसे कई उदाहरण भी हैं। उन्हीं में से एक ऐसा उदाहरण है जो कई दशकों से जनकल्याण तथा चरण सेवकों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। जी हॉ, हम बात कर रहे हैं शहर के बीचोंबीच प्रताप टॉकीज चौराहे पर स्थित श्री सिद्धी विनायक मंदिर की। मंदिर में भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा की स्थापना से लेकर यहां के समुचित विकास के मध्य प्रथम पूज्य गणराज ने अपने भक्तों को कई पड़ावों के दर्शन कराए हैं। वहीं भक्तों को भी अलग-अलग परिदृश्य में प्रभु की आराधना का अवसर मिला। यह सब इसलिये, क्योंकि नई पीढ़ी इन सब बातों से अनभिज्ञ है। जबकि, पुराने लोग इसकी एक-एक कड़ी से वाकिफ हैं। वे ही बताते हैं कि सिद्ध गणनायक के रूप में यहां विराजित होकर जन-जन का कल्याण तय था। जबकि यही प्रतिमा शहर के एक प्राचीन मंदिर से नर्मदा विसर्जन के लिये रवाना हुई थी। क्योंकि, किसी कार्य दौरान श्रीगणेश की प्रतिमा नीचे से थोड़ी झड़ गई थी। इसको लेकर पुराने समय में नियम तथा विधि-विधान शीर्ष पर रहा। परिणामस्वरूप धर्मप्रेमियों ने भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा को पुण्य सलिला मॉ नर्मदा की गोद में विसर्जित करने के लिये रवाना कर दिया, जो दूसरे दिन मंदिर से केवल प्रताप टॉकीज तक पहुंची। जहां बस के इंतजार में उन्होंनें मूर्ति को नीम के पेड़ के नीचे रख दिया। बुजुर्गो के मुताबिक उन लोगों में से एक-दो व्यक्ति को ये आभास होने लगा कि मूर्ति अब यहां से जाने वाली नही है। इस बीच गोलापुरा निवासी लेखराम पांडे वहां पहुंचे। जिन्होंनें मूर्ति को देखकर सबकुछ छोड़ उसकी सुंदरता का गुणगान किया। कहा कि ऐसी मूर्ति कभी नही देखी, ये अद्बुध है। इसकी पूर्ण आत्मीयता से सेवा की जाएगी। तभी वहां खड़े लोगों ने लेखराम पांडे को बताया कि इसे विसर्जन के लिये नेमावर ले जा रहे हैं। यह सुनकर श्री पांडे ने प्रभु की सेवा का आग्रह किया, वहीं उनसे मूर्ति उसी जगह छोड़ देने की गुहार भी लगाई। जिसे अंतत: उन लोगों को सहर्ष स्वीकार करना पड़ा। तब से मंदिर स्थल पर सिद्ध गणनायक की सेवा अनवरत जारी है।
भक्ति का सिलसिला जो अब भी जारी
वरिष्ठ नागरिक एवं समाजसेवी लक्ष्मीनारायण बादर बताते है कि मूर्ति वहीं रखने की सहमति के बाद से पेड़ के नीचे प्रभु भक्ति का सिलसिला प्रारंभ हुआ। श्री पांडे भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना करते थे। वहीं बाद में पेड़ के आसपास चबूतरा बनाया गया। जहां गणेश उत्सव मनाया जाने लगा। उस समय गिने-चुने स्थानों पर गणेश पांडाल सजते थे। चबूतरे पर आकर्षक झांकियां तैयार की जाती थी। उन्होंनें मूर्ति को विराजित करने के बाद भक्ति का वातावरण निर्मित हुआ। श्रीगणेश के प्रति आस्था ऐसी कि उस दौर में प्राय हर व्यक्ति आतेे-जाते समय गणेशजी की जय हो, जय हो गजानंद महाराज जैसे जयघोष लगाने लगे।
पेड़ की छांव से सुंदर मंदिर का सफर
परिवार के लोकेश पांडे ने बताया कि शुरूआती करीब 10 सालों तक लेखराम काकाजी ने हर रोज श्रीगणेश की प्रतिमा की। ये सब 80 के दशक की बात हैं। बाद में उनका स्वर्गवास हो जाने के कारण अन्य भक्तों द्वारा दीया-बाती का दायित्व संभाला। उन्होंनें बताया कि ९० के दशक में छोटे भाई दिलीप पांडे ने प्रभु की सेवा प्रारंभ की। सर्वप्रथम पेड़ के नीचे से भगवान श्रीगणेश को 4 वाई 4 की छोटी मढ़िया बनाकर वहां विराजमान किया। कई सालों तक चली पूजा-अर्चना के बीच युवाओं की सक्रियता के चलते मंदिर निर्माण की नींच रखाई। जिसे जनसहयोग के माध्यम से पूर्ण कराया गया। मंदिर से हजारों श्रद्धालु जुड़े हैं।
भक्त बोले….
– मंदिर में भगवान श्रीगणेश की मूर्ति सालों पुरानी है। जिसकी नियमित पूजा-अर्चना जारी है। जिसके चलते मूर्ति की महिमा व सिद्धी बढ़ी है। यहां प्रतिदिन खासकर बुधवार को भक्तों का तांता लगता है। मैं भी कई सालों से निरंतर आ रहा हूं। प्रभु सबकी सुनवाई करते हैं।
गजानंद डाले, इलेक्ट्रिशियन
– श्री सिद्धी विनायक मंदिर में प्रथम पूज्य की सेवा का अवसर मिला। प्रभु की भक्ति से एक अलग अनुभूति का आनंद प्राप्त हुआ है। निरंतर पूजा-अर्चना से भक्तों की आस्था ओर प्रगाढ़ हुई है। बुधवार 4 अक्टूबर के दिन भगवान को लड्डूओं का भोग लगाया गया।
संतोष अग्रवाल, समाजसेवी
– पारिवारिक सदस्य ने भगवान श्रीगणेश की उक्त मूर्ति को देखकर मन ही मन प्रभु भक्ति की ठान ली थी। यही कारण है कि मूर्ति का विसर्जन करने की तैयारी थी, लेकिन प्रभु इच्छा कुछ ओर ही थी। विसर्जन के बजाय वर्तमान में भव्य व सुंदर मंदिर में विराजमान श्रीगणेश हम सबकी आस्था का केन्द्र हैं।
प्रेमशंकर पांडे, सराफा व्यवसायी
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