अनोखा तीर हरदा। जिला मुख्यालय पर कलेक्टर, अपर कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार स्तर के आला अधिकारी होने के बावजूद आमजनता को अपने जरूरी कामकाज के लिए परेशान होना पड़ रहा है। कहने को तो अभी विधानसभा चुनाव को लेकर आदर्श चुनाव संहिता जैसी कोई बंदिश लागू नहीं हुई है। मगर चुनाव पूर्व की तैयारियों को लेकर शासकीय अमले पर इस तरह काम का भार है कि जनता के कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इन दिनों कलेक्ट्रेट और तहसील कार्यालयों में मतदाता सूची पुनरीक्षण से लेकर निर्वाचन आयोग द्वारा जिला प्रशासन को सौंपी गई जिम्मेदारियां आमजनता के लिए परेशानी का सबब बन गई है। यही वजह है कि सभी आलाअधिकारी चुनाव में व्यस्त हैं और तहसीलों में जनता का कामकाज ठप पड़ा है।
तहसीलों में फाइलों का अंबार
यहां सबसे ज्यादा समस्या तहसील कार्यालयों में है। इसमें नामांतरण, बटांकन, सीमांकन से लेकर जाति प्रमाण पत्र के लिए भी लोग धक्के खा रहे हैं। यहां काम का इतना भार है कि अमले की सांसें फूल रही है। बड़े क्षेत्र और प्रोटोकाल के साथ साथ मतदाता सूची पुनरीक्षण के लिए दिन-रात एक करना पड़ रहा है। इस कारण कई अधिकारी और कर्मचारी बीमारी के नाम पर अवकाश लेना पसंद कर रहे हैं। आने वाले दिनों में विधानसभा के चुनाव और फिर इसके ठीक बाद लोकसभा चुनाव होने से आगामी चार-पांच महीने लगातार आचार संहिता की बंदिशें होने से किसी को भी अवकाश मिलना संभव नहीं होगा।
ट्रेनिंग और मतदाता सूची का भार
इधर अमले पर काम का बोझ होने से आवेदक छोटे-छोटे कामों के लिए धक्के खाने को मजबूर हैं। जानकारी के अनुसार इन दिनों मतदाता सूची पुनरीक्षण के कामों के साथ-साथ अब ट्रेनिंग में व्यस्त होने से अधिकारी तहसीलों में नजर ही नहीं आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर पटवारियों की हड़ताल के चलते दस्तावेजों का सत्यापन नहीं किया हो रहा है। इस दौरान तहसील कार्यालयों में फाइलों का अम्बार बढ़ रहा है। सीमांकन और बटांकन के मामलों में पेंडेंसी बढ़ रही है। वहीं लोग बंटवारे के लिए भी पहुंच रहे हैं। यहां आवेदकों को सिर्फ तारीख ही नसीब हो रही है। सुबह 10 बजे से लेकर अधिकारी 6 बजे तक निर्वाचन विभाग के कार्यों में व्यस्त है, वहीं कलेक्टर के निदेर्शानुसार संवेदनशील मतदान केंद्रों के दौरे की जिम्मेदारी के चलते विभागीय काम नहीं कर पा रहे हैं।
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