सन् १८७० में राजा ने एक परिवार को आदेश दिया था। परिवार की चौथी पीढ़ी राजा के आदेश का अब तक पालन कर रही है। जी हॉ, मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित ग्राम पिडगांव में मराठा परिवार 200 साल से ताजिये बनाते आ रहा है। पहले इसके लिये ग्वालियर स्टेट से राशि मुहैया कराई जाती थी। लेकिन करीब 3 दशक पहले राशि मिलना बंद हो गया। बावजूद , परिवार के सदस्य अपने दादा-परदादा के वचन का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं, जो वचन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
रितेश त्यागी, हरदा। जिला मुख्यालय से करीब 7 किमी दूर ग्राम पिडगांव में एक ऐसा हिंदू मराठा परिवार है, जो आज भी राजा के 200 साल पुराने आदेश का पालन कर रहा है। कभी मालगुजार कहलाने वाले इस परिवार की माली हालत वर्तमान में ठीक नही है। बावजूद , वे अपने दादा-परदादा के वचन का पूरी ईमानदारी से पालन कर रहे हैं। पिडगांव में रहने वाले मराठा परिवार के मुताबिक उनके पूर्वजों को 1817 में ग्वालियर के राजा ने मोहर्रम पर ताजिए का निर्माण करने का आदेश दिया था। जिसका पालन उनका परिवार आज तक कर रहा है। हालांकि 1804 से 1840 तक ग्वालियर के किले में अंग्रेज और सिंधिया परिवार का नियंत्रण बदलते रहा। इसलिए वर्तमान पीढ़ी को भी यह नही बता पा रहे कि यह किस राजा का आदेश था। उन्होंनें बताया कि उक्त आदेश के परिपालन में उनके पूर्वजों ने पिडगांव में आकर मालगुजारी की और ताजिए बनाना शुरू किया। फिर परदादा के गुजरने के बाद यह जबावदारी दादा आनंदराव बावले ने निभाई। इसके बाद पिता शंकरराव के बड़े भाई लक्ष्मणराव बावले ने ताजिए बनाने का जिम्मा संभाला। लेकिन समय के साथ-साथ धीरे-धीरे मालगुजारी खत्म होती गई। परंतु मराठा परिवार ने ताजिए बनाने की प्रथा को विराम नही दिया। परिवार के मुताबिक 40 साल पहले लक्ष्मणराव बावले का निधन होने के बाद इसे आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भिवाजीलाल निभाते आ रहे हैं। वैसे तो ताजिए बैठाने की परंपरा वर्षों पुरानी है, लेकिन पिडगांव का ताजिया हरदा जिले का सबसे पुराना ताजिया माना जाता है।
3 दशक पहले तक मिलती थी राशि
भिवाजीलाल के मुताबिक करीब 30 – 35 साल पहले तक ग्वालियर के सिंधिया परिवार से ताजिए बनाने के लिए राशि आती थी, लेकिन अब कोई राशि नहीं आती है। उन्होंने बताया कि ताजिए बनाने के लिए करीब 20 हजार से अधिक का खर्चा आता है। जिसे वह स्वयं वहन करते हैं।
ओर जलकर खाक हो गए दस्तावेज
श्री बावले ने बताया कि कुछ साल पहले पिडगांव स्थित मकान में आग लग गई थी। इस दौरान घर में रखे मालगुजारी संबंधी दस्तावेज सहित अन्य आदेश की प्रतियां जलकर खाक हो गई। हालांकि शासन के सिलिंग एक्ट अंतर्गत मालगुजारी खत्म हो गई।
मोहर्रम पर एकत्रित होता है परिवार
परिवार के मुताबिक मालगुजारी खत्म होने के बाद छोटे से गांव में रोजी रोटी का संकट गहरा गया था। जिसके चलते कुल 7 भाईयों में से 6 भाई काम धंधे की तलाश में गुजरात चले गए। लेकिन मोहर्रम पर सभी भाई गांव आते हैं और ताजिया निर्माण में सहभागी बनते हैं।
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