आप जो यह तस्वीर देख रहे हैं, वह शहर के प्रमुख चौक-चौराहों के अलावा विभन्न मार्गो पर ये दृश्य देखने को मिलेगा। जहां शासकीय संपत्तियों को प्रचार-प्रसार का प्रमुख जरिया बना रखा है। इसका मुख्य उद्देश्य ये सब निशुल्क रहता है। जबकि यही प्रचार-प्रसार आवंटित होर्डिंग बोर्ड पर करें तो मोटी रकम चुकाना तय है। बस इसी दो पैसे की चाह ने शहर की तस्वीर खराब करके रखी है। बात यहीं नही थम रही, क्योंकि इनमें से कुछ लोगों ने हरे-भरे वृक्षों को भी नही बख्सा। वृक्षों पर नुकीली कील ठोककर अपने बोर्ड-बैनर चस्पा कर दिए हैं, जो कहीं ना कहीं वृक्षों को नुकसान पहुंचाने की श्रेणी में आता है। इतना ही नही, विशेष अवसरों पर प्लेक्स और बोर्ड लगाने की होड़ मच जाती है। वहीं दूसरी ओर ऐसी मनमानी पर अंकुश लगाने कोई कार्रवाई नही की जाती है। जिसके चलते मनमानी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जिसका शहर के यातायात समेत अन्य व्यवस्थाओं पर सीधा असर पड़ना लाजमी है। इस बारे में नागरिकों ने कहा कि केवल आदर्श आचार संहिता दौरान सख्ती बरतते हुए ऐसे तमाम बैनर, बोर्ड व पोस्टरों को उतार दिया जाता है। शेष समय में कोई अंकुश नहीं दिखता है। यही कारण है कि लोग कहना नहीं चूकते, कि यह बात गलत है।
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