मनुष्य के लिए आंतरिक यात्रा आनंदमयी : नीरज भैया

schol-ad-1

 

अनोखा तीर, हरदा। श्वास एवं प्राण में अंतर को समझना होगा, सामान्य मनुष्य के प्राण की गति वक्र होती है। सांसारिक झंझावातों में फंसे रहने से यह गति प्रभावित होती है। वहीं साधना के पश्चात उत्पन्न चेतना से यह गति सीधी होती है, हमें बाहरी यात्रा के बजाय आंतरिक यात्रा करनी होगी। योग विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर में पांच कोष है अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय और आनंदमय। इन पांच कोष की यात्रा भी वहीं पंचकोषी यात्रा है। इसका आनंद अवर्णनीय है। यह उदगार शुक्रवार को हरदा प्रवास पर पधारे सिद्ध संत नीरज महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ईश्वर एवं देवता अलग अलग है। देवता आपके भाव कर्म के अनुसार कृपा करते हंै। उन्होंने ब्राह्मण शब्द की व्याख्या की। उदाहरण के माध्यम से शक्तिपात क्रिया को समझाया। उन्होंने कहा कि इस क्रिया के माध्यम से मनुष्य की चेतना का आंतरिक भाग क्रियाशील होता है। वहीं संस्कार क्षय होते है। उदबोधन के दौरान सर्व ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष राजेश पाराशर, संरक्षक मनोहरलाल शर्मा, पंडित ओमप्रकाश पुरोहित, सुनील तिवारी, संदीप पाराशर, रोहित तिवारी उपस्थित थे। सर्व ब्राह्मण समाज के पदाधिकारियों ने सिद्ध संत नीरज भैया का पुष्पहार से स्वागत कर सम्मान किया। इस दौरान संजय पाराशर, समीर साकल्ले, इरिश पांडे, विशाल तिवारी, पलाश करोड़े, अरुण हर्णें, शुभम सनखेरे सहित श्रद्धालु उपस्थित थे।

Views Today: 2

Total Views: 54

Leave a Reply

लेटेस्ट न्यूज़

MP Info लेटेस्ट न्यूज़

error: Content is protected !!