खंडवा। जननी बनना एक शारीरिक एवं प्राकृतिक घटना है, लेकिन मां बनना एक सांस्कृतिक निर्वहन है। जननी बनने में 9 माह लगते हैं। जबकि मां बनने में 19 वर्ष पालन-पोषण कर संस्कारित करने का लंबा समय लगता है। यह बात समर्थ शिशु रामकथा के चौथे दिन स्थानीय सरस्वती शिशु मंदिर कल्याण गंज में भगवान श्रीराम और उनके भाइयों के नामकरण की कथा और शिशु के आहार तथा आहार प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए पंडित मनावत जी ने कही। जननी और मां के बारे में उन्होंने व्याख्या करते हुए यशोदा और देवकी के प्रसंग को सुनाया। च्योतिष पद्धति शास्त्र आधारित वैज्ञानिक पद्धति है। बच्चों का पालन, माता पिता की सेवा और भगवान की सेवा और पूजा स्वयं करना चाहिए ये नौकरों से नहीं करवाना चाहिए नहीं तो पछताना पड़ेगा।
जैसा आपका स्वभाव होगा वैसा ही दुनिया में आपका भाव अर्थात कीमत होगी। जमाने के सुधारने के चक्कर में हम स्वयं नहीं सुधर पा रहे हैं। हर व्यक्ति दूसरे को सुधारना चाहता है जबकि स्वयं अपने पर ध्यान ही नहीं दे रहा है। यह भारत देश है और वीर बालक भरत के नाम पर इसका नाम पड़ा है जो कि शेर का मुंह खोल कर उसके दांत गिरने की क्षमता रखते थे। उन्होंने कहा कि अपनों से छीनने का नाम कुरुक्षेत्र है, जबकि अपनों को देने का नाम चित्रकूट है।
मां तन की जन्मदाता ही नहीं बल्कि निर्माता भी हैं और इस धरती पर शाश्वत केवल जल एवं आकाश ही हैं, प्रकृति इस ब्रह्मांड का मूल तत्व है। पर्यावरण तो प्रकृति का एक अंश मात्र है। उन्होंने कहा कि सुख देने का सामथ्र्य ईश्वर ही देता है लेकिन कुछ लोग इस सामथ्र्य के होते हुए भी इस से वंचित रह जाते हैं। भगवान की मूल संपदा और विभिन्न प्रकार के उदाहरण देते हुए उन्होंने शिशुओं के लालन-पालन और संस्कार को विस्तृत रूप से वर्णन किया। अंत में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की जीवंत झांकी भी प्रस्तुत की गई। कार्यक्रम में विभाग संघचालक गिरजा शंकर त्रिवेदी, रविंद्र बंसल, भूपेन्द्र सिंह चौहान, ब्रह्मानंद पाराशर, सेवादास पटेल, कंचन तनवे, मुकेश तनवे, राजपाल सिंह तोमर, आशीष चटकेले, रितेश चौहान, कपिल अंजने, संजय अग्रवाल, राजेश तिवारी, राजेन्द्र अग्रवाल, धर्मेन्द्र दांगोड़े, शोभा तोमर, दिलीप सपकाले, जितेंद्र महाजन, वासुदेव पँवार, प्रदीप कानूगो, देवेंद्र जोशी सहित बड़ी संख्या में नगर जन एवं बुरहानपुर तथा शाहपुर से आए हुए भक्तगण सम्मिलित हुए।
Views Today: 2
Total Views: 38