प्रदीप शर्मा, हरदा। शनिवार को सुबह-सुबह अचानक सब्जियों से भरी एक ट्रेक्टर ट्राली मुख्य कृषि मंडी से लौट कर शहर की छोटी सब्जी मंडी में आ गई। इसका कारण यह कि थोक मंडी में टमाटर की कोई पूछ परख ही नहीं थी, कोड़ियों के भाव भी खरीदने वाले नही थे। सो उन्हें अपनी फसल को ठिकाने लगाने कहीं न कहीं तो आना ही था। यूं भी अलसुबह उठकर साढ़े-तीन चार बजे सब्जी की तुड़ाई कराने, फसल को ट्राली में लदाकर मीलों दूर मंडी में लाने बाद कुछ दाम तो मिले? मगर मंडी में सुबह से ही ऐसी उपज भरी ट्रालियों को सही भाव नहीं मिला। यहां टमाटर का भाव इतना कम कि कोई भी 5 रुपये किलो से अधिक में पूछने को तैयार नहीं। ऐसी स्थिति में फसल को ठिकाने लगाने उत्पादक किसान यहां से वहां भटकते रहे। आज के समय में हालात यह हैं कि किसी फसल का बेहद उत्पादन होने से उन्हें फसल तुड़ाई और परिवहन की लागत भी नहीं मिल पा रही। इसके कारण अनेक स्थानों पर किसानों द्वारा अपनी प्याज, मिर्ची और टमाटर आदि किसी नदी में बहाने की खबरें सामने आती हैं।
क्या है हालात…
पूरे साल या पूरे कृषि सीजन में गर्मी और ठंड के अलावा भर बारिश में दिन-रात खटने वाले किसान को अपनी उपज की लागत, परिवहन खर्च के साथ मेहनत मिलना तो दूर उसे डीजल-भाड़ा भी नहीं मिल पाना शायद एक विडम्बना बन गई है। रोजाना दिन-रात खेत और बाड़ी में मेहनत कर पसीना बहाने वाले इन खेतिहरों को खेती कर पेट पालने की जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल है। क्योंकि उसे थोक में बेचने पर कोई भाव नहीं मिल पा रहा।
क्यों है यह समस्या
दरअसल किसानों की इस समस्या का कारण है वही पुराने कानून, नियम और व्यवस्थाएं। जिसमें उनकी महीनों की मेहनत पर आढ़तिए मौज करते आए हैं। पूरे साल खेत में काम करने वाले किसान जब अपनी उपज लेकर मंडी जाते हैं तो उन्हें अनाज व्यापारियों और आढ़तियों से अच्छा भाव नहीं मिल पाता है। वहीं कर्ज में लदा किसान आनन-फानन में अपनी फसल बेचने के चक्कर में इसे औने-पौने भाव में बेच आता है।
कृषि कानून होता तो शायद बदलते हालात
पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून को यदि वापस नहीं लिया जाता तो शायद आज हालात अलग होते। इनकी फसल को वहीं खेत में ही भाव देकर कंपनियां खरीदी कर लेती। जिसे बाजार में उनके द्वारा बेचा जाता। इसमें आढ़तियों की भूमिका खत्म हो जाती और किसानों को भाव भी मिलने की उम्मीद होती। नए सिस्टम में भेड़चाल की तरह किसी एक फसल को लेने के स्थान पर अलग-अलग ली जाती और अत्यधिक उत्पादन होने पर इन्हें फेंकने के स्थान पर हर फसल को भाव भी मिलता। यही वजह है कि अनेक स्थानों पर सभी किसानों द्वारा एक ही फसल लगाने से इनका उत्पादन इतना अधिक हो रहा है कि बाजार में इसे कोई भी कौड़ी के भाव पूछने को तैयार नहीं।