गणेश पांडे, भोपाल। राजनीति के चूके हुए नेताओं के दम पर पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ मिशन-2023 फतह करने की रणनीति बना रहे हैं। यानी पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह, ग्वालियर चंबल के धाकड़ नेता एवं नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह, पिछड़ों के नेता एवं पूर्वी निमाड़ के दमदार नेता अरुण यादव और बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र के असरकारी नेता एवं पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की अनदेखी कर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी, पूर्व महिला कांग्रेस अध्यक्ष शोभा ओझा और पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के साथ मिलकर सत्ता में वापसी की योजना बनाने में जुटे हुए हैं। नाथ की टीम को लेकर सवाल उठने लगे कि जो स्वयं कोई चुनाव ना जीता हो, उसकी चुनाव जीतने की रणनीति कितनी कारगर साबित हो सकती है..? राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ यह मान रहे हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह को हाशिए में धकेल कर सत्ता में वापसी करेंगे तो यह उनकी भूल होगी। प्रदेश से लेकर ब्लॉक स्तर तक आज भी यदि किसी कांग्रेसी नेता का नेटवर्क मजबूत है तो वह है दिग्विजय सिंह का। वहीं कांग्रेस के मौजूदा सिपहसालार एवं पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुरेश पचौरी आज तक एक भी चुनाव नहीं जीत पाए। यहां तक कि अनुकूल माहौल में भी वे भोजपुर विधानसभा चुनाव भी नहीं जीत पाए थे। ऐसी स्थिति में कमलनाथ के लिए पचौरी की कांग्रेस को जिताने की रणनीति कितनी कारगर हो सकती है, यह आने वाला वक्त बताएगा। कांग्रेस में 70 प्रतिशत वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि सुरेश पचौरी कभी भी दिग्विजय सिंह जैसे रणनीतिकार नहीं बन सकते हैं। पचौरी की राजनीति कांग्रेस में हमेशा कृष्ण की तरह मटकी फोड़ने की तरह ही रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ यह नहीं भूलना चाहिए कि लंबी प्रतीक्षा के बाद कांग्रेस ने 2018 में सत्ता में वापसी की थी तो उसके दो शिल्पकार थे, एक दिग्विजय सिंह और दूसरे युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया। 2018 के चुनाव के पहले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नर्मदा परिक्रमा कर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। दिग्विजय सिंह यहीं नहीं रुके, बल्कि पूरे प्रदेश में पंगत में संगत का आयोजन कर असंतोष का भी विषपान किया था। इसी प्रकार केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस चुनाव अभियान की कमान संभाली थी। अब सिंधिया तो कांग्रेस में रहे नहीं, वह दल बल के साथ बीजेपी के बड़े नेता बन गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजनीतिकार दिग्विजय सिंह को अलग कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनथ सत्ता की वापसी का सपना देख रहे हैं तो कहीं ऐसा न हो कि सत्ता रेत के महल की तरह हाथ से स्लिप न हो जाए।
सिद्धार्थ और कमलेश्वर के दम पर विन्ध्य की रणनीति
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ एक बार फिर विंध्य क्षेत्र में पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल और विवादों में रहने वाले विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा के दम पर जीतने की रणनीति बना रहे हैं। इसी कड़ी में पिछले दिनों सतना में विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा ने अपने पिता बीएसपी के पूर्व सांसद दिवंगत सुखलाल कुशवाहा की स्मृति में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह को दूर रखा गया। इस आयोजन में विधायक पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल और राज्यसभा सदस्य राजमणि पटेल उपस्थित थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह की गैरमौजूदगी में विंध्य क्षेत्र के कांग्रेस जनों में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि विन्ध्य की 30 विधानसभा क्षेत्रों में कमलेश्वर और सिद्धार्थ उनके दूत के रूप में काम करेंगे। यानी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाथ ने परोक्ष रूप से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को हाशिए पर अकेले का स्पष्ट इशारा किया है। 2018 के चुनाव में कमलनाथ ने ऐसी रणनीति बनाई थी कि अजय सिंह को अपना गृह क्षेत्र चुरहट विधानसभा क्षेत्र से पराजय का स्वाद चखना पड़ा। इस हार के बाद से ही अजय सिंह काफी संभल गए हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने विंध्य में ऐसी स्थिति तो निर्मित कर ली है कि उनकी उपेक्षा कर यदि कांग्रेस चुनाव जीतने का सपना देख रही है तो वह आसान नहीं होगा। रीवा महापौर और रैगांव विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को फतह दिला कर अजय सिंह ने अपनी राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं।
अरुण यादव के बिना पूर्वी निमाड़ जीतना आसान नहीं
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाथ और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के बीच दरार और भी गहरी होती जा रही है। दरअसल कमलनाथ को यह गलतफहमी हो गई है कि विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा, विधायक रवि जोशी और विधायक डॉ.विजयलक्ष्मी साधौ के दम पर मिशन-2023 पर फतह करने की योजना बना रहे हैं। यह बात अलग है कि शेरा हो या जोशी उनकी राजनीतिक वजूद उनके विधानसभा क्षेत्र से बाहर बिल्कुल भी नहीं है। इसी प्रकार पूर्व मंत्री डॉक्टर साधौ का उनके ही विधानसभा क्षेत्र महेश्वर में कांग्रेस जन विरोध कर रहे हैं। यही नहीं उनका विरोध उनके परिवार के सदस्य भी करने लगे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव की पकड़ बुरहानपुर से लेकर खरगोन तक आज भी मजबूत है।
कांग्रेस पर पचौरी गुट का कब्जा
प्रदेश कांग्रेस कार्यालय पर आज भी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी के अनुयायियों का कब्जा है। मीडिया सेल से लेकर प्रशासन तक पचौरी समर्थक कांग्रेस नेता काबिज है। नरेंद्र सलूजा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के सबसे लायल प्रवक्ता थे, किंतु पचौरी समर्थकों ने उनके समक्ष ऐसी स्थिति निर्मित कर दी कि कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामना पड़ा। महिला कांग्रेस की अध्यक्ष विभा पटेल भले ही दिग्विजय सिंह की कोटे से अध्यक्ष बनी हो पर उनकी टीम में पचौरी कैंप की महिला पदाधिकारी अधिक है। कांग्रेस में पचोरी के बढ़ते वर्चस्व को देखते हुए कमलनाथ समर्थक भी दबी जुबान से विरोध कर रहे हैं।
Views Today: 2
Total Views: 72