दैनिक अनोखा तीर, हरदा। आज हम अपनी भौतिक सुख सुविधाओं की चाह में प्रकृति को गंभीर क्षति पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। यह केवल वर्तमान के लिए ही नहीं बल्कि हमारी भावी पीढ़ी के लिए भी अकल्पनीय नुकसानदेह है। आज हमारे इर्द गिर्द जो विशालकाय पेड़ नजर आते हैं वह हमारे पूर्वजों की देन हैं। लेकिन हमने उन्हें सहजने की बजाय उसका दोहन ही नहीं बल्कि शौषण किया है। जिसके दुष्परिणाम हमें और हमारी भावी पीढ़ी को भी भुगतने पड़ेंगे। हम आज विचार करें कि अपनी भावी पीढ़ी के स्वस्थ जीवन हेतु पर्यावरण में अमृत छोड़ रहे या जहर। जबकि हमारी भारतीय सनातन संस्कृति हमें प्रकृति के संरक्षण का पाठ शुरू से ही पढ़ाते आई है। उक्त विचार एक अनौपचारिक चर्चा दौरान संघ के पूर्व प्रचारक तथा सृष्टि सेवा संकल्प के मार्गदर्शक (प्रचारक) प्रशांत गुप्ता ने व्यक्त किए।
प्रदेश सरकार के कृषि मंत्री कमल पटेल द्वारा आयोजित प्रख्यात कथावाचक जया किशोरी की श्रीमद्भागवत कथा दौरान हरदा आये प्रशांत गुप्ता ने दैनिक अनोखा तीर से सृष्टि सेवा संकल्प द्वारा पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन को लेकर किये जा रहें प्रयासों पर विस्तृत चर्चा की। श्री गुप्ता ने कहा कि हिन्दू धर्म में प्रकृति पूजन को प्रकृति संरक्षण के तौर पर मान्यता है। भारत में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को मांं स्वरूप माना गया है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में ग्रह-नक्षत्र, पहाड़ और वायु देवरूप माने गए हैं। प्राचीन समय से ही भारत के वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों को प्रकृति संरक्षण और मानव के स्वभाव की गहरी जानकारी थी। वे जानते थे कि मानव अपने क्षणिक लाभ के लिए कई मौकों पर गंभीर भूल कर सकता है। जिससे प्राणियों को भारी नुकसान कर सकता है। इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ मानव के संबंध विकसित कर दिए। ताकि मनुष्य को प्रकृति को गंभीर क्षति पहुंचाने से रोका जा सके। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही भारत में प्रकृति के साथ संतुलन करके चलने का महत्वपूर्ण संस्कार है। यह सब होने के बाद भी भौतिक विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति पददलित हुई है। लेकिन यह भी सच है कि यदि ये परंपराएं न होती तो भारत की स्थिति भी गहरे संकट के किनारे खड़े किसी पश्चिमी देश की तरह होती। हिन्दू परंपराओं ने कहीं न कहीं प्रकृति का संरक्षण किया है। हिन्दू धर्म का प्रकृति के साथ कितना गहरा रिश्ता है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र ही अग्नि की स्तुति में रचा गया है।
हमारे ऋषि जानते थे कि पृथ्वी का आधार जल और जंगल है। इसलिए उन्होंने पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा है- ‘वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव: अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। जंगल को हमारे ऋषि आनंददायक कहते हैं- ‘अरण्यं ते पृथिवी स्योनमस्तु।’ यही कारण है कि हिन्दू जीवन के चार महत्वपूर्ण आश्रमों में से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास का सीधा संबंध वनों से ही है। हम कह सकते हैं कि इन्हीं वनों में हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्वर्द्धन हुआ है। हिन्दू संस्कृति में वृक्ष को देवता मानकर पूजा करने का विधान है। श्री गुप्ता ने कहा कि हमारे महर्षि यह भली प्रकार जानते थे कि पेड़ों में भी चेतना होती है। इसलिए उन्हें मनुष्य के समतुल्य माना गया है। ऋग्वेद से लेकर बृहदारण्यकोपनिषद्, पद्मपुराण और मनुस्मृति सहित अन्य वाङ्मयों में इसके संदर्भ मिलते हैं। छान्दोग्य उपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भांति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं। प्रशांत गुप्ता ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन की पूजा का विधान इसलिए शुरू कराया था क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर अनेक औषधि के पेड़-पौधे थे। मथुरा के गोपालको के गोधन के भोजन-पानी का इंतजाम उसी पर्वत पर था। इसी तरह तुलसी का पौधा मनुष्य को सबसे अधिक प्राणवायु ऑक्सीजन देता है। इसी लिए तुलसी को मां का दर्जा दिया गया है। वहीं पीपल को देवता मानकर भी उसकी पूजा नियमित इसीलिए की जाती है क्योंकि वह भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देता है। हमारी माता बहनों को वट पूर्णिमा और आंवला नवमी का पर्व मनाना है तो वटवृक्ष और आंवले के पेड़ धरती पर बचाने ही होंगे। हिन्दू धर्म का वैशिष्ट्य है कि वह प्रकृति के संरक्षण की परम्परा का जन्मदाता है। हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक जीव के कल्याण का भाव है। हिन्दू धर्म के जितने भी त्योहार हैं, वे सब प्रकृति के अनुरूप हैं। श्री गुप्ता ने कहा कि इस सब के वाबजूद वर्तमान समय में हम क्षणिक लाभ की लालसा में प्रकृति को अपूरणीय क्षति पहुंचाने में जुटे हुए हैं। सृष्टि सेवा संकल्प संगठन इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए समाज में पर्यावरण के प्रति जनजागृति लाने का कार्य कर रहा है। श्री गुप्ता ने आव्हान किया कि हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह अथवा अपने पुर्वजों की पुण्यतिथि हर यादगार दिन को पौध रोपण के साथ मनाये ओर उसे पृथ्वी पर हमेशा के लिए यादगार बना दें। अगर वृक्ष मिटेंगे तो बचेगा कौन ओर वृक्ष बचेंगे तो मिटेगा कौन।
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