चुनाव में चली मूंछ मरोड़ कर मूंछ झुकाने की राजनीति

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अनोखा तीर, चुनाव डेस्क। हरदा जिले में पंचायत चुनाव और नगरी निकाय चुनाव दोनों ही संपन्न हो चुके हैं। गैर दलीय आधार पर हुए पंचायत चुनाव में किस प्रत्याशी को कितने मत प्राप्त हुए इसकी गणना मतदान स्थल पर ही संपन्न हो चुकी है। जिससे यह तो स्पष्ट हो चुका है कि कौन जीता और कौन हारा। बहरहाल अधिकृत तौर पर अभी जीतने वाले प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई। यह चुनाव चाहे पार्टी के अधिकृत चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़े गए थे, लेकिन चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी किसी न किसी दल के पदाधिकारी या सदस्य ही थे। जिससे यह स्पष्ट था कि कौन भाजपा का है और कौन कांग्रेस से है। इसी आधार पर ग्राम पंचायतों, जनपद पंचायतों और जिला पंचायत पर राजनीतिक दल अपनी जीत हार का दावा भी कर रहे हैं। भाजपा समर्थित प्रत्याशियों के आधार पर हरदा जिला पंचायत का अध्यक्ष भाजपा का बनना तय हो चुका है। इसी तरह जनपद पंचायतों में हरदा जनपद पंचायत पर भाजपा तो टिमरनी-खिरकिया पर कांग्रेस द्वारा दावा किया जा रहा है। जिले में नगरी निकाय चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के कारण राजनीतिक दल के शहरी नेताओं ने वैसे तो इन पंचायत चुनाव में कोई विशेष रूचि नहीं ली। दोनों ही दलों के ग्रामीण स्तर के पदाधिकारी और कार्यकर्ता यह चुनाव अपने बलबूते पर ही लड़ते रहें। लेकिन चुनाव जीतने के बाद इन शहरी नेताओं ने अपने दल का दावा करते हुए खुद की पीठ जरूर थपथपाई हैं। वैसे इस बार पंचायत चुनाव में कई जगह अच्छे रोचक मुकाबले देखने को मिले। कई दिग्गजों को मतदाताओं ने आईना दिखा दिया, तो वहीं कई वोट के ठेकेदारों को अपनी जमीन नजर आ गई। ग्रामीण चुनावों ने स्थानीय नेताओं के लिए गांव की उस लोकोक्ति को भी चरितार्थ कर दिया कि ‘नाई नाई बाल कितने सब सामने आ गए।’ स्थानीय चुनाव में मतदाताओं ने किसी की मूंछ खड़ी कर दी तो किसी की झुका दी। मूंछ मरोड़ कर मूंछ झुकाने की राजनीति करने वाले कई दिग्गजों को इस चुनाव ने पसीना छुड़ा दिया। जहां तक शहरी क्षेत्रों का सवाल है तो यहां चुनाव तो दलीय आधार पर हुए हैं, लेकिन अध्यक्ष का चुनाव सीधे तौर पर नहीं होने से कई दिग्गज पार्षद बनने को ललायित नजर आ रहे थे। पार्षद पद के लिए दिग्गज नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने पर लोगों द्वारा चुटकियां भी ली जा रही थी। कोई कहता था कि कलेक्टर ने चपरासी के लिए आवेदन किया, तो कोई कहता था कि थानेदार ने चौकीदार के लिए फार्म भरा। खैर इस तरह के चुनावी हास परिहास तो चलते रहते हैं। लेकिन हरदा नगर पालिका चुनाव को लेकर देखा जाए तो राजनीतिक तौर पर इस बार काफी कुछ हटकर देखने को मिला। देश और प्रदेश में विपक्ष की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस इस बार एकजुट नजर आ रही थी। वहीं दूसरी ओर संगठन को सर्वोपरि मानते हुए संस्कारवान कार्यकर्ताओं वाली भाजपा में संगठन कहीं नजर नहीं आ रहा था। संगठन के सभी पदाधिकारी खुद चुनाव लडऩे में मशगूल थे। भाजपा द्वारा संगठन मंत्रियों के पद समाप्त करने का जो फैसला लिया गया था उसका असर भी स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा था। संगठन मंत्रियों की रणनीति के तहत जिस तरह पार्टी कार्यकर्ता गोरिला स्टाइल में सीधे मतदाताओं तक पेठ जमाते थे उसका अभाव इस चुनाव दौरान देखने को मिला। दलीय स्तर पर देखा जाए तो सत्ताधारी भाजपा की कमान पूरे समय स्थानीय विधायक और प्रदेश शासन के मंत्री कमल पटेल ने थाम रखी थी। मंत्री कमल पटेल के अलावा कोई दूसरा नेता चुनावी रणनीति में शामिल नहीं था। संगठन के तो सभी पदाधिकारी स्वयं चुनाव लडऩे में मशगूल थे। चूंकि नगरपालिका अध्यक्ष का चयन पार्षदों द्वारा किया जाना है और अध्यक्ष का पद पिछड़ा वर्ग महिला के लिए आरक्षित है। ऐसी स्थिति में पिछड़ा वर्ग की महिला पार्षद के जीतने पर ही सारा दारोमदार निर्भर करता है। यही कारण है कि भाजपा जिला अध्यक्ष अमर सिंह मीणा ने स्वयं अपनी पत्नी श्रीमती आशा मीणा को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं पिछड़ा वर्ग से ही भाजपा नगर मंडल अध्यक्ष विनोद गुर्जर ने भी अपनी पत्नी श्रीमती बिंदु गुर्जर को चुनाव मैदान में उतारा है। दूसरी ओर भाजपा जिला उपाध्यक्ष राजू कमेडिय़ा ने अपनी पत्नी श्रीमती भारती कमेडिया को चुनाव मैदान में उतारा है। वैसे तो अध्यक्ष पद को लेकर श्रीमती कैलाश सांखला और रक्षा धनगर को भी प्रबल दावेदार में माना जा रहा था। संगठन के विभिन्न पदाधिकारियों द्वारा अपनी पत्नियों को चुनाव मैदान में उतारने के कारण पार्टी के कई मैदानी कार्यकर्ता जो टिकट की दौड़ में थे उन्हें निराशा हाथ लगी। जिसके चलते पार्टी के कई निष्ठावान कार्यकर्ताओं में असंतोष भी देखने को मिला। वहीं चुनाव के चलते अध्यक्ष पद को लेकर कृषि मंत्री कमल पटेल द्वारा श्रीमती भारती राजू कमेडिय़ा का नाम घोषित कर दिया गया। इस नाम के घोषित होने से भाजपा के उन अध्यक्ष पद के दावेदारों के देवता ठंडे पड़ गए जो अपनी पत्नी को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। लेकिन चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि इससे पार्टी में ही गला काट प्रतियोगिता शुरू हो गई। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस द्वारा पूर्व विधायक स्वर्गीय नन्हेलाल पटेल की पुत्रवधु श्रीमती सुप्रिया पटेल का नाम अध्यक्ष पद के लिए घोषित कर दिया गया। जिससे मतदाताओं और दोनों ही दलों के कार्यकर्ताओं के बीच अध्यक्ष पद के उम्मीदवार को लेकर ऊहापोह समाप्त हो गई। वहीं प्रत्याशी चयन के लिए रास्ता भी आसान हो गया। जहां भाजपा की कमान मंंत्री कमल पटेल के हाथों में थी तो कांग्रेस की कमान ऊपरी तौर पर तो कांग्रेस जिलाध्यक्ष ओम पटेल, पूर्व विधायक डॉ आरके दोगने द्वारा थामी नजर आ रही थी, लेकिन वास्तविक रणनीति कांग्रेस के दिग्गज नेता स्वर्गीय एकनाथ अग्रवाल के शिल्पसलाहकार रहें पूर्व प्रदेश कांग्रेस सचिव प्रकाशचंद्र वशिष्ठ गुरु द्वारा रची जा रही थी। पार्टी के पार्षद प्रत्याशियों के चयन में भी प्रकाशचंद्र वशिष्ठ गुरु का काफी प्रभाव देखने को मिला। अगर शहर के सभी वार्डो पर नजर डाली जाए तो 20 से अधिक वार्डों में श्री वशिष्ठ के नजदीकी कार्यकर्ताओं को ही प्रत्याशी बनाया गया है। इससे स्पष्ट है कि इस चुनाव में टिकट वितरण को लेकर श्री वशिष्ठ की रणनीति का अधिक प्रभाव रहा है। चूंकि लंबे समय से कांग्रेस की चुनावी रणनीति में स्वर्गीय अग्रवाल के साथ मैदानी तौर पर कमाल संभालने का अनुभव होने के कारण श्री गुरु का प्रभाव कार्यकर्ताओं के बीच लंबे समय से बना रहा है। डॉक्टर आरके दोगने के चुनाव दौरान भी कांग्रेस नेता प्रकाशचंद्र वशिष्ठ की सक्रियता और रणनीति कार्यकर्ताओं के बीच देखने को मिली थी। वहीं चुनाव में श्री वशिष्ठ के साथ ही कांग्रेस नेता अशोक नेगी और पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष हेमंत टाले की सक्रिय भूमिका भी उल्लेखनीय हैं। चूंकि पहले अक्सर चुनाव में कांग्रेस दो धड़ों में बटी और भाजपा एकजुट नजर आया करती थी। लेकिन इस बार के चुनाव में इसका ठीक उल्टा नजर आ रहा था। कांग्रेस पूरी तरह एकजुट होकर यह चुनाव लड़ रही थी। जिसमें मैदानी बागडोर कांग्रेस जिलाध्यक्ष ओम पटेल तथा पूर्व विधायक आरके दोगने के साथी अन्य कांग्रेसी नेताओं ने संभाल रखी थी तो वहीं दूसरी ओर भाजपा की अंदरूनी रणनीति तथा कूटनीति का तोड़ निकालने का कार्य और उम्मीदवारों को मैदानी तौर पर भाजपा की रणनीति का सामना करने के गुर कांग्रेस नेता प्रकाशचंद वशिष्ट के साथ ही श्री नेगी और श्री टाले कर रहे थे। वहीं चुनावी गुणा भाग लगाने वाले कई रणनीतिकारों का तो यह भी मानना रहा कि कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले चुनाव मैदान में उतारने के लिए जीताऊ प्रत्याशियों की अंतिम समय तक तलाश बनी रही। बावजूद इसके यह आंकलन लगा पाना आसान नहीं है कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा। खैर अब तो चुनाव संपन्न होकर सभी प्रतिभागियों के भाग्य का फैसला ईवीएम मशीन में कैद हो चुका है। किस की रणनीति कितनी कारगर साबित हुई यह तो परिणाम घोषित होने पर ही पता चलेगा। बहरहाल अभी तो दोनों ही दल अपनी-अपनी जीत और बहुमत का दावा कर रहे हैं। हमें तो उन परिणामों का इंतजार है जो बताएंगे कि किसकी मूंछ ऊंची हुई और किसकी झुक गई।

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