अनोखा तीर, खिरकिया। समता भवन में विराजित पूज्य सारिका जी महाराज साहब ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीव अनादि काल से आत्म-पतन की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि निगोद में अनंत जीव हैं, जो क्रमश: निकलकर सिद्ध पद प्राप्त कर रहे हैं, पर हम अभी भी मोह में बंधे हुए हैं। सारिका जी महाराज साहब ने बताया कि भगवान ने आत्मा के अनिवार्य गुण आगम में बताए हैं, पर हम मन की मानते हैं, आगम की नहीं, यही पतन का कारण है। उन्होंने कहा कि जिनवाणी का रस सर्वोत्तम है, पर जीव उसे ग्रहण नहीं करना चाहता। जिनवाणी सुनने से ज्ञान-दृष्टि विकसित होती है, तत्व-बुद्धि जागृत होती है। गणधर को 14 पूर्व का ज्ञान तीन शब्द सुनकर मिला था। इसी प्रकार जिनवाणी सुनने से मोह दृष्टि मंद पड़ती है और यही कारण है कि हम एक घंटा निकालकर व्याख्यान सुनने आते हैं। पूज्य शिल्पा जी महाराज साहब ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीव सुख चाहता है, वह भी स्थायी, पर कार्य इसके विपरीत करता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि संसार में जीव दुखों का वर्णन तो करता है पर संसार को ही दुख रूप नहीं मानता। हम भगवान से वही चीजें मांगते हैं जिन्हें भगवान ने स्वयं त्याग दिया है। यह सभी पदार्थ नश्वर हैं, इन्हें छोड़ने पर ही जिनवाणी में रस आता है। सभा में दीपा नितिन विनायक ने 4 उपवास का प्रत्याख्यान ग्रहण किया। धर्मसभा का संचालन नगीनचंद मेहता ने किया। प्रभावना आनंद इन्द्र श्री श्री माल परिवार द्वारा रही।
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