कृषि विज्ञान केंद्र की गेहूं उत्पादक किसानों को सलाह

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अनोखा तीर, हरदा। कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. ओमप्रकाश भारती ने बताया कि गेहूँ में अंकुर झुलसा रोग फ्यूजेरियम और माइक्रोडोकियम जैसे कवकों के कारण होता है, जो युवा अंकुरों को नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे फसल का विकास कम होता है और उपज में संभावित कमी आती है। उन्होने बताया कि कवकनाशी युक्त उपचारित बीजों का उपयोग करके और उच्च गुणवत्ता वाले, बिना क्षतिग्रस्त बीजों को बोकर इसका प्रबंधन किया जा सकता है, खासकर जब ठंडा, नम मौसम रोग के विकास के लिए अनुकूल हो। डॉ. भारती ने बताया कि रोगजनक मुख्यत: फ्यूजेरियम प्रजाति और माइक्रोडोकियम प्रजाति के कारण, जो बीज या मिट्टी में मौजूद हो सकते हैं। कोक्लिओबोलस सैटिवस एक अन्य सामान्य कारण है, जिसे कभी-कभी सामान्य जड़ सड़न भी कहा जाता है। इसमें संक्रमित बीज अंकुरित नहीं हो सकते हैं, या अंकुर निकलकर मर सकते हैं। क्षतिग्रस्त पौधों के कारण पौधे पतले हो जाते हैं और उपज कम हो जाती है। डॉ. भारती ने बताया कि कवकनाशी बीज उपचार बीज और युवा जड़ों की रक्षा करके अंकुर झुलसा को नियंत्रित करने में बहुत प्रभावी होते हैं। उच्च गुणवत्ता वाले बीज का प्रयोग करें और बोने से पहले रोग की जाँच करवा लें। फटे हुए बीज बोने से बचें, क्योंकि ये रोगाणुओं के लिए प्रवेश द्वार बन जाते हैं। उचित गहराई पर रोपण करने से रोग को रोकने में मदद मिल सकती है। फफूंदजनित अंगमारी पिछले वर्षों में फ्यूजेरियम हेड ब्लाइट (एफएचबी) की उपस्थिति से पौध में अंगमारी का खतरा बढ़ सकता है।

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