अनोखा तीर हंडिया। हंडिया तहसील से 23 किलोमीटर पश्चिम, हरे-भरे जंगलों के बीच बसे कांकरदा जिसे वर्ष 2005 में इंदिरा सागर डैम बैकवॉटर क्षेत्र से विस्थापित कर बसाया गया था। यहां के वाशिंदे आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हंै। प्रशासन और एनएचडीसी ने इस पुर्नवासित ग्राम को कलेक्टर नगर का नाम देकर विकास का आश्वासन तो दिया था, लेकिन 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां की स्थिति जस की तस बनी हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि हरदा जिले के गठन के बाद तत्कालीन कलेक्टर बीके बाथम ने बैकवॉटर में डूबने वाले गांवों के पुनर्वास की पहल की थी। इसी दौरान कांकरदा ग्राम का पुनर्निर्माण कराया गया और इसे मॉडल पुर्नवास ग्राम बनाने का वादा किया गया था। एनएचडीसी द्वारा कांकरदा से सालियाखेड़ी तक 10 किलोमीटर सड़क, विद्युत आपूर्ति तथा आवश्यक सुविधाओं के विस्तार की योजना बनाई गई थी। प्रारंभिक कार्य तो हुए, लेकिन ग्रामीणों के अनुसार आगे की सभी योजनाएं सिर्फ कागजों में सिमटकर रह गईं। आज की स्थिति यह है कि गांव में सड़कें भयावह गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था अधूरी है और स्वास्थ्य सुविधाएं केवल औपचारिकताओं तक सीमित हैं। लोग मजबूरी में नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। पूर्व सरपंच महेश भिलाला बताते हैं कि जब गांव को कलेक्टर पुर्नवास केंद्र घोषित किया गया था, तब वनांचलवासियों को उम्मीद जगी थी कि विकास की गंगा यहां बहेगी। लेकिन 18 साल बीत गए, गांव आज भी उपेक्षा का शिकार है। वादा किया गया था कि हम पिछड़े नहीं रहेंगे, लेकिन आज हर सुविधा के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, उन्होंने कहा। स्थानीय ग्रामीणों ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से मांग की है कि कांकरदा कलेक्टर नगर की वास्तविक स्थिति पर ध्यान देते हुए सड़क, पेयजल, स्वास्थ्य और अन्य आधारभूत सुविधाओं को त्वरित रूप से उपलब्ध कराया जाए।


Views Today: 30
Total Views: 30

