विश्व के पांच महादीपों की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा फहराने वाली ज्योति रात्रे से बातचीत
अनोखा तीर, हरदा। हरदा जिले के छोटे से गांव कुकरावत में जन्मी ज्योति रात्रे ने आज हौंसलों की उड़ान से सर्वाधिक आयु वर्ग की महिला के रुप में कई कीर्तिमान स्थापित किए है। उन्होंने न केवल दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को सर्वाधिक आयु वर्ग की महिला के रुप में फतेह करने का कीर्तिमान अपने नाम किया है, अपितु वह विश्व के सात महादीपों में से पांच महादीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर भी तिरंगा फहराने वाली पहली महिला बन चुकी है। अपनी आयु के 49 वें वर्ष में उन्होंने पहली बार माउंट एवरेस्ट पर चढऩे का सपना तब संजोया जब वह केवल एक गृहणी और भोपाल में स्कूली बच्चों की यूनिफार्म तथा फैशन डिजाइन शो के लिए वस्त्र निर्माण का कार्य किया करती थी। बगैर किसी प्रशिक्षण और शासकीय सहयोग के ज्योति रात्रे ने इंटरनेट के सहारे ही तमाम जानकारियां हासिल करते हुए अपने सपने को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया। मध्यप्रदेश की धरती पर सामान्य तापमान में एक आम व्यक्ति की तरह जीवन यापन करने वाली ज्योति को बर्फीले पहाड़ों पर जाने का या वहां रहने चलने का कोई अनुभव नहीं था। वर्ष 2018 में माउंट एवरेस्ट पर जाने का जो सपना उन्होंने अपने जहन में संजोया तब उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि वह जो स्वप्न देख रही है वह कितना जोखिमपूर्ण और साहसिक कार्य है। एक ओर तो विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट जो 8 हजार 848 मीटर ऊंची चोटी पर चढऩे का जुनून और उसके लिए की जाने वाली तैयारी के नाम पर घर के ही एक फ्लोर की सीढिय़ों को कभी 60-70 बार तो कभी 100 बार चढऩे उतरने का अभ्यास करना, वहीं घर के सामने ही 5-7 मीटर से प्रारंभ कर 50 मीटर तक दौड़ लगा लेना। एवरेस्ट फतेह करने के लिए इस तरह का अभ्यास करना सुनकर ही आश्चर्यचकित लगता है कि कोई भला ऐसे अभ्यास से ही माउंट एवरेस्ट पर चढ़ सकता है। लेकिन महज पांच वर्षों के भीतर ज्योति ने न केवल माउंट एवरेस्ट बल्कि विश्व की पांच सबसे ऊंची चोटियों पर चढऩे के कीर्तिमान अपने नाम कर लिए। निश्चित ही यह ज्योति के हौंसलों की उड़ान थी जिसने उसे इस ऊंचाई तक पहुंचा दिया कि आज हरदा के कुकरावत की बेटी को दुनिया पहचान रही है। 55 वर्ष की आयु में मध्यप्रदेश, हरदा और हिन्दुस्तान को गौरवान्वित करने वाली पर्वतारोही ज्योति रात्रे से दैनिक अनोखा तीर के संपादक प्रहलाद शर्मा ने जो बातचीत की वह संक्षिप्त रुप में इस प्रकार है-

प्रहलाद शर्मा : सबसे पहले तो आपको बहुत बहुत बधाई, शुभकामनाएं। आज हमें गर्व हो रहा है कि हमारे हरदा और मध्यप्रदेश की बेटी ने विश्व रिकार्ड कायम किया है
ज्योति रात्रे : जी धन्यवाद। आप सभी लोगों की शुभकामनाओं और हौंसला अफजाई के बल पर मैं यह सब कर पाई हूं।
प्रहलाद शर्मा : माउंट एवरेस्ट और विश्व की सर्वाधिक ऊंची चोटियों पर जाने का ख्याल आपको कब और कैसे आया?
ज्योति रात्रे : कुछ नया करने का जुनून मेरे अंदर बचपन से ही था। लेकिन कम उम्र में ही शादी हो गई और घर गृहस्थी के कार्य में अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही थी। वैसे तो मेरी रुचि ड्राईंग, पेंटिंग जैसी कलाओं में थी, लेकिन मुझे 2017 में रोटरी क्लब के कल्चर एक्सचेंज प्रोग्राम में विदेशों से आए बच्चों से मनाली में एक ट्रेक पर जाने का मौका मिला। तब हम लगभग 3500 मीटर तक की ऊंचाई पर गए थे। यह सफर बहुत ही आनंददायक और हिमालय की खूबसूरती को देखकर अभिभूत करने वाला था। 6-7 घंटे पैदल पहाड़ पर चढक़र वहां से प्रकृति का दृश्य देखकर मैं इतनी अभिभूत हो गई की इससे और ऊंचाई पर जाने का मन करने लगा। हम लोग वहां से लौट तो आए, लेकिन मेरी नजरों में हिमालय का जो सौंदर्य कैद हुआ था वह मुझे बार-बार अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। जब मैनें इस संबंध में अपने पति से चर्चा की तो अगले ही वर्ष हम फिर मनाली के पिन पार्वती पास ट्रेक करने चले गए। यह भारत के सर्वाधिक कठिन ट्रेक में से माना जाता है। इसकी ऊंचाई 5350 मीटर है। इस सफर में मेरे पति मेरे साथ थे तो हमने 12 दिनों में यह ट्रेक सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया। जब हम नीचे आए तो हमारे साथ जो अन्य लोग गए थे वह सभी अपने आगे के प्लान के बारे में चर्चा कर रहे थे। इसी दौरान मुझसे भी कुछ लोगों ने पूछा कि आपका अगला प्लान क्या है? मैनें तत्काल कहा मैं माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढऩा चाहती हूं। मेरा यह जवाब सुनकर सभी मेरी ओर न केवल देख रहे थे बल्कि सच कहूं तो वह मेरा मजाक भी उड़ा रहे थे। लेकिन इस चढ़ाई से मेरा आत्मविश्वास बढ़ चुका था। बस आप यह मानिये की यही से शुरु होता है मेरा एवरेस्ट चढ़ाई की यात्रा का सिलसिला।

प्रहलाद शर्मा : क्या आपने इसके लिए पहले कोई प्रशिक्षण प्राप्त किया था?
ज्योति रात्रे : जी बिल्कुल नहीं। मैनें अपने लक्ष्य माउंट एवरेस्ट के प्रति जब अपने पति को बताया तो उन्होंने समझाया कि यह काफी कठिन रास्ता है और इसके लिए बेहद शारीरिक क्षमता की जरुरत है। वहीं यह खतरों से भी भरा हुआ है। तब मैनें कहा कि कार्य कोई भी कठिन नहीं होता और खतरा कहां नहीं होता। तब मैनें इंटरनेट के माध्यम से माउंट एवरेस्ट के बारे में जानकारी निकाली तो पता चला कि भारत में 5 माउंटेननीयरिंग इंस्टीट्यूट है जो 40 वर्ष से अधिक आयु वालों को प्रवेश नहीं देते। चूंकि मैं 49 वर्ष की हुई थी तो मुझे प्रवेश मिलना संभव ही नहीं था। मैनें फिर यह पता किया कि किस-किस ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की है। उनके नंबर हासिल कर संपर्क करना शुरु किया। लेकिन किसी ने भी मेरी उम्र को देखते हुए पॉजीटिव रिस्पांस नहीं दिया। उन्होंने कहा कि यह बहुत कठिन कार्य है और दो साल तक सब कुछ छोडक़र तैयारी करनी पड़ती है। इस दौरान कोविड महामारी का दौर आ गया था। बाहर जाना संभव नहीं था तो मैनें अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए घर पर ही व्यायाम तथा घर के एक फ्लोर की सीढिय़ों पर 60-70 बार उतरना चढऩा तथा घर के सामने ही दौडऩे का अभ्यास शुरु कर दिया। इस तरह मैं अपने लंग्स की क्षमता बढ़ाने के लिए अभ्यास करती रही। चूंकि मुझे कोई प्रशिक्षण नहीं मिला था इसलिए मैनें नेट के माध्यम से ही ऐसे पहाड़ चुने जिससे मेरी ट्रेनिंग भी हो जाए और छोटी-छोटी सफलताएं भी हासिल होती रहे। कोविड की पहली लहर कम होते ही मैनें देवटिब्बा पीक जो मनाली के पास स्थित है जाने का प्लान किया। तब मेरे पति ने कहा कि अगर एवरेस्ट पर जाना है तो तुम्हें अकेले ही बाहर आना-जाना सीखना पड़ेगा। मैं वहां कार्य करने वाली एक कंपनी के संपर्क में बनी रही। परिणामस्वरुप मेरा माउंट देवटिब्बा अभियान सफल हुआ और मुझे जुमारिंग की ट्रेनिंग एवं स्नो बूटस क्रेमपान में चलने का अनुभव मिला। इस तरह मैं पहले पीन पार्वती पास ट्रेक फिर माउंट देवटिब्बा पिक जो 6001 मीटर की ऊंचाई पर थी वहां जाने में सफल रही तो इसके बाद नोरबू पीक मनाली की 5226 मीटर की चढ़ाई चढक़र अपने हौंसलों को और बुलंद किया।
प्रहलाद शर्मा : माउंट एवरेस्ट को छोडक़र विश्व के अन्य महादीपों पर जाने का प्लान कैसे बना लिया?
ज्योति रात्रे : माउंट एवरेस्ट को छोड़ा नहीं बल्कि उसी की तैयारी दौरान मेरा संपर्क पूना की एक कंपनी से हो गया। जो माउंट एल्ब्रूस्म यूरोप की सबसे ऊंची पर्वत चोटी के लिए प्रतिभागियों को नामांकित कर रही थी। मैनें इसमें भाग लेना उचित समझा और उसके लिए रूस से अनुमति लेने और वीजा बनाने हेतु 15 हजार रुपए कंपनी को जमा भी करा दिए। कोराना की दूसरी लहर जब कम हुई तो हम 2 जुलाई 2021 को मास्को के लिए रवाना हो गए तथा 8 जुलाई को मैं यूरोप की सबसे ऊंची चोटी पर चढऩे में सफल हो गई। जब नीचे उतरी तो पता चला कि मैनें भारत की सबसे अधिक उम्र की एल्ब्रूस्म फतेह करने वाली महिला का कीर्तिमान अपने नाम कर लिया है। वहां से वापस आने के बाद 15 अगस्त को किलिमंजारों पर तिरंगा फहराने का ख्याल आया। अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारों के लिए मैनें फिर अपना बेग तैयार किया और 8 अगस्त को निकल पड़ी। दिल्ली से तजानिया किलिमंजारों के लिए जब रवाना हुई तो महाराष्ट्र के दो अन्य लोग मेरे साथ थे, जो मुझसे उम्र में काफी कम थे। इस तरह मैनें 15 अगस्त को तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद 5895 मीटर की ऊंचाई पर भारत का तिरंगा फहराने में सफलता हासिल की।
प्रहलाद शर्मा : फिर माउंट एवरेस्ट पर कैसे पहुंची?
ज्योति रात्रे : मैनें 3 जनवरी 2023 को दक्षिण अमेरिका की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट अक्कोंकागुआ को फतेह किया। अब इस ऊंचाई पर पहुंचने के बाद मुझे पूर्ण विश्वास हो गया था कि मैं एवरेस्ट के लिए पूरी तरह तैयार हो गई हूं। इस बीच मुझे कुछ शारीरिक परेशानियां भी आ गई थी। लेकिन सभी का सामना करते हुए आखिर मैनें 2 मई को एवरेस्ट के लिए अपनी यात्रा प्रारंभ कर दी। चूंकि ऊपर मौसम बहुत खराब था ऐसी स्थिति में हमें जगह-जगह टेन्ट लगाकर रुकना पड़ रहा था। बाहर काफी तेज हवाएं और स्नोफॉल हो रहा था। 17 मई को हम कैम्प चार पहुंचे। रात में वहां रुकना पड़ा और 18 मई को शाम तीन बजे मैं एवरेस्ट समिट के लिए निकल पड़ी। यह मेरी परीक्षा की घड़ी थी। पांच वर्षों की तपस्या सफल होने वाली थी। अब मैनें सोचा कि अभी नहीं तो कभी नहीं। मैं बिना रुके चलती रही और हिलेरी स्टेप सूर्योदय का दृश्य देखकर अभिभूत हो गई। अब मंजिल काफी करीब आ चुकी थी। सुबह 6.30 बजे मैं विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच चुकी थी। थोड़ी देर चारों ओर देखने के बाद फोटो आदि लेने पश्चात मुझे नीचे सकुशल पहुंचने की चिंता होने लगी। रास्ते में रुकते हुए जब कैम्प चार पर 166 घंटे रुकना पड़ा तो यह भी एक रिकार्ड बन गया। चूंकि इससे अधिक समय इतनी ऊंचाई पर इससे पहले कोई नहीं रुका था। तमाम परेशानियों का सामना करते हुए जब नीचे आई तो पता चला कि भारत के सर्वाधिक आयु वर्ग वाली महिला का खिताब अब मेरे नाम दर्ज हो चुका है। इससे पहले संगीता बहल ने 53 वर्ष की आयु में यह रिकार्ड अपने नाम दर्ज किया था, जिसे आज मेरे द्वारा तोड़ दिया गया। इस तरह मैं बीते पांच वर्षों में सात महादीपों की पांच सबसे ऊंची चोटियों पर चढऩे का कीर्तिमान अपने नाम दर्ज करा चुकी हूं।
प्रहलाद शर्मा : विदेशों में अपने अभियान दौरान सर्वाधिक किन कठिनाईयों का सामना करना पड़ा?
ज्योति रात्रे : सबसे बड़ी तो भाषा की समस्या थी। विदेशी लोग अपने देश की भाषा को सर्वाधिक महत्व देते है। वहां न तो हमारी हिन्दी चलती है और न ही सामान्य अंग्रेजी। उनकी अपनी ही अलग भाषा होती है। वह तो यहां तक कहते है कि जब आपको हमारे यहां आना था तो पहले हमारी भाषा सीखना चाहिए था। इसी तरह खाने पीने की भी काफी समस्याएं होती है। वैसे तो हम अपने साथ लगभग 50 किलो वजन लेकर चलते है, जिसमें खाने पीने की सामग्री भी होती है।
प्रहलाद शर्मा : आपका यह जोखिमपूर्ण अभियान जानलेवा भी साबित हो सकता था?
ज्योति रात्रे : जी हां। बिल्कुल सही कहा हमारे साथ भी जो लोग गए थे उसमें से कुछ मीसिंग हुए है। चूंकि वहां जाने के बाद अगर थोड़ी सी भी चूक होती है तो फिर बचने के कोई चांस नहीं होते। हम जब पहाड़ों पर चलते है तो वहां बर्फों में दबे हुए कंकालों की बीच से भी गुजरना पड़ता है। चूंकि वहां से नीचे बाडी को लाने का कोई साधन नहीं होता।
प्रहलाद शर्मा : क्या शासन स्तर पर आपको कोई सहयोग मिला?
ज्योति रात्रे : मध्यप्रदेश सरकार ने वर्षों पुराने प्रावधानों के अनुसार माउंट एवरेस्ट फतेह करने पर 15 लाख रुपए की सम्मान राशि अवश्य दी है बाकि कभी न तो किसी मिशन पर जाने से पहले और न जाने के बाद कोई शासकीय सहयोग मिल पाया। अगर हमारी सरकारें इस दिशा में साहसिक कदम उठाने वाले पर्वतारोहियों को प्रोत्साहित करने लगे तो निश्चित ही काफी लोग आगे आ सकते है। चूंकि इस अभियान में पैसा भी बड़े पैमाने पर लगता है।
प्रहलाद शर्मा : यह उपलब्धि हासिल कर आप कैसा अनुभव करते है?
ज्योति रात्रे : यह सब आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, कड़ी मेहनत और मानसिक शक्ति से सफल हो पाया है। इसमें मेरे पति और परिवार का पूरा सहयोग मिला है। जहां तक अनुभव तो बहुत हासिल किए, लेकिन इन्हें शब्दों में बयां कर पाना मेरे बूते की बात नहीं है। हां मुझे खुशी है कि मैं अपने गांव कुकरावत, हरदा, भोपाल सहित मध्यप्रदेश और हिन्दुस्तान का नाम विश्व मानचित्र पर स्थापित करने में सफल हुई हूं। निश्चित ही मेरी इस यात्रा को पढ़ सुनकर मेरे जैसी अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा अवश्य मिलेगी।
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