समाज का कल्याण शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है : श्रृंगेरी शंकराचार्य
भोपाल : मध्यप्रदेश के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश शासन के तत्वाधान में प्रयागराज महाकुंभ के सेक्टर-18 में लगें एकात्म धाम मंडपम् में दो दिवसीय शास्त्रार्थ सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में देश भर के 15 विद्वानों ने हिस्सा लिया। शास्त्रार्थ सभा की अध्यक्षता श्रृंगेरी शंकराचार्य विधुशेखर भारती जी ने की। उन्होंने कार्यक्रम के अंतिम सत्र में सभा को संबोधित किया व विद्वानों और शंकरदूतों को आर्शीवाद दिया।
दुखों से बाहर आना ही मोक्ष है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए वैदिक परंपरा का अनुसरण करना होगा। वैदिक परंपरा विश्व का आधार है और यही पूरे विश्व में व्याप्त दुखों को नष्ट कर सकती है। इस पर संकट का अर्थ है पूरे विश्व में संकट आना। आदि शंकराचार्य के उपदेशित मार्ग पर चलने से ही प्रत्येक व्यक्ति की भलाई हो सकती है। “समाज का कल्याण आदि शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है।” यह बात श्रृंगेरी शंकराचार्य ने प्रयागराज महाकुंभ में लगे मध्यप्रदेश के एकात्म धाम मंडपम में चल रही शास्त्रार्थ सभा के अंतिम दिन अपने संबोधन में कही।
दूसरे दिन 7 घंटे तक चला शास्त्रार्थ
शास्त्रार्थ में देशभर से आए 15 विद्वानों ने अपने पक्ष को सिद्ध करने के लिए शंकराचार्य के समक्ष तर्क रखे। यह शास्त्रार्थ 8 घंटे तक सतत् रूप से संस्कृत में हुआ। इसमें अद्वैत परंपरा आचार्यों का वैशिष्ट्य विवेचन, मिथ्यात्व निरूपण, ब्रह्मसूत्र, जगतकारण विमर्श जैसे विषयों पर चर्चा हुई। शास्त्रार्थ के विषय में कहा कि संवाद में बुद्धिमान की विजय होती है परन्तु ऐसा जरूरी नहीं कि जीतने वाला हमेंशा शास्त्र सम्मत हो। इसके लिए वैदिक परंपरा में विश्वास रखना जरूरी है। हमारे लिए वेद प्रमाण है, वैदिक परंपरा में जो विश्वास रखते है उनके वचन को प्रमाणित करने के लिए भगवान स्वयं आ जाते है।
प्रयाग में आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट का संगम
श्रृंगेरी शंकराचार्य ने कहा कि प्रयागराज की धरती पर आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट का संगम हुआ था। वे अपने भाष्य पर वार्तिक रचना के लिए कुमारिल भट्ट से मिलने आए थे। उन्होंने कहा कि वेदों के विषय में मन में कोई संदेह नहीं होना चाहिए और पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। भारत के अतिरिक्त दुनिया के हर कोने ने सिर्फ जीवन जीने के लिए क्या जरूरी है उसकी बात होती है, लेकिन भारत की वैदिक परंपरा अनादि काल से जीवन को सार्थक बनाना सिखा रही है।
समाज का कल्याण शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है
श्रृंगेरी शंकराचार्य ने मध्यप्रदेश शासन की एकात्म धाम की संकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए सराहना की। उन्होंने कहा कि आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मध्यप्रदेश ने एकात्म धाम के रूप में आदि गुरू शंकराचार्य जी की जो सेवा की जा रही है कि उसे मैं शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। समाज का कल्याण शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है, इस मंतव्य को म.प्र. सरकार ने समझा। शंकर की सेवा के काम में न्यास के मार्गदर्शन के लिए श्रृंगेरी मठ हमेशा साथ रहेगा। श्रृंगेरी शंकराचार्य ने मंडपम् में लगी एकात्म धाम और अद्वैत लोक की प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया।
श्रुति प्रमाण से आत्मज्ञान प्राप्त होता है- प्रोफेसर झा
जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. रामनाथ झा ने सभा के समापन वक्तव्य देते हुए शास्त्रार्थ की परंपरा के महत्व को रेखांकित किया और कहा कि “श्रुति प्रमाण से आत्मज्ञान प्राप्त होता है, जिससे शास्त्र निर्धारण होता है और अर्थ का निर्धारण स्वयं ध्यान बन जाता है।” सभा में विद्वानों को सम्मानित कर उनके योगदान की सराहना की गई।
संत समागम मंगलवार को
आज श्रृंगेरी शारदा पीठ के शंकराचार्य विधुशेखर भारती सन्निधानम की अध्यक्षता एवं द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती, जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि की सन्निधि तथा भारत की दिव्य संन्यास परंपरा के प्रमुख संतों, आर्ष चिन्तकों, मनीषी तथा विद्वतजनों की उपस्थिति में संत समागम का आयोजन दिनांक 28 जनवरी को प्रातः 10 बजे से प्रभु प्रेमी संघ शिविर, सेक्टर 18, अन्नपूर्णा मार्ग, प्रयागराज में होगा।