–साढ़े 6 करोड़ वर्ष पहले के पेड़, फल, बीज ओर डायनासोर अंडे सब बन गए पत्थर
-डिंडोरी के घुघवा से प्रहलाद शर्मा की रिपोर्ट
आज नर्मदा पर्यावरण संरक्षण यात्रा दौरान हमने देखें पत्थर बन चुके पेड़, पौधे, झाड़ियां और डायनासोर का अंडा। वैसे तो यह देखकर सहज विश्वास नहीं होता कि यह सब असली है या पत्थर। लेकिन आंखों से देखने और हाथों से छूने के बाद उन्हें झूठलाया भी नहीं सकता। चूंकि हम ऐसे साक्ष्यों के साथ खड़े थे जो साढ़े 6 करोड़ साल पुराने हैं। मेरे साथ आएं अन्य यात्री खुद को भरोसा दिलाने के लिए इन्हें बार-बार छूकर देख रहे थे। उन्हें उठाकर और किसी अन्य पत्थर से बजाकर भी देख रहे थे। दरअसल यह सब हमें मध्यप्रदेश के ही डिंडोरी जिले की ग्राम पंचायत सकतरा स्थित राष्ट्रीय जीवाश्म उद्यान अर्थात नेशनल फासिल पार्क घुघवा के संग्रहालय में देखने को मिला। यात्रा दौरान हमारे सहयात्री जितेन्द्र सोनी ने बताया कि इस मार्ग पर एक ऐसा संग्रहालय है जहां आपको पत्थर के पेड़ देखने को मिलेंगे। यह सुनकर सभी की उत्सुकता बढ़ गई और हम वहां पहुंच गए। महज 50 रुपए की टिकट लेकर जब संग्रहालय में प्रवेश कर रहे थे तो कुछ साथियों ने अरुचि भी दिखाई, चूंकि वहां सामान्य तौर पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। परंतु जब भीतर गये तो देखकर आश्चर्यचकित रह गए। पुराने पेड़ के तने, शाखाएं, दुनिया के सबसे पुराने फल-बीज आम, चिरोंजी, हर्रा, रुद्राक्ष, जामुन, केला और नारियल के साथ ही डायनासोर का अंडा सब ऐसे लग रहे थे जैसे साक्षात रखें हुए हैं। लेकिन जब छू कर देखा तो पता चला कि यह सब पत्थर बन चुकें हैं। फिर शुरू होता है अपनी जिज्ञासा शांत करने सवालों का सिलसिला, जिसे वहां मौजूद गाइड द्वारा तथा लिखें हुए शिलालेखों को पढ़कर शांत किया गया। जिससे पता चला कि घुघवा में जिन पौधों के जीवाश्म मिलते हैं वह साढ़े 6 करोड़ साल पहले के हंै। जिसमें ऑस्ट्रेलिया का मूलवृक्ष यूकेलिप्टस का जीवाश्म भी शामिल हैं। यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि डिंडोरी का घुघवा पृथ्वी का इतिहास बताने वाली जगह है। जहां पता चलता है कि हिमालय समुद्र के भीतर था। क्योंकि हिमालय में समुद्र में रहने वाले जीवों के जीवाश्म मिले हैं। वहीं घुघवा यह भी बताता है कि भारत ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका से सटा हुआ भूभाग था। यहां जिन पेड़-पौधों के जीवाश्म मिले हैं, वे पेड़-पौधे ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका में भी पाए जाते हैं। इस दौरान हमारे सहयात्रियों ने यह भी जानकारी हासिल करने का प्रयास किया कि जीवाश्म बनते कैसे हैं। तब गाइड ने बताया कि ज्यादातर जीवाश्म तलछटी चट्टानों में मिलते हैं या झीलों, नदियों, समुद्र के भीतर मिलते हैं। धरती के गहरे नीचे कोयले में दबे मिलते हैं। उन्हें ऑक्सीजन और बैक्टीरिया नहीं मिलने से सड़ने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाती और तलछट की परत जमने लगती है। इनका आकार ठीक वैसा ही होता है जैसा जीव-जंतु या पेड़-पौधे का असली रूप होता है। यह प्रक्रिया सालों में पूरी होती है इसलिए जीवाश्म का मिलना हमारे लिए आश्चर्य से कम नहीं। सीधे-सरल शब्दों में कहें तो जो जीव-जंतु, पेड़-पौधे सड़ने से बच गए और खनिज कणों से भर गए वे पत्थर में बदल गए और सदा के लिए संरक्षित हो गए। यह सब तब होता है जब जीव जंतु या पेड़ पौधों पर भूगर्भीय घटना अर्थात प्रलयकारी घटना दौरान ज्वालामुखी राख, रेत या मिट्टी की परत जम जाती है जिससे उनके नष्ट होने की प्रक्रिया शुरू ही नहीं हो पाती है और वह पत्थर में परिवर्तित हो जाते हैं। आज निश्चित ही पृथ्वी के इस भाग में हुई उथल-पुथल के इतिहास से साक्षात्कार का रोमांचकारी अनुभव देखने को मिला। जीवाश्म देखने उपरांत जब सहयात्रियों से उनके अनुभव साझा किए तो पर्वतारोही श्रीमती ज्योति रात्रे ने कहा कि इससे पहले मैंने नेपाल और राजस्थान में समुद्री जीव वाले जीवाश्म देखें थे। आज पेड़ ओर फल आदि के जीवाश्म देखने का अवसर मिला। हरदा जिले के वनांचल स्थिति ग्राम सुंदरपानी निवासी यात्री मुन्ना लाल सुचारे ने कहा कि मेरे लिए यह देखना बहुत ही अचंभित करने वाला था। झाड़ को पत्थर बना हुआ आज पहली बार देखा। समाजसेविका सुमन सिंह ने कहा कि यह मेरे लिए एक नया अनुभव था जो बहुत ही रोमांचित करने वाला पल था। मैंने कल्पना भी नहीं की थी कि पेड़, फल, पत्ते जैसी वस्तुएं भी कभी पत्थर की हो सकती है या वह पत्थर में परिवर्तित हो सकतें हैं। जीवाश्म कैसे बनता है और कैसे होते हैं यह भी पता नहीं था। डॉ रामकृष्ण दुगाया ने कहा कि निश्चित ही यह जीवाश्म देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं था। वैसे जीवाश्म के बारे में पढ़ा तो बहुत था लेकिन प्रत्यक्ष रूप से देखे आज हैं। हरदा जिले के ही ग्राम मसनगांव निवासी कृषक श्याम भायरे ने कहा कि मैंने तो ऐसा पहले कभी ना तो सुना था ओर नहीं देखा था। यह सब तो ऐसे लग रहे थे जैसे अभी काट कर ही रखे हो या जैसे हमारे खेतों में खड़े हुए पुराने पेड़ों के ू ठूंठ रखें खड़े हो।
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