जिसे जगा न पाए संत का आगमन, वही होता हैं दशानन : पं. मनावत  

 

अनोखा तीर, सोडलपुर। रावण सोता ही रह गया और हनुमान जी जैसे संत उसके घर आकर चले भी गए। जबकि विभिषण जी के आंगन में हनुमान जी पहुंचे और वे जाग गए। मन महु तरक करे कपि लागा तेहि समय विभिषण जागा। संत का जीवन में पदार्पण हो और हमारी चेतना जाग्रत हो जाए तो हम विभिषण है अन्यथा यदि सुषुप्ति ही न टूटे तो रावण है। ये विचार मानस मर्मज्ञ पं. श्याम जी मनावत ने राम कथा के दूसरे दिवस कामधेनु गौशाला धनपाड़ा में चल रही राम कथा में व्यक्त किए। पं. मनावत जी ने अपनी सुमधुर शैली में कहा कि सतसंग होता ही स्फुरण के लिए। जिसके संग रहने से शुद्ध, पवित्र होने लगे, मन मे सद्भाव जागने लगे, विचार शुद्ध होने लगे और क्रिया सत्कार्य में प्रवत्त होने लगे तो समझना की हम सतसंग में है। ये विचार मानस मर्मज्ञ पं. श्याम जी मनावत ने धनपाड़ा गोशाला में व्यक्त किए। कामधेनु गोशाला में श्री राम कथा का दूसरा दिन था। संचालन समिति ने व्यास पीठ का पूजन अर्चन किया। कथा में आज उत्तर राम चरित्र सुनाते हुए केवट का मार्मिक चरित्र सुनाया। आपने कहा कि राम अयोध्या को कर्म से, जनकपुरी को ज्ञान से मिलते है, परन्तु चित्रकूट को राम प्रेम से मिलते हैं।

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