रीवा में लकड़ी माफिया का बोलवाला

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वनकर्मियों की कार्रवाई पर सवालिया निशान

गणेश पांडे, भोपाल। वन वृत्त रीवा में अवैध लकड़ी व्यापार ने एक नया मोड़ ले लिया है। वन परिक्षेत्राधिकारी सिरमौर केके पांडेय को दायित्व से हटाकर कार्यालय रीवा में विशेष कर्तव्य पर पदस्थ किया गया है, और कार्यवाहक वनपाल रामयश रावत को निलंबित कर गोविंदगढ़ भेज दिया गया है। यह निर्णय तब लिया गया जब सिरमौर क्षेत्र में एक ट्रक को बबूल की लकड़ी के साथ पकड़ा गया, जो टीपी ट्रांसपोर्ट परमिट में बताए गए रूट से हटकर अवैध रूप से लोड हो रहा था।

मामला क्या है

दिनांक 30 दिसंबर 2024 को ग्राम पंडापुरवा में ट्रक पर अवैध रूप से लकड़ी लोड होने की सूचना पर सिरमौर रेंज के कर्मचारियों ने मौके पर पहुंचकर कार्रवाई की। पुलिस और वन विभाग की टीम ने ट्रक को निस्तार डिपो पचामा ले जाकर जांच शुरू की। लेकिन रात में वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर ट्रक को छोड़ दिया गया।

कर्मचारियों पर एकतरफा कार्रवाई

वन विभाग के छोटे कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा नियमपूर्वक कार्रवाई करने के बावजूद रामयश रावत को निलंबित कर दिया गया और केके पांडेय को सिरमौर रेंज से हटाया गया। इस फैसले ने न केवल कर्मचारियों का मनोबल तोड़ा है, बल्कि विभाग में भय और असंतोष का माहौल पैदा कर दिया है।

सीएफ की भूमिका संदिग्ध

यह घटना दर्शाती है कि किस प्रकार लकड़ी माफिया एनटीपीएस पोर्टल के माध्यम से टीपी की आड़ में अवैध व्यापार कर रहे हैं। विशेष रूप से यूपी के निवासी जितेंद्र सिंह का नाम सामने आ रहा है, जो अवैध लकड़ी परिवहन में संलिप्त है। आरोप है कि इस कारोबार में सीएफ और उच्च अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है।

टीपी का दुरुपयोग और शासन की उदासीनता

एनटीपीएस पोर्टल का उद्देश्य किसानों को सुविधा प्रदान करना था, लेकिन इसका दुरुपयोग माफिया द्वारा किया जा रहा है। ग्राम कोनी खुर्द से हरियाणा के लिए ली गई टीपी का उपयोग 20 किमी दूर पंडापुरवा में लकड़ी लोड करने के लिए किया गया।

निष्पक्ष जांच की मांग

रीवा के वन विभाग में बड़े पैमाने पर हो रहे इस भ्रष्टाचार और माफिया गठजोड़ की निष्पक्ष जांच की मांग उठ रही है। कर्मचारियों ने सामूहिक अवकाश पर जाने का फैसला किया है, जब तक कि केके पांडेय और रामयश रावत को उनके मूल पदों पर बहाल नहीं किया जाता।

शासन से सवाल

क्या अवैध ट्रक पकड़ने पर कर्मचारियों को सजा देना न्यायोचित है?

-क्या उच्च अधिकारियों द्वारा माफिया का समर्थन भ्रष्टाचार को उजागर नहीं करता?

-यदि कार्रवाई गलत थी, तो पुलिसकर्मियों पर भी सवाल क्यों नहीं उठाए गए?

-यह मामला न केवल वन विभाग की कार्यशैली पर प्रश्न खड़ा करता है, बल्कि शासन की उदासीनता को भी उजागर करता है। आवश्यक है कि टीपी के दुरुपयोग की गहन जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

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