जंगल महकमे में प्रशासनिक ढांचे में बदलाव जरूरी
गणेश पांडे, भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने रातापानी टाइगर रिजर्व की औपचारिक शुरुआत कर दी है, किंतु फील्ड डायरेक्टर कौन होगा, इसे लेकर संशय की स्थिति है। टाइगर रिजर्व की दृष्टि से अभी तक न तो स्टाफ तय हुआ और न ही अलग से कोई बजट स्वीकृत किया गया। जबकि टाइगर रिजर्व बनने पर मुख्यमंत्री से लेकर मुख्यालय से लेकर फील्ड के अफसर तक उत्साहित है। सूत्रों के अनुसार रातापानी के टाइगर रिजर्व बनने के बाद औब्दुल्लागंज वन मंडल स्टाफ को मर्ज करने पर मंथन चल रहा है। इस बात पर भी विचार-विमर्श चल रहा है कि औब्दुल्लागंज वन मंडल समाप्त कर उसकी टेरिटरी के कुछ हिस्से को रायसेन वन मंडल में समाहित किया जा सकता है और शेष रातापानी टाइगर रिजर्व का हिस्सा होगा। उल्लेखनीय यह है कि औबेदुल्लागंज वन मंडल को समाप्त करने का प्रस्ताव तत्कालीन वन बल प्रमुख स्वर्गीय अनिल ओबेरॉय ने तैयार करवाया था किंतु उनके रिटायर होने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अधिकारी एवं कर्मचारियों कमी की संकट के दौर से गुजर रहे जंगल में महकमे को एक बार फिर से प्रशासनिक ढांचे और वन मंडलों के पुर्नसंरचना पर गंभीरता से सोचना होगा। दिलचस्प पहलू यह है कि शीर्ष पदों पर बैठे अफसर पुर्नसंरचना को लेकर किंकर्तव्यविमुढ़ है। जबकि रातापानी टाइगर रिजर्व के लोकार्पण के साथ ही नए फील्ड डायरेक्टर की पोस्टिंग होने तक भोपाल वन वृत के वन संरक्षक राजेश खरे को प्रभार दिए जाने की घोषणा कर दिया जाना चाहिए। इसी प्रकार औब्दुल्लागंज डीएफओ हेमंत रायकवार को टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर के रूप में काम करने के आदेश जारी होना चाहिए था।
कान्हा का फील्ड डायरेक्टर है नहीं
वन और वन्य प्राणियों के प्रति मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव जितने जागरूक और उत्साहित हैं, उतने ही उदासीन अपर मुख्य सचिव वन अशोक वर्णवाल और वन बल प्रमुख असीम श्रीवास्तव। उदासीनता का आलम यह है कि फील्ड से लेकर टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर के पद महीनों से खाली पड़े हैं किंतु उन पदों को भरने की फुर्सत नहीं मिल पा रही है। मुख्यालय की ओर से जैसे-तैसे पोस्टिंग संबंधित प्रस्ताव आगे बढ़ाए गए किंतु मंत्रालय में जाकर डंप हो गए है। पूरा महकमा प्रभार के खेल खेलने में व्यस्त है। सबसे दुर्भाग्यजनक पहलू यह है कि अपर मुख्य सचिव से लेकर वन बल प्रमुख तक दो महीने से तय नहीं कर पा रहें हैं कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कान्हा टाइगर रिजर्व फील्ड डायरेक्टर किसे बनाया जाए? मुख्यालय से कान्हा के लिए रविंद्र मणि त्रिपाठी, नाम प्रपोज किया गया है किंतु वन मंत्रालय में प्रस्ताव डंप कर दिया गया है। डिप्टी डायरेक्टर को ही फील्ड डायरेक्टर का प्रभार दे दिया है। जबकि फील्ड डायरेक्टर का प्रभार वन संरक्षक जबलपुर वन ब्रिज को दिया जाना चाहिए था। लेकिन कान्हा की डिप्टी डायरेक्टर सबसे चाहेते आईएफएस अफसर है, इसलिए उन्हें फील्ड डायरेक्टर का भी प्रभार दे दिया गया। इसी प्रकार पेट नेशनल पार्क का पूर्ण कालिक फील्ड डायरेक्टर साल भर से नहीं है। यहां का प्रभार जे देवा प्रसाद को दिया गया है। जबकि यह देव प्रसाद को मूल रूप से वर्किंग प्लान तैयार करना है। जानकारी के अनुसार जे देवाप्रसाद वर्किंग प्लान बनाने का कर हाशिए पर है और वे मुख्य रूप से फील्ड डायरेक्टर की जिम्मेदारी निभा रहें है।
प्रशासनिक ढांचे के पुर्नसंरचना संबंधित सुझाव
संरक्षण शाखा और आईटी डिपार्टमेंट को एक कर देना चाहिए।
– सामाजिक वानिकी ( अनुसंधान एवं विस्तार) को एचआरडी में मर्ज होना चाहिए।
– वित्त एवं बजट को विकास के साथ अटैच किया जा सकता है।
– वन विकास निगम को समाप्त कर उसके अवसरों को मुख्य धारा की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
– बैतूल वन वृत समाप्त कर होशंगाबाद सर्किल में समाहित किया जा सकता है।
– बालाघाट- छिंदवाड़ा सर्किल समाप्त कर उसे सिवनी वन वृत में जोड़ा जाए।
– सिवनी वन वृत के नरसिंहपुर वनमंडल को सागर सर्किल में जोड़ा जा सकता है।
– बैतूल सर्किल में तीन वन मंडल है। उन्हें युक्तियुक्तकरण करते हुए दो वन मंडल बनाए जाए। इसी तरह से सिवनी के दो वन मंडलों को एक कर देना चाहिए। सेंधवा और बढ़वानी वन मंडल एक किया जा सकता है।
– रायसेन, देवास कैसे उत्पादन वन मंडल को समाप्त कर देना चाहिए।
– जिस तरह से कमिश्नर कार्यालय में कमिश्नर और अपर कमिश्नर पदार्थ होते हैं इस तरह से वन वृत्त में डीसीए की पोस्टिंग होना चाहिए और उसे आरएनडी काम दिया जाय।
– वन संरक्षक आरएंडडी के पद को समाप्त कर यहां सीनियर डीसीएफ अथवा डीएफओ की पोस्टिंग होनी चाहिए।
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