मप्र लेखक संघ की काव्य गोष्ठी संपन्न


अनोखा तीर, हरदा। मन में निर्मल प्यार बसा है, काजल का संसार नहीं है। इन पंक्तियों को अपने अपने गहरे भावों और उच्चतम शब्दों में पिरोकर हरदा जिले के साहित्यकारों ने एक से बढ़कर एक कविता, गीत, गजल का सृजन किया। रविवार को वरेण्य साहित्यकार और हिंदी के आचार्य, मूर्धन्य विद्वान तथा हजारों सफल शिष्यों के गुरु मेजर डॉ.प्रभुशंकर शुक्ल के निवास पर आयोजित साहित्य गोष्ठी में अपनी चिर परिचित शैली में प्रस्तुत किया।   मध्यप्रदेश लेखक संघ जिला इकाई हरदा की मासिक साहित्य गोष्ठी की अध्यक्षता, इकाई के अध्यक्ष आर गौर द्वारा की गई। मुख्य अतिथि थे हिंदी के विद्वान और सुप्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ.राजेन्द्र मंडलोई, इकाई के पूर्व अध्यक्ष पीसी पोर्ते और साहित्य प्रेमी समाजसेवी अशोक नेगी कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि थे। इकाई के उपाध्यक्ष सुभाष सिटोके की सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। तदोपरांत राष्ट्रभाषा हिन्दी के महत्व, महिमा और शक्ति पर डॉ.राजेंद्र मंडलोई द्वारा ललित एवं सारगर्भित व्याख्यान दिया गया। फिर सभी साहित्यकारों द्वारा अपनी उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया गया। बालकृष्ण ओझा ने मेरे सपनों की शारदा मैया कब आएगी तू, नरेंद्र वर्मा द्वारा ने…वक्त के साथ बदल जाए, वह तो कोई प्यार नहीं है, बृजमोहन अग्रवाल ने मां बाप की दुआएं कभी खाली नहीं जाती, मंसूर अली मंसूर ने ख़ुद से खुद की यारी रख, दुनिया से बेज़ारी रख, जीआर गौर ने मेरा तन मंदिर-सा सजा है, इस में कोई विकार नहीं, अशोक नेगी ने अपनों ने ही अपना नाम मिटाया है, माचिस की तीली ने पेड़ जलाया है, मदन व्यास ने मानवता है जिन्दगी, मानवता बिन सून, मानवता बिन व्यर्थ है, साहब बाबू प्यून, गोकुल गौर ने भले गिर गई हो प्लेटलेट इश्क की, मगर मेरा प्यार व्यापार नहीं है, रतन सिंह सोलंकी  ने.. मिट गया है भाईचारा देखिए, दूरियां बढ़ने लगी हैं आजकल, सुभाष सिटोके ने करो उपेक्षा प्रिये न मेरी, यह समुचित व्यवहार नहीं है, आचार्य प्रभुशंकर शुक्ल द्वारा जीवन तो शीतल सुगंध है, तपती धूप बयार नहीं, मन में निर्मल प्यार बसा है, काजल का संसार नहीं, दुर्गेशनंदन शर्मा ने दरमियां बर्फ की चादर पिघल जाए तो कह देना, हमारी रंजिशों का हल निकल जाए तो कह देना, सावन सिटोके द्वारा-  आज फिर सुलगी ंगीठी धूप वाली, आज फिर सूरज नयन दिखला रहा है, डॉ.अरविन्द शुक्ला ने हरदा फटाका त्रासदी पर कल हाहाकार था शोर था चीत्कार था, पीसी पोर्ते ने अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गया मेरा देश, लेकिन बदला नहीं परिवेश, रचना प्रस्तुत की गई। आचार्य प्रभुशंकर शुक्ल ने सभी का सम्मान कर अपनी प्रकाशित पुस्तकें भेंट की और सभी का आभार माना। गोष्ठी का संचालन गोकुल गौर विभोर ने किया। डॉ.अरविंद शुक्ला और डॉ.राजेंद्र मंडलोई द्वारा मध्यप्रदेश लेखक संघ की आजीवन सदस्यता ग्रहण की गई।

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