– माइनस 20 डिग्री में पर्वतारोही गौरी ने की फतह
अनोखा तीर, बैतूल। आगामी 22 सितम्बर डाटर्स डे के अवसर पर बैतूल जिले में विलक्षण प्रतिभा और हौसले की मिसाल बनी बेटियां आ रही है। वे बेटियां जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपना मुकाम हासिल किया और देश और विश्व में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई उन्हें बैतूल की धरा स्व. नेहा अभिषेक श्रीवास्तव की स्मृति में मणिकर्णिका सम्मान से नवाज रही है। जहां मणिकर्णिका के मंच पर 22 सितंबर को बैतूलवासी देश की पांच सबसे ऊंची चोटियां फतह करने पर्वतारोही बेटी गौरी अरजरिया से रुबरु होंगे। वहीं इस मंच पर ऐसी प्रतिभा से भी सभी मिल सकेंगे जिसने साबित कर दिया कि तकदीर उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। दिव्यांग चित्रकार नरबदिया बाई को चुनाव आयोग ने ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया था, वे अपने मुंह से चित्रकारी करती हैं।
दक्षिण अफ्रीका की किलिमंजारों चोटी पर तिरंगा फहरा चुकी है गौरी
मप्र के पन्ना जिले में बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान की ब्रांड एंबेसडर व पर्वतारोही गौरी अरजरिया ने बीते 15 अगस्त 2023 को दक्षिण अफ्रीका के तंजानिया में स्थित सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारों पर तिरंगा फहराकर देश और अपने प्रदेश का नाम रोशन किया है। किलिमंजारो की समुद्र तल से ऊंचाई 19 हजार 341 फिट है। बता दें कि गौरी अरजरिया एक पर्वतारोही हैं और अब तक वे देश की पांच सबसे ऊंची चोटियों की चढ़ाई कर रिकॉर्ड बना चुकी हैं। गौरी ने उत्तराखंड की 13 हजार 500 फीट ऊंची चंद्रशिला की चोटी पर भी तिरंगा फहराया था। पश्चिम बंगाल की 17 हजार फीट ऊंची रोनोक चोटी परचढ़ाई की थी। इसके अलावा गौरी ने उत्तराकाशी की केतार कांठी चोटी पर, 18 हजार फीट ऊंची विधान चंद्र राय पर्वत चोटी पर भी चढ़ाई की थी। मध्यप्रदेश के सागर संभाग के पन्ना जिले की गौरी अरजरिया ने दक्षिण अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारों की चढ़ाई कर 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगा फहराकर कीर्तिमान स्थापित किया है। किलिमंजारो तंजानिया में स्थित सबसे ऊंची चोटी है। जिसकी ऊंचाई 19,341 फीट है। यहां पर अगस्त के महीने में माइनस 20 डिग्री (-20) तापमान और कड़ाके की खून जमा देने वाली सर्दी होती है। यह रिकॉर्ड गौरी ने महज छह दिन में कायम किया है।
नरबदिया ने बिना हाथों के लिख डाली अपनी तकदीर
डिंडौरी जिले के खन्नात गांव की 33 वर्षीय दिव्यांग आर्टिस्ट नरबदिया बाई आर्मो जन्म से ही दिव्यांग हैं। ईश्वर द्वारा छोड़ी कमी को नरबदिया आज मुस्कुराकर पूरी कर रही हैं। आज उनकी गिनती ऐसे कलाकारों में हो रही है, जो तमाम कमियों के बावजूद अपनी कला का लोहा मनवा चुकी हैं। वह जबड़े में पेंटिंग ब्रश दबाकर ऐसी बेमिसाल चित्रकारी करती हैं कि कोई कंप्लीट बॉडी ह्यूमन भी ऐसा नहीं कर पाए। उनकी बनाई पेंटिंग्स दुर्लभतम और परंपरागत कला को प्रदर्शित करती है। नरबदिया दिव्यांग जरूर हैं लेकिन भरण-पोषण के लिए परिवार पर जरा भी निर्भर नहीं है। अपनी तमाम कमियों को धता बताते हुए वह अब तक वह हजारों पेंटिंग बना चुकी हैं। नरबदिया के पिता संपत लाल आर्मो का निधन हो चुका है। नरबदिया के दो भाई हैं। उन्हें कहीं आने-जाने के लिए भाइयों या मां की मदद लेना पड़ती है। उन्हें दिव्यांग पेंशन के रूप में सरकार से हर महीने डेढ़ सौ रुपए मिलते हैं। इस रकम से गुजारा नहीं हो पाता लिहाजा उन्होंने चित्रकला को जीविका का जरिया बनाया। नरबदिया बाई हाथों की जगह मुंह में ब्रश दबाकर दीवारों और कैनवास पर बेमिसाल चित्रकारी करती हैं। उनके चित्रों में खुशहाल जीवन की जिंदादिल झांकी स्पष्ट नजर आती है। पहले ज्यादा समय लगता था लेकिन अब उन्हें इतनी महारत हासिल हो गई है कि अब मिनटों में ही पेंटिंग्स बना लेती हैं।