अनोखा तीर, हरदा। रविवार को स्वामी विवेकानंद शसकीय कॉलेज में पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती उद्घाटन समारोह का आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता डॉ. प्रतिभा चतुर्वेदी ने बताया कि देवी अहिल्याबाई होलकर बिंदु से विराट तक पहुंचने का नाम है। वे एक साधारण मराठा सैनिक मनकोजी राव की बेटी थीं। उनके गुणों को देख मल्हार राव होलकर ने होनहार बालिका अहिल्याबाई के पिता मनकोजी राव को बुलाकर अपने बेटे खांडेराव से विवाह का प्रस्ताव रखा और 1733 में विवाह हो गया। 24 मार्च 1754 में कुंभेर युद्ध में पति खांडेराव की मृत्यु हो गई। 1767 में अहिल्या बाई को सिंहासन संभालना पड़ा। उन्होंने ख़ुद को कुशल प्रशासिका साबित किया। उन्होंने केवल मालवा के साम्राज्य को ही सुरक्षित और समृद्ध नहीं किया, बल्कि बनारस काशी विश्वनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया। मुगल आक्रांताओं द्वारा तोड़े गए मन्दिरों का पुनर्निमाण कराया। डा. चतुर्वेदी ने अहिल्यबाई की संघर्ष गाथा बताई। इसी के साथ तनुश्री सोनी, पारुल काशिव ने पुण्यश£ोक के बारे में विस्तार से बताया। मुख्य अतिथि डॉक्टर संगीता बिले प्राचार्य, स्वामी विवेकानंद शासकीय महाविद्यालय ने कहा रानी अहिल्याबाई होल्कर का नाम भारतीय इतिहास के उन महानतम युगों में आता है । जब एक नारी अपने अद्वितीय साहस, त्याग और पराक्रम के बल पर न केवल अपने राज्य को सुधार कर रही थी बल्कि संपूर्ण राष्ट्र की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर की रक्षा का बीड़ा उठा रही थी । काार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं पूर्व प्राचार्य कमला सोनी ने अहिल्याबाई के जीवन, कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान समिति के डॉ विरेन्द्र गुहा, मगनलाल धनगर, सुरिन्दर कौर सहित बड़ी संख्या में आमंत्रित गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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