
विकास पवार, बड़वाह – अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल के लिए रवाना कर पूरी तरह बेफिक्र हो जाते हैं। असल में वह इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं कि उनका बच्चा सुरक्षित है या नहीं। बच्चो को वाहनों में किस प्रकार लाया ले जाया जाता हैं। इस दृश्य को अगर वह प्रत्यक्ष रूप से देखे तो उनके भी होश उड़ सकते है। ऐसा ही एक नजारा शनिवार शाम शहर के इंदौर रोड स्थित काटकूट फाटे रोड़ पर एक टेंपो निकलने के दौरान देखा गया। इस वाहन के अंदर क्षमता से अधिक छात्राएं बैठी थी। पीछे की ओर अन्य छात्र हवा में लटके नजर आए। इतना ही नहीं टेंपो की छत पर भी लापरवाह पूर्वक बच्चों को बैठकर सफर तय किया जा रहा था। हालाकी यह टेंपो जगतपुरा व काटकूट मार्ग पर चलयमान था। जिसने भी यह नजारे देखें वह चौंक गया। यह दृश्य स्कूली बच्चो का जोखिमभरा सफर व सरकारी महकमे का लापरवाह रवैए को दर्शा रहा था। वही टेंपो चालक को इसका मुख्य जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। उल्लेखनीय है कि यदि आप शहर के अधिकांश स्कूल के सामने छुट्टी के समय खड़े हो, तो उस स्थान पर कई अनफिट वाहन मिल जायेगे। जबकि सात सवारी क्षमता वाले ऑटों में अधिक बच्चे भरे देखे जा सकते हैं। यही हाल वैन और दूसरे अन्य वाहनों का भी है। अधिक कमाई की लालच में ड्राइवर बेधड़क ओवरलोडिंग कर रहे हैं । लेकिन न तो पालकों को और न ही पुलिस को यह गतिविधियां दिखाई दे रही है। स्थिति तो यह हैं कि जहां छोटे-छोटे बच्चों को वेन और तीन- चार पहिया वाहनों में ठूस-ठूसकर भर दिए जाते है। वहीं नियमों को ताक पर रखकर वाहनों को बेधड़क सड़कों पर दौडा जा रहा हैं। कुल मिलाकर सड़कों पर इनकी मनमानी का आलम इन दिनो हद से ज्यादा बढ़ चुका है। जिस पर समय रहते अंकुश लगाना बेहद जरूरी हो गया है,नही तो किसी दिन भी बड़े हादसे होने से इंकार नहीं किया जा सकता।

नियमों की परवाह नही
सबसे बड़ी आश्चर्य की बात तो यह हैं कि स्कूली बच्चों को लाने ले जाने का काम करने वाले वाहनों में क्षमता से अधिक भरकर बच्चों की जान जोखिम में डालने को लेकर ना तो वाहन चालकों को परवाह हैं और ना ही स्कूल संचालकों को। स्कूल संचालकों को कई बार आप सचेत भी करें तो वे वे इस ओर अनदेखी कर देते हैं। स्कूल के बच्चों को स्कूल लाने ले जाने के लिए अधिकांशत: बसों के साथ मैजिक, ऑटो भी चल रहे हैं। इनमें बसों और मैजिक की संख्या ज्यादा है। उल्लेखनीय है की स्कूल में अटैच कई ऑटो पर ना तो पीला रंग है और ना ही उसका ड्राइवर पूर्णतया यूनिफार्म में रहता है। जबकि नियमानुसार स्कूली से जुड़े ऑटो को सुरक्षा के लिहाज से ऑटो पर ही चालक का नाम, पता और मोबाइल नंबर अंकित होना चाहिए।

सरकारी महकमें को घटना का इंतजार
इस ओर सरकारी महकमें की उदासीनता के कारण वाहन चालकों द्वारा मनमानी की जाती है। इसकी रोकथाम हेतु कोई उचित कार्रवाई नहीं की जाती है। जिसके कारण बड़वाह सहित सनावद में भी स्कूल के मासूम बच्चों की जान के साथ खेला जाता है। शायद महकमें को किसी बढ़ी घटना का इंतजार है। तब जाकर जिम्मेदार उदासीनता की नींद से जागकर कार्रवाई करेगा।
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