वृक्षों की पीड़ा- मानव जीवन को नहीं है हमारी आवश्यकता

वृक्ष करते पुकार सुनो सरकार हमारी भी दरकार

बेदर्दी से कट रहे हरे भरे पेड़ों पर नहीं हो रहा संज्ञान

अनोखा तीर भैरुंदा- हम वर्षो पुराने वृक्ष हैं, हम प्रतिदिन मानव जीवन को ऑक्सीजन देकर उनका जीवन बचाने का काम करते हैं, हमारी हरियाली से मानसून की आमद होती है, जहां हम मौजूद रहते हैं वहां पर सुकून की छांव मिलती है, चारों तरफ हरियाली होने से वातावरण स्वच्छ व सुंदर बना रहता है, हमारे रहते सूरज की तपन भी मानव जीवन को खरोच नहीं पहुंच पाती। लेकिन ऐसा लगता है कि अब मानव को हमारी आवश्यकता नहीं बची। इसी कारण हमें बेदर्दी के साथ काटा जा रहा है। आखिर हमारा कसूर क्या है। हमें वर्षो से पाला पोषा गया, बुजुर्गों के द्वारा अपने हाथों से हमें पानी देकर बट वृक्ष बनाया गया लेकिन अब उन्ही बुजुर्गों के पुत्रों के रूप में मौजूद मानव हमारी महत्ता को नहीं समझ पा रहा। कुछ ऐसी ही पुकारवुधनी, रेहटी, लाड़कुई वन परिक्षेत्र मैं लगे हुए वह हजारों पेड़ कर रहे हैं। जो वर्षों से एक ही जगह पर खड़े रहकर मानव जीवन को सुरक्षित कर रहे हैं। वृक्ष निर्जीव है, वह बोल नहीं सकते लेकिन बिना बोले अपने धर्म का पालन वह सदियों से करते चले आ रहे हैं। लेकिन आज के दौर में मानव अपने छोटे से लालच में इन हरे भरे पेड़ पौधों को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। बरसों पुराने वृक्षों की पुकार सरकार कब सुनेगी। प्रतिदिन कटते हरे-भरे वृक्ष चीख चीख कर बोल रहे हैं। वन संपदा का आवरण हमें घटना नहीं बल्कि बढ़ाना है। लेकिन यह बात जिम्मेदार नहीं समझ पा रहे। आखिरकार मानव जीवन का यह लालच कब खत्म होगा। कब जिम्मेदार अपनी अंतरात्मा के साथ हरे-भरे वृक्षों को न्याय दिलाने के लिए आगे आएंगे। लेकिन वर्तमान में जो दौर चल रहा है उससे यह तो प्रतीत नहीं होता कि इन हरे भरे वृक्षों को न्याय मिल पाएगा। सीहोर जिले में सबसे अधिक वन संपदा के रूप मेंवुधनी, रेहटी, लाड़कुई वन परिक्षेत्र का नाम पहचाना जाता है। यदि हम सदियों नहीं बल्कि कुछ वर्ष पूर्व की ही बात करें तो यहां पर जंगल का अपार भंडार था, जंगली जानवर यहां प्रचुर मात्रा में मौजूद थे, जंगलों में रहने वाले लोग स्वयं वनो की सुरक्षा करते थे। लेकिन विज्ञान के इस युग में भागमभाग जिंदगी को अपनाने की चाहत में जंगलों को बचाने नहीं बल्कि उन्हें बर्बाद करने का दौर शुरू हो गया। इस क्षेत्र में यदि हम वर्ष 2005 की बात ही यदि करें तो जंगलों का एक बड़ा खजाना हम देखते थे। जहां पहले जंगल थे वहां अब सपाट खेत है, चौडी सड़कों का विस्तार हो चुका है, चारों तरफ अध्यक्ष नहीं बल्कि बंजर जंगल देखने को मिल रहे हैं। प्रकृति का भंडार हमसे छिन चुका है। राजनीतिक दलों ने अपने लालच के पीछे प्राकृतिक संपदा का दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसका खामियाजा हमें बढ़ते तापमान, कम बरसात के रूप में भुगतना पड़ रहा है। आज भी हालात बिगड़े नहीं है, लेकिन जंगलों को बचाने वाले अधिकारी ही अब इन्हें पूरी तरह मिटाने पर तुले हुए हैं। आखिर अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कब करेंगे। सरकार का लक्ष्य है कि पर्यावरण को बढ़ावा मिले। लेकिन सरकार के नुमाइंदे बरसों पुराने पेड़ों को बचाने उनका संरक्षण करने और उन्हें नया जीवन देने के नाम पर कोई ठोस प्रयास नहीं कर पा रहे। जिसका नतीजा यह है कि बरसों पुराने जंगल खत्म होते जा रहे हैं। हम बात यदि सीहोर जिले के जंगलों की करें तो यहां पर पर्यावरण बढ़ाने व बचाने के नाम पर राशि खर्च की जाती है। दूसरी ओर जंगलों को नैस्तोनावूद करने नाम पर भी अधिकारी अपनी जेबों को भरने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आखिरकार सरकार इन निर्जीव वर्षों की पुकार कब सुनेगी।

Views Today: 2

Total Views: 128

Leave a Reply

लेटेस्ट न्यूज़

MP Info लेटेस्ट न्यूज़

error: Content is protected !!