क्या हो अगर NOTA को मिल जाए सर्वाधिक वोट, क्या वापस होंगे चुनाव, जानें क्‍या कहते हैं नियम

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अनोखा तीर इंदौर:-इंदौर लोकसभा चुनाव में पिछले दिनों हुए अप्रत्याशित घटनाक्रम के बाद कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम ने नामांकन वापस ले लिया था, इतना ही नहीं वे भाजपा में भी शामिल हो गए। इसके बाद कांग्रेस लोकसभा चुनाव के मैदान से पूरी तरह बाहर हो गई और अब इंदौर की जनता से नोटा को अपना मत देने की अपील कर रही है। लिहाजा कांग्रेस नोटा के पक्ष में जोर-शोर से जुटी है। लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या वाकई नोटा को मत देने पर इसका चुनाव पर असर पड़ेगा? तो फिलहाल इसका जवाब फिलहाल ना ही नजर आता है।

क्या है नोटा को लेकर प्रावधान

साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक ऐतिहासिक फैसले ने मतदाताओं को नोटा का विकल्प उपलब्ध करवाया। जिसके अनुसार यदि कोई मतदाता किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देना चाहता तो वह नोटा को अपना मत दे सकता है।

क्या हो अगर नोटा को अधिक वोट मिल जाए

यदि किसी क्षेत्र में सभी उम्मीदवारों के मुकाबले नोटा को अधिक वोट मिल जाते हैं तो नियम 64 के अनुसार जिस उम्मीदवार को सर्वाधिक वोट मिले हैं, उसे चुनाव आयोग विजयी घोषित करता है।

इसके अलावा यदि 99 प्रतिशत मत भी नोटा को मिलते हैं तो भी इसका चुनाव पर कोई असर नहीं होगा। इस परिस्थिति में किसी उम्‍मीदवार को एक प्रतिशत भी वोट मिले हैं, तो भी वही निर्वाचित होगा।

क्‍या कहते हैं जानकार?

उद्योगपति व शिक्षाविद वीरेंद्र गोयल का कहना है कि वर्तमान में नोटा का कोई असर नहीं नोटा एक विकल्प तब बनेगा, जब ऐसा कानून आए कि नोटा को सर्वाधिक मतदान मिलने पर अन्य उम्मीदवार अयोग्य घोषित किए जाएं। चुनाव प्रक्रिया दोबारा हो। साथ ही चुनाव में खड़े होने वाले उम्मीदवार दोबारा चुनाव न लड़ सकें तभी नोटा का उद्देश्य सिद्ध होगा। हालांकि नोटा का एक उद्देश्य रहता है, उसकी चर्चा भी होती है। नोटा बेकार तो नहीं है, लेकिन उसका असर नहीं है। अगर नोटा के जीतने पर चुनाव निरस्त कर दिए जाएं, तो उसका उद्देश्य सफल होगा।

आयुर्वेद एवं योग चिकित्सक डा. नितिन बलवंत शुक्ल का कहना है कि विकल्पों पर विचार करना चाहिए नोटा पर अधिक मतदान होने से द्वितीय स्थान पर आने वाला प्रत्याशी विजयी माना जाएगा। नोटा का विकल्प चुनकर लोग यह दर्शाते हैं कि हमें उम्मीदवारों के प्रति नाराजगी है और वह हमारे मापदंडों पर खरे नहीं उतर रहे। इसी प्रकार सामान्य अर्थों में तो नोटा का वोट व्यर्थ ही जाता है। लेकिन इंदौर के संदर्भ में माना जाएगा कि जनता को विकल्प नहीं मिला। उम्मीदवारों में अगर कोई कांग्रेस का होता तो लोग उन्हें भी मत देते। हालांकि किसी उम्मीदवार को मत देना अधिक उचित रहता है।

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