अमावस्या के अगले दिन यानि मंगलवार से चैत नवरात्रि की शुरूआत के साथ ही शक्ति की भक्ति का दौर प्रारंभ हो चुका है। इस दिन भोर की पहली किरण के साथ जहां मठ-मंदिर समेत देवीय स्थलों पर मंत्रोच्चार एवं आरती की गूंज रही। वहीं प्राचीन देवी मंदिरों में दर्शन के लिये भक्तों की कतार देखने को मिली। साथ ही नवरात्रि के पहले रोज सलकनपुर स्थित मॉ विजयासन धाम में दर्शन के लिये भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। इस विशेष अवसर पर मॉ विजयासन धाम से जुड़े महत्वपूर्ण किस्से सुनने को मिले, जो मां जगतजननी की महिमा का प्रमाण है।
अनोखा तीर, हरदा। मां, मां कहकर परेशान भक्तो ने जब ममतामयी मां को पुकारा तब मां ने इसी पर्वत पर राक्षस का संहार कर विजय पताका फहराया था, तभी से सलकनपुर स्थित देवी धाम विजयासन धाम कहलाने लगा, वहीं शक्ति की भक्ति का केन्द्र बन गया। श्रीमद भागवत कथा के अनुसार – उस वक्त रक्तबीज नामक दैत्य से सभी परेशान थे, तब देवता जगतजगनी की शरण में पहुंचे। जहां देवी ने अधर्म के विरूद्ध विकराल रूप धारण कर रक्तबीज का संहार किया। विजय से हर्षित देवताओं ने मैया को आसन दिया था, तभी से मैया का ये स्थान विजयासन धाम के नाम से विख्यात है। विजयासन धाम से जुड़ा एक किस्सा यह भी है कि सालों पहले पशुओं का व्यापार करने वाले बंजारे विश्राम एवं चारे के लिए यहां पर रुके थे, तब अचानक उनके पशु गायब हो गए। जब बंजारे अपने पशु ढूंढने निकले तो उन्हें इस स्थान पर एक बालिका मिली। बंजारों ने बालिका को अपनी व्यथा सुनाई। जिस पर बालिका ने कहा – परेशान मत हो, समीप देवी स्थान पर पूजा कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हो। बंजारों ने स्थान के बारे में पूछा तो बालिका ने पत्थर फेंककर दिशा का संकेत दिया। जहां पहुंचने पर उन्हें देवी के दर्शन हुए। वहीं उनकी मनोकामना स्वरूप पशु भी मिल गए। जिसके बाद उन्होंने वहां मंदिर का निर्माण कराया। साथ ही जन-जन को मां विजयासन की कृपा की कथा सुनाई। अब विजयासन धाम भक्तों की आस्था का केंद्र है।
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