गणेश पांडे, भोपाल। राज्य वन सेवा के 13 अफसर को तोहफ़े के रूप में आईएफएस अवार्ड मिलने जा रहा है। इसके लिए 22 अप्रैल को विभागीय पदोन्नति कमेटी की बैठक होने जा रही है। इस बैठक में 2009 बैच के राज्य वन सेवा के अधिकारी रामकुमार अवधिया को आईएफएस पद पर प्रमोट करने के लिए हरी झंडी मिलने की संभावना है। 2009 बैच के राज्य वन सेवा के अधिकारी साल भर पहले ही आईएफएस मिल गया था, किन्तु गंभीर वित्तीय अनियमितता के चलते निवाड़ी एसडीओ रामकुमार अवधिया को आईएफएस अवार्ड नहीं मिल पाया था। विभाग ने उन्हें दण्डित किया था परन्तु राज्यपाल के समक्ष अपील करने पर उन्हें क्लीनचिट मिल गई। यही वजह है कि इस बार उनके नाम को कंसीडर किया जा रहा है। इसी प्रकार 2010 बैच की राज्य वन सेवा की अधिकारी हेमलता शाह को भी आईएफएस अवार्ड के लिए हरी झंडी मिल सकती है। विभागीय जांच के चलते पिछली डीपीसी में उनके नाम को कंसीडर नहीं किया गया था। इसके अलावा कमेटी 2011 बैच के आशीष बांसोड़, विद्याभूषण सिंह, गौरव कुमार मिश्रा, तरुणा वर्मा, हेमंत यादव, सुरेश कोड़ापे, प्रीति अहिरवार, लोकेश निरापुरे, राजाराम परमार, करण सिंह रंधा और माधव सिंह मौर्य को आईएफएस अवार्ड के लिए हरी झंडी दे सकती है। गड़बड़ियों में उलझे रहने की वजह से 2011 बैच की डॉ.कल्पना तिवारी और राजबेंद्र मिश्रा के नाम विचार नहीं किया जाएगा। हालांकि 13 अधिकारियों को आईएफएस अवार्ड देने के लिए 2011 बैच से 2013 बैच के करीब राज्य वन सेवा के 39 अफसरों के नाम पर मंथन होगा।
आईएफएस को बचाने एसडीओ को फंसाया
वन विभाग ने मंत्रालय में पदस्थ ओएसडी अनुराग कुमार को बचाने के लिए एसडीओ डॉ कल्पना तिवारी को बलि बकरा बना दिया। यही नहीं, विभाग के शीर्षस्थ अफसरों ने उसको आरोप पत्र जारी कर आईएफएस की दौड़ से बाहर कर दिया गया। मामला तब का है जब वे टीकमगढ़ के प्रभारी डीएफओ हुआ करते थे। चैन लिंक और वायरवेड की खरीदी में प्रमाणकों पर एसडीओ कल्पना तिवारी के हस्ताक्षर बिना डीएफओ अनुराग कुमार ने भुगतान कर दिया था। जब कुमार के खिलाफ गड़बड़ियों को लेकर शिकंजा कसा गया तब शासन में बैठे होने का नाजायज फायदा उठाते हुए कुमार ने डिलीवरी चालान में हस्ताक्षर करने का आधार बनाकर डॉ कल्पना तिवारी को ही आरोपों के कठघरे में खड़ा कर दिया। जबकि प्रमाणक पर एसडीओ के हस्ताक्षर ही नहीं है। इस पूरे प्रकरण में कुमार हर तरह से घिरे नजर आ रहे हैं और उनके खिलाफ लोकायुक्त में शिकायत भी हो गई। कुमार ने न केवल नियमों को ताक पर रख कर अपने चेहती फर्म को भुगतान कर दिया बल्कि जीएसटी की चोरी भी की। राज्य शासन में पदस्थ होने की बदौलत ही उन्होंने मंत्री से लेकर शीर्ष अधिकारियों को मैनेजर स्वयं को पूरे प्रकरण में क्लीनचिट हासिल कर ली है।
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