बजट का टोटा: आयुष्मान का आशीर्वाद बना जेएएच का सहारा

 ग्वालियर। जिले के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल जयारोग्य में दवाओं के साथ अन्य सामग्री खरीदी का बजट अगस्त माह से नहीं मिला है। ऐसे में अस्पताल की व्यवस्थाओं का बजट गड़बड़ाने लग गया है। जिसका असर मरीजों के इलाज पर पड़ सकता है। दवाओं का टोटा इसका संकेत दे रहा है। मरीजों को स्टोर से बिना दवा के लौटना पड़ रहा है। अस्पताल में स्टेशनरी भी खत्म हो गई है। ऐसे में आपरेशन के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले ग्लब्स में निकलने वाले कागज का इस्तेमाल दवा लिखने के लिए किया जा रहा है। वहीं दवाओं समेत अन्य समाग्री पूर्ति के लिए आयुष्मान का बजट जेएएच प्रबंधन के लिए सहारा बना हुआ है।

पिछले तीन माह से डिजिटल बजट जारी नहीं किया जा सका है। बजट का निर्धारण चिकित्सा शिक्षा विभाग से किया जाता है। बजट का निर्धारण होने पर जेएएच प्रबंधन को कार्पोरेशन के पोर्टल पर लिमिट दिखती है इसके आधार पर दवाओं व अन्य सामग्री की डिमांड की जाती है, लेकिन अगस्त माह से लिमिट न दिखने के कारण डिमांड नहीं की जा सकी है। इससे दवाओं सहित अन्य सामान का स्टाक खत्म होता जा रहा है। तमाम जरुरी दवाएं स्टाक में नहीं है। डाक्टर से लेकर नर्सिंग स्टाफ को स्टेशनरी के लिए परेशान होना पड़ रहा है। बजट का संकट चुनाव से पहले शुरू हुआ है।

आयुष्मान बन रही सहारा

डिजिटल बजट की लिमिट नहीं आने के कारण दवाओं समेत अन्य सामग्री पूर्ति के लिए आयुष्मान का बजट जेएएच प्रबंधन के लिए सहारा बना हुआ है। आयुष्मान बजट जेएएच प्रबंधन की लाज बचाए हुए है। अगर जल्द ही डिजिटल बजट प्रबंधन को नहीं मिलता है तो व्यवस्था बनाने में दिक्कत आ सकती है। फिलहाल अव्यवस्थाओं को आयुष्मान के सहारे ढांकने का प्रयास किया जा रहा है।

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